इस उच्छृंखलता के कान कल परसों पकड़े ही जाने वाले हैं

December 1974

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अन्तरिक्ष में भ्रमण करती उच्छृंखल उल्काएँ इतनी विचित्र हैं कि अपनी जिन्दगी मौत का विचार किये बिना उस यात्रा पर निकल पड़ती है जहाँ जाये बिना उनका काम बराबर चलता रह सकता है। किन्तु उच्छृंखलता तो उच्छृंखलता ही है। ‘छोटा−सो बड़ा खोटा’ वाली कहावत इन पर पूरी तरह लागू होती है। अपनी और दूसरों की हानि का विचार किये बिना जिन्हें कुछ भी कर गुजरने का जोश उठता है उन्हें कौन समझा सकता है वे किस की सुनते हैं।

यूनान की पौराणिक गाथाओं में एक ऐसे दुस्साहसी युवक का उल्लेख है जो नकली पर लगाकर सूर्य से मुलाकात करने निकल पड़ा था। बहुत ऊँचा उड़ने पर उसके मोम से चिपके पंख गल−जल गये और वह औंधे मुँह समुद्र में आ गिरा उसी में अन्त हो गया। इस युवक का नाम था— इकोरस।

ठीक ऐसा ही एक उल्का पिण्ड इन दिनों खगोलवेत्ताओं ने देखा है जो कभी सूर्य के और कभी पृथ्वी के इतना निकट आ पहुँचता है कि अब मरा तब मरा ही होती रहती है। चपेट में आया तो यह बुध, मंगल अथवा शुक्र से भी टकरा सकता है। यह कई बार इनकी कक्षाओं में भी जा घुसता है। सूर्य के सबसे निकट जा पहुँचने वाले पिंड में इस अकेले ने ही कीर्तिमान स्थापित किया है। उस परिधि में पहुँचकर वह तपता हुआ आग का गोला ही बन जाता है। कभी वह इतनी दूर चला जाता है वहाँ शीत की अति ही होती है।

आस्ट्रेलिया के खगोल शास्त्रियों ने इकोरस की गतिविधियों को देखते हुए उसके पृथ्वी से आ टकराने की आशंका व्यक्त की थी। यदि वह भविष्यवाणी सही निकलती तो लाखों वर्ग मील जमीन में गहरा गड्ढा हो जाता भयंकर आग लग जाती है और करोड़ों मनुष्यों का सफाया हो जाता है। सन् 1908 में मात्र हजार फुट व्यास की एक उल्का साइबेरिया के जंगल में जा गिरी थी और उसने अणुबम विस्फोट जैसे दृश्य उपस्थित किये थे। इकोरस का कलेवर तो इससे हजारों गुना बड़ा है।

इस उच्छृंखलता के कुचक्र में फँसी हुई और भी कई उल्काएँ इससे पहले भी देखी गई हैं।

हिडालगो—इरोस, अलवर्टं, अलिण्डा, एयोर, अपोलो, एडोरस, हर्मेस उल्काओं की गतिविधियाँ भी ऐसी ही पाई गई हैं। उनके ऊपर वैज्ञानिकों का ध्यान बराबर बना रहता है। वे पृथ्वी के इतनी निकट आ पहुँचती है और ऐसी विचित्र कक्षाओं में घूमती हैं कि सदा टकराव का खतरा बना रहता है।

करोड़ों वर्ष पूर्व मंगल और बृहस्पति के बीच में एक विशालकाय ग्रह था वह भी ऐसे ही अपनी शालीनता छोड़ कर किसी ग्रह से जा टकराया और चूर−चूर हो गया था। यह उल्का पिण्ड उसी की टूटी−फूटी हड्डियों से उपजे भूतप्रेत हैं और अपने बाप की तरह ही किसी से भी सिर फोड़ने के लिए उतावले फिरते हैं।

इनमें से इमेस की लम्बाई 15 मील और चौड़ाई 5 मील नापी गई थी। इसी से थोड़ी न्यूनाधिक मात्रा में उपनिकट से गुजरा था तो संसार भर के अखबारों ने उसकी आशंका डरावने शीर्षकों से व्यक्त की थी जैसे ‘संसार के सर्वनाश में पाँच घण्टे की देर’—’पृथ्वी से टकराने के लिए चल पड़ा एक क्षुद्र ग्रह’ आदि।

समझा जाता है कि इकारस पृथ्वी वालों को तो डराता, धमकाता भर ही रहेगा, पर किसी दिन सूर्य को जीभ निकाल कर और अँगूठा दिखाकर चिढ़ाने वाला यह धीठलु उद्दंड उसकी पकड़ में आ गया तो फिर भुर्ता बन कर ही रहेगा। उच्छृंखलता सदा दुहल नहीं रह सकती समय उसके कान पकड़ कर करारे तमाचे कल नहीं तो परसों लगा देगा और उसकी सारी शेखी धूल में मिल जायगी।


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