दीर्घ जीवन की रहस्यमय कुँजी

December 1974

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जार्ज बर्नार्डशा ने अपनी पुस्तक ‘रिवूलेशन इन लाँट’ में लिखा है नारी की स्थिति किसी समाज कर दर्पण है। पं. नेहरू का कथन है—जिस देश के बारे में कुछ नहीं जानता उसका मूल्याँकन करने के लिए मैं उस देश की महिलाओं की स्थिति और लोहा तथा बिजली उत्पन्न होने का विवरण जानना चाहूँगा।

योग वशिष्ठ में मृत्यु सम्बोधित करते हुए कहा गया है—

मृत्यो न किंन्विच्छक्य स्त्वमेको मारयितुँ वालात् मारणीयस्य कर्माणि तत्कतृणीति नेतरम्।

हे मृत्यु, आप अकेले—अपने ही बल से किसी को नहीं मार सकतीं। जो मरता है अपने ही कर्मों से मारता है— आप तो निमित्त मात्र हैं।

वस्तुतः हम दीर्घजीवन के सर्वथा उपयुक्त अच्छा−खासा शरीर यन्त्र लेकर चले हैं उसे सँभाल कर रखे तो लम्बी आयु तक सहज ही जिया जा सकता है। उसके लिए कुछ विशेष उपाय करने या रहस्य खोजने की आवश्यकता नहीं, केवल इतना ही पर्याप्त है कि इस सुन्दर यन्त्र की नटखट बच्चो की तरह तोड़−फोड़ करना बन्द कर दें और प्रकृति प्रेरणा के अनुसार सादा सरल और शान्त जीवन जियें।

मनीषी मैक्स वार्म वण्ड कहते थे यह ठीक है कि हम मृत्यु को टाल नहीं सकते। और यह भी गलत नहीं कि बुद्धिमानी के साथ जीवन जिये जाय तो मौत को वर्षों पीछे धकेला जा सकता है।

भूतकाल में लोग सैकड़ों वर्ष लम्बी जिन्दगी जीते थे। आज भी डेढ़ सौ से ऊपर आयु के मनुष्य जीवित हैं। सौ वर्ष तो न्यूनतम आयु मानी गई है यदि इस दीपक को जान−बूझकर रुझान की हरकतें न की जायँ तो वह दो सौ या उनसे भी अधिक समय तक आसानी से जीवित रह सकता है।

संसार के दीर्घजीवियों से संपर्क साध कर शोधकर्ताओं ने यह पता लगाने का प्रयत्न किया है कि वे क्योंकर इतने अधिक समय तक जीवित रह सके जितने तक कि आमतौर से जीवित नहीं रहा जाता। रहस्यों की खोज करने वालों के हाथ सादगी, सरलता, नियमितता और सन्तुष्ट प्रसन्न चित्त रहने जैसी वे सामान्य बातें ही हाथ लगी हैं जिन्हें जानते तो हम सभी हैं पर मानने से पग−पग पर इनकार करते रहते हैं।

मिस्र के सिकन्दरिया शहर से 143 मील दक्षिण पश्चिम कोण में एक गाँव है—गाजियाना। यहाँ कुछ समय पूर्व तक एक दीर्घजीवी किसान रहते थे 107 वर्षीय रजा वका। उनमें सबसे अनोखी बात यह थी कि इस उम्र में भी उनकी चमड़ी पर झुर्री नहीं पड़ी थी। दाँत सभी देखकर कोई उन्हें 40 वर्ष से अधिक का नहीं बता सकता था। पर सचाई तो सचाई ही थी। 107 वर्ष की उम्र को सिद्ध करने वाले इतने प्रमाण थे जिन्हें झुठलाया नहीं जा सकता था।

