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December 1974

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महत्व आकर का नहीं उपयोगिता का है। विस्तार बहुत हो पर उपयोगिता की कमी रहे तो उसे निरर्थक ही माना जायगा, किन्तु कई बार बहुत छोटी दीखने वाली हस्ती भी अपने में इतनी उपयोगिता भरे रहती है कि बड़े−बड़ों का ध्यान उसकी ओर जाता है और उससे लाभान्वित होने के लिए सर्वत्र ललचाई दृष्टि से देखा जाता है। डायटम नामक अति क्षुद्र समझा जाने वाला प्राणी अगले दिनों मानवी आहार की महत्वपूर्ण आवश्यकता पूरी करने जा रहा है।

संसार में सबसे छोटा कहा जाने योग्य केवल एककोष वाला प्राणी है ‘डायटम’ इसे समुद्री घास समझा जाता रहा है पर वैज्ञानिकों ने उसकी गति−विधियों को देखते हुए सबसे छोटी प्राणी की संज्ञा दी है। समुद्र की लहरों के साथ वह पानी में इधर से उधर तैरता फिरता है ओर सूर्य किरणों से विटामिन डी. की बड़ी मात्रा खींच कर अपने शरीर में भर लेता है। समुद्र जल से भी वह अपने लिए आवश्यक आहार चूसता रहता है यही दो स्रोत उसकी क्षुधा मिटाते हैं। प्रौढ़ होने पर वह अपने ही शरीर का एक टुकड़ा अलग छिटका देता है और वह टुकड़ा एक स्वतन्त्र डायटम बन जाता है। यही है इस प्राणी का सन्तानोत्पादन क्रम। दो छोटे डायटम मिलकर एक भी हो जाते हैं इस प्रकार समर्पण और आत्मसात करने की आध्यात्मिक प्रक्रिया का वे भरपूर लाभ उठाते हैं और शैशव की असमर्थता से छुटकारा पाकर वे क्षण भर में प्रौढ़ बन जाते हैं।

जल जंतु डायटम को सर्वोत्तम पौष्टिक भोजन की तरह चाव पूर्वक तलाश करते और खाते रहते हैं। ह्वेल का प्रधान आहार डायटम ही है। इसीसे वे इतनी बलवान होती है। ‘काड मछली में विटामिन ए. और डी. पे युक्त काड लिवर ऑयल एक अच्छा पौष्टिक आहार खाने से ही उत्पन्न होता है। जिन क्षेत्रों में डायटम का अभाव रहता है वहाँ की मछलियों में उक्त स्तर का तेल भी नहीं पाया जाता।

मनुष्य आहार में पौष्टिकता का समावेश करने के लिए जलाशयों में डायटम की खेती करने के लिए गम्भीरता पूर्वक वैज्ञानिक क्षेत्र में विचार और प्रयत्न किया जा रहा है।

हम चाहे जितने छोटे और स्वल्प साधन सम्पन्न हों तो भी अपनी उपयोगिता तो डायटम की तरह बढ़ा ही सकते हैं। कहना न होगा कि गुण, कर्म, स्वभाव का परिष्कार ही उपयोगिता वृद्धि का सबसे बड़ा उपाय है।


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