फ्राँस के सर्जन जनरल वेत्ताँरोशे अपने अनुसंधान दल समेत रजा वका के गाँव गये थे और चार दिन तक उस किसान के पास रहे थे, स्वीडन का एक स्वास्थ्य गाँधी दल डा. लेसर वेस के नेतृत्व में वहाँ पहुँचा था। अन्य दलों से भी जिज्ञासुओं के जत्थे यह जानने के लिए उस देहात में पहुँचते थे कि इतने लम्बे समय तक वृद्धावस्था के लक्षणों को रोके रह सकने का क्या कारण हो सकता है

कोई रहस्यमय बात बताने लायक रजा वका के पास कुछ नहीं थी। वह नपे तुले शब्दों में इतना ही बता पाता था। वह एक अशिक्षित और गरीब किसान है। खेतों में हो पैदा हुआ और पला है। वर्षात के अलावा और कभी छत के नीचे नहीं सोया। मैंने कभी न माँस खाया न शराब पीयी। आठ घण्टे कसकर परिश्रम—तैरना —पेड़ों पर चढ़ना मेरा दैनिक कार्य रहा है। 9 गज कपड़े से तन ढककर साल काट लेना। मेरा न किसी से दूध रहा और न कभी चिन्ताओं ने मुझे घेरा। हर्ष शोक के बुरे−भले दिन आते जाते रहे हैं पर उन सभी को खुदा की मर्जी मानकर सन्तोष के दिन गुजारता रहा हूँ।

ब्रिटेन की दो कुमारिकाएँ इतने स्नेह सौजन्य के साथ घुल−मिलकर जीवित रहीं कि उनके प्रेम को आदर्श माना जाता रहा है। दोनों साथ−साथ हँसती, खेलती, खाती, सोती और काम करती थीं इनमें तीन वर्ष बड़ी थी कुमारी जन वैडलेण्ड और छोटी थी कैरोलीन। दोनों ने घनिष्ठ आत्मीयता का भरपूर और सर्वांगीण रसास्वादन किया। अस्तु वे न केवल हर दृष्टि से सुखी सन्तुष्ट एवं प्रफुल्लित दिखाई पड़ती थीं वरन् आश्चर्यजनक रूप से दीर्घजीवी भी हुई। बड़ी जैन 105 वर्ष की उम्र तक जीवित रही और छोटी कैरोलीन 102 वर्ष तक। छोटी 11 दिन पहले मरी और बड़ी ने इतने दिन भी कठिनाई से काटे और महाप्रयाण के मार्ग पर इसलिए चल पड़ी कि संभवतः उसे फिर अपनी सहेली के साथ रहने का अवसर मिल सकेगा।

‘नार्थ चाइन हैरल्ड’ में उत्तर चीन के शाँगचुआन ग्राम के निवासी वानशियन—जिच नामक वृद्ध की आयु के हुए यह सिद्ध किया गया है कि वह 255 वर्ष तक जिया। उसका भोजन पूर्ण शाकाहारी था और दिन में दो बार ही जो कुछ खाना होता खाता था। लन्दन के थार्म्स कार्न के बारे में भी ऐसा ही दावा किया जाता है कि वे 207 वर्ष की आयु भोग कर मरे थे।

फ्राँस की कोन्टेस डैस्मण्ड कैथराइन, अमेरिका के लुई ट्रस्को लैसोस का सवीना, टेवस बार की चार लैट डैसीन के बारे में भी यही कहा जाता है कि उनने डेढ़ सौ वर्ष के लगभग का दीर्घायुष्य प्राप्त किया है। वे सभी मिताहारी थे। संसार में सबसे अधिक दीर्घजीवी बलगेरिया में पाये जाते हैं और वे लोग प्राय मांसाहार से दूर रहते हैं।

सोवियत रूस का 160 वर्षीय दीर्घजीवी दार जाबू नामक एक छोटे गाँव में शिराली मुस्लिमोव रहता था। उसके जन्म दिन पर उसके वंशजों को इकट्ठा करके चित्र खींचा गया तो उस फोटोग्राफ में 200 सदस्य उपस्थित थे। उनके वंशजों में से जो मर चुके थे वे 43 थे।

पत्रकारों द्वारा दीर्घजीवन के कुछ जादुई रहस्य जानने के लिए बहुत पूछ ताछ की पर उनके हाथों विचित्र जैसा कुछ नहीं लगा। जो उत्तर मिले वे सहज स्वाभाविक एवं साधारण जीवन क्रम अपनाये जाने की ही झाँकी कराते थे।

शिराली ने अपनी जीवनचर्या पर प्रकाश डालते हुए नपी−तुली बातें बताई। ‘मैंने जीवन भर अधिक परिश्रम किया— जानवर चराने का छोटा समझा जाने वाला पर उपयोगी सिद्ध होने वाला काम अपनाया। दीर्घजीवन की सरकारी पेन्शन मिलती है तो भी इस वृद्धावस्था में भी बेकार नहीं बैठता, जितना सम्भव है काम करता ही रहता हूँ। मैं तो क्या मेरे पूरे परिवार में कोई शराब, सिगरेट नहीं पीटा। मुझे लम्बी पैदल यात्राएँ करने का सदा शौक रहा है और जब भी अवसर मिला है उसके लिए कोई न कोई कारण ढूँढ़ लिया है। इस वृद्धावस्था में उन्हें वाकूनगर देखने की इच्छा हुई तो निकटतम रेलवे स्टेशन तक 60 मील की यात्रा पैदल तथा घोड़े पर चढ़कर पूरी की। यात्रा में उनका परपोता उनके साथ था।

उनकी नाड़ी गति प्रति मिनट 60 से 72 तक—रक्त चाप 120—75 तक रहता है जो नौजवानों की तरह सामान्य है। डाक्टर जब उनके स्वास्थ्य की परीक्षा करने के लिए तरह−तरह के उपकरणों का प्रयोग कर रहे थे तो उनने हँसते हुए कहा—पूरी तरह ठोक−बजा लीजिए, कोई कल−पुर्जा सड़ा−गला नहीं मिलेगा।

वाकू शहर उन्होंने देखा और बड़े आनन्दित हुए साथ ही उनने यह भी कहा— मैं पहाड़ी पर रहने के बदले शहर में रहना कभी पसन्द नहीं करूंगा भले ही शहर कितने ही सुन्दर और संपन्न क्यों न हो।

ईरान का सबसे वृद्ध व्यक्ति 195 वर्ष की आयु तक जिया। उसका नाम सैयद अली सलेही है। जन्म इस्फहान में फेरियूदान के समीप कोलोऊ गाँव में हुआ। यह एक बहुत छोटी देहात है और जंगली पहाड़ियों से घिरी हुई है। पत्रकार उससे भेंट करने ऊँटों पर चढ़कर गये थे और उन्हें इसके लिए लगातार तीन दिन तक यात्रा करनी पड़ी थी।

इस व्यक्ति ने कभी जूते नहीं पहने और न तरह−तरह की जीवनचर्याएँ बदली, एक ही ढर्रे का—एक ही जगह−शान्त और सन्तोषी जीवन जीता रहा। उसने कोई नशा कभी नहीं पिया। वह मरने के दिनों तक 12 मील पैदल चल लेता था। आंखें बिलकुल ठीक काम करती थीं। कानों से कम सुनाई पड़ने लगा था।

दीर्घजीवी सर जेम्स सेयर जो जिन्दगी भर में बहुत ही कम बीमार पड़े थे अपने आरोग्य का सम्बन्ध कुछ अच्छी आदतों के साथ जोड़ते। वे कहते थे मैंने छः बातों का सदैव पूरा−पूरा ध्यान रखा (1)आठ घण्टे पूरी नींद सोना (2)खुली हवा में सोना (3)चारपाई को दीवारों से दूर रखना (4)सामान्य ताप के जल में नित्य प्रातः स्नान (5)स्वल्प मात्रा में और शाकाहार प्रधान भोजन(6) नित्य टहलना।

ईरान के 191 वर्षीय सैयद अबू तलिव मीसावी ने बताया उसने हंसने, खेलने की आदतें को आरम्भ से ही अपनाया और उसे सदा मजबूती से पकड़ कर रखा। न कभी वे चिन्ताग्रसित हुए और न किसी से द्वेष निभाया।

जापान में 118 वर्ष का दीर्घजीवन प्राप्त करने वाली श्रीमती कोवायासी यास्ट का कथन है कि वह आजीवन शाकाहारी रही। चिन्ताओं से मुक्त रहकर सदा गहरी नींद सोई। न कभी नशा पिया और न कभी दवा खाई।

सिंगापुर की 133 वर्षीय श्रीमती नोरिया विगते ने कहा उसने अल्लाह पर सदा ईमान कायम रखा और हर दिन नमाज पढ़ी।

अमेरिका में सबसे अधिक आयु की नाग्रो महिला श्रीमती चार्ली स्मिथ थी जो 121 वर्ष की आयु में भी अपनी दुकान चला लेती थी। फ्राँस में श्रीमती फैलिसी 109 वर्ष की आयु पार कर गई थी। भारत इस सम्बन्ध में अभी भी सौभाग्यवान है सरकारी आँकड़ों के अनुसार अपने देश में अभी भी 60 हजार व्यक्ति सौ वर्ष की आयु को पार कर चुका।

लम्बे समय तक जीवित रहने के कारण तलाश करने में विभिन्न शोध संस्थानों ने बहुत समय और श्रम लगाया है। उन सबके निष्कर्म किसी जादुई कारण की खोज न कर सके। सभी को इसी नतीजे पर पहुँचना पड़ा कि स्वास्थ्य के सामान्य नियमों का कड़ाई एवं प्रसन्नतापूर्वक पालन करना ही दीर्घजीवन का रहस्य है।

लन्दन युनिवर्सिटी का एक वृद्धावस्था शोध विभाग है उसने जल्दी बुढ़ापा लाने वाले कारणों में मात्रा से अधिक और स्तर में गरिष्ठ भोजन को जल्दी बुढ़ापा लाने वाला कहा है।

सर हरमान वेबर ने सौ वर्ष से अधिक जीने वाले 150 व्यक्तियों से भेंट करके उनके दीर्घकालीन का रहस्य पूछा तो उनमें से कुछ उत्तर ऐसे थे जो लगभग सभी ने समान रूप से दिये जैसे [1] भूख से काफी कम खाना [2] खुली वायु से जीवनयापन करना [3] सदा कार्यरत रहना [4]चिन्ता मुक्त हँसी−खुशी की जिन्दगी जीना [5]जल्दी सोना, जल्दी उठना और निर्द्वन्द्व होकर गहरी नींद सोना [6] नियमित दिनचर्या अपनाना [7] नशेबाजी से दूर रहना।

ऐसा ही एक अध्ययन प्रो. नेलसन ने 82 दीर्घजीवियों का किया। वे भी इसी निष्क्रिय पर पहुँचे कि इनकी शारीरिक बनावट में कोई विशेषता नहीं थी और उनने कोई विशेष उपचार किये। इन सभी ने हँसी−खुशी का नियमित और व्यवस्थित जीवन जिसके फलस्वरूप वे देर तक जीवित रह सकने योग्य बने रहें।

कैलीफोर्निया के स्वास्थ्य विशेषज्ञ जान वाट्सन ने कहा— रजा वका का स्वास्थ्य हमें उन खोजों और जान डडडड से पीछे लौटने के लिए कहता है जो हमने बहुत श्रम धन और प्रयत्नों के साथ संग्रह डडडड लगता है दीर्घजीवन की कुँजी सादगी और शान्ति के अतिरिक्त और कहीं नहीं है।

ओटेगी विश्वविद्यालय के डीन सर डडडड हरकम ने यौवन में वृद्धावस्था और बुढ़ापे में यौवन का विश्लेषण करते हुए बताया है कि जो लोग बदलती हुई परिस्थितियों के साथ अपना ताल−मेल नहीं बिठा पाते वे जवानी में ही बूढ़े हो जाते हैं और जो परिस्थिति के साथ अनुकूलता उत्पन्न कर लेते है वे बुढ़ापे में भी जवान बन रहते हैं।

प्रकृति मनुष्य को जल्दी मरने नहीं देना चाहती। एक बार वृद्धावस्था तक पहुँचने के बाद वह उसे पुनः नवयौवन में वापिस लौटने का अवसर भी देती है। सोवियत रूस के जार्जिया प्रान्त में दस हजार शतायु मनुष्य हैं। इन्हीं में से एक हैं—124 वर्षीय एस. आशा। देखा गया है कि सौ के करीब आयु पहुँचने पर जो थकान आती है वह उस आयु को पार करने पर दूर हो जाती है और तरुणाई के नये चिन्ह प्रकट होने लगते हैं। जैसे नये दाँत उगना—आँखों की ज्योति में फिर से तेजी आना—कानों की श्रवण शक्ति फिर हरी हो जाना आदि।

पिछली जन गणना के संदर्भ में रजिस्ट्रार जनरल की रिपोर्ट के अनुसार भारत में ऐसे भी 40 व्यक्ति हैं जिनकी आयु 150 वर्ष से ऊपर है। इनमें से 35 देहातों में रहते हैं और 5 शहरी इलाके में। इनमें सबसे अधिक आयु के थे 178 वर्षीय काश्मीर क्षेत्र के कुलगा गाँव के निवासी रज्जाक दर, जिनका अब देहान्त हो गया। अब असम, बंगाल और मध्य प्रदेश में तीन व्यक्ति ऐसे हैं जिनकी आयु क्रमशः 168, 164 और 160 वर्ष है। शेष 36 की आयु 150 और 160 वर्ष के बीच है।

संसार भर में जब कि सुसम्पन्नता के बावजूद दीर्घजीवन का अनुपात तेजी से गिर रहा है तब भारत जैसे निर्धन देश में इस संदर्भ में इतनी सन्तोषजनक स्थिति का होना उत्साहवर्धक है।

जार्ज बर्नार्डशा ने अपनी पुस्तक “वैकटू मैथ्यूसलाह” पुस्तक में बाइबिल में वणित 969 वर्ष जीने वाले मैथ्यू का उल्लेख करते हुए हर मनुष्य को उसी का अनुगमन करते हुए दीर्घजीवन के लिए प्रयत्न करने की सलाह दी है और कहा है— सामान्य बुद्धि और डडडड डडडड के आधार पर यह लाभ हर कोई पा सकता है। कम उम्र में मर जान इस बात का चिन्ह है कि जिन्दगी की इज्जत नहीं की गई और वह रूठ कर चली गई।

डा. डडडड वेल्टरनक की पुस्तक ए. न्यू लाइफ इन ओल्ड एज’ में लिखा है—प्रस्तुत परिस्थितियों के साथ, हँसी−खुशी के साथ रह सकने का ताल−मेल बिठा लेने वाले व्यक्ति अकाल मृत्यु के बड़े कारण खीज’ से अपने आपको बचा लेते है और सरसता के द्वार सींची गई लम्बी जिन्दगी का आनन्द लेते हैं।

पिछली जन गणना में 70 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाएँ अधिक दीर्घजीवी पाई गई। ऐसे व्यक्ति 86 लाख थे। जिनमें पुरुष 4169000 और महिलाएँ 4432000 थीं।

सामाजिक स्थिति में पिछड़ी होने पर भी भारत की महिलाएँ अपेक्षाकृत इसलिए अधिक जीती हैं कि उनका जीवन क्रम एक व्यवस्थित ढर्रे पर घूमता रहता है और वे महत्वाकाँक्षाओं एवं मनोविकारों की शिकार न होकर सन्तोष और शान्ति का जीवन जीती हैं।

इन्हीं सिद्धान्तों को हम सब भी यदि व्यावहारिक जीवन में क्रियान्वित करें तो दीर्घजीवन की कुँजी सहज ही हाथ लग सकती है।


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