भोजन को उपयोगी वर्गीकरण की दृष्टि से छै भागों में बाँट सकते हैं—(1) जल (2) कार्बोहाइड्रेट (3) प्रोटीन (4) चिकनाई (5) विटामिन (6) खनिज तत्व। इनमें से तीन ईधन का काम करते हैं—कार्बोहाइड्रेट, वसा और प्रोटीन। शेष तीन शरीर की रासायनिक क्रियाओं में सहयोग देते हैं—इन छहों की संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है—
जल—शरीर में तीन चौथाई भाग पानी का है। उसका बहुत सा अंश हर दिन मल−मूत्र, स्वेद, साँस आदि के साथ खर्च होता है शरीर की गर्मी का सन्तुलन बनाये रहने तथा रक्त संचार आदि में भी उसका खर्च पड़ता है इस सबकी पूर्ति पानी पीकर की जाती है, खाद्य−पदार्थों में भी जलीय अंश काफी रहता है। जल वस्तुतः एक आहार ही है। वह स्वच्छ और उपयोगी हो। हानिकारक तत्वों से मुक्त हो इसका ध्यान रखा जाना चाहिए।
कार्बोहाइड्रेट—इन्हें दो भागों में बाँट सकते हैं—(1) श्वेतसार−स्टार्च—जो गेहूँ, चावल, जौ, चना, मक्का, बाजरा आदि अनाजों में, फल केला, सिंघाड़ा, अमरूद आदि में और आलू, अरबी, शकरकन्द, काशीफल आदि सब्जियों में विशेष रूप से पाया जाता है। यदि हम रोटी को कुछ देर चबाते रहें तो उसमें मिठास का स्वाद आने लगता है। मुख तथा पेट के रस इस श्वेतसार को शकर के रूप में बदल देते हैं। (2) दूसरी शुद्ध शकर है जो गन्ना, शहद, गाजर, अंगूर, किशमिश आदि खाद्य−पदार्थों में बहुलता के साथ मिलती है। इन श्वेतसार और शर्करा प्रधान खाद्य−पदार्थों की गणना कार्बोहाइड्रेट वर्ग में होती है।
चिकनाई—शरीर में चर्बी, माँस, त्वचा आदि में चिकनाई का अंश काफी रहता है। इसकी पूर्ति दूध, मक्खन, नारियल, मूँगफली, तिल, बादाम, काजू, अखरोट आदि उन पदार्थों से होती है जिनमें चिकनाई का अंश अधिक रहता है।
प्रोटीन—प्रोटीन शरीर को गर्मी तथा पोषण देने की दोनों की ही आवश्यकता पूरी करती है। इसलिए उसे खाद्य−पदार्थों में विशेष महत्व दिया जाता है। वह दूध, अनाज, फल, सब्जियों में पाई जाती है। दाल स्तर के फली वाले दो दल वाले अनाजों में चना, मटर, मूँग, उड़द, सोयाबीन, मूँगफली आदि में उसकी मात्रा विशेष पाई जाती है।
विटामिन—यह एक प्रकार का विशेष नमक है जो विभिन्न खाद्य−पदार्थों में विभिन्न वर्ग के पाये जाते हैं। छोटे रूप में इन्हें ए. वी. सी. डी. वर्ग में विभक्त कर सकते हैं। यों इनका विस्तार और वर्गीकरण काफी लम्बा−चौड़ा है। ए. वर्ग हरी पत्तियों वाले शाकों में गाजर, पपीता, दूध, दही आदि में अधिक रहता है। विटामिन बी. के लगभग एक दर्जन भेद हैं। वे आम, केला, चीकू,तोरई, मूली, पालक, सलाद, बथुआ आदि में विशेष रूप से रहते हैं। सी. वर्ग का विटामिन सन्तरा, नींबू, टमाटर, आँवला आदि खट्टे फलों में—गोभी, हरीमिर्च तथा दूसरी सब्जियों में पाया जाता है। विटामिन डी. दूध से बने पदार्थों में तथा सूर्य की धूप में विशेष रूप से रहता है।
खनिज तत्व—विटामिनों की तरह ही स्वल्प मात्रा में कुछ खनिज तत्वों की भी शरीर को जरूरत पड़ती है। हड्डियों में तो प्रायः उन्हीं की बहुलता होती है। रक्त में भी उनका अच्छा अंश रहता है। इन खनिजों में कैल्शियम और लोहा प्रधान है।
विटामिन ‘ए’—रोग निरोधक शक्ति की रक्षा—नेत्र−ज्योति एवं शारीरिक विकास का आधार। इसके अभाव में रतौंधी चर्म रोग आदि रोग उत्पन्न होते हैं।
इसका बाहुल्य गाजर, हरा सोयाबीन, हरी मटर, सरसों की पत्ती, टमाटर, सिंघाड़ा, चुकन्दर, गोभी, मक्खन, पनीर, दूध, मलाई, अखरोट, धीच, केला, रसभरी, सन्तरा अनानास आदि में रहता है।
विटामिन ‘बी.’—इसके अभाव में सशक्त ता का ह्रास भूख न लगना, कम्पन, थकान, माताओं का दूध न निकलना आदि बीमारियाँ खड़ी होती हैं।
इसका बाहुल्य—बिना पालिश किये, बिना मांड निकाले चावल में—मटर, जई, सोयाबीन, जौ, राई, चोकर समेत आटा, अंगूर, सन्तरा, अनानास, गोभी, शकरकन्द, केला, नींबू, खजूर, अंजीर, रसभरी, मतीरा आदि में रहता है।
विटामिन ‘सी.’—इसके अभाव में दाँतों का दर्द, पायरिया, सिर दर्द, वजन न बढ़ना, बच्चों का सूखा आदि बीमारियाँ उठ खड़ी होती हैं।
इसका बाहुल्य—सन्तरा, नींबू, टमाटर, अंगूर, सेब, रसभरी, गोभी, अनानास, अमरूद, केला, मकोय, पीच, गाजर, सरसों की पत्ती, गोभी, पालक आदि में रहता है।
विटामिन ‘डी.’—इसके अभाव में हड्डियाँ कमजोर पड़ती हैं और उनमें अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं।
इसकी बहुलता दूध, पनीर, मक्खन में रहती है। सवेरे की धूप सेकने एवं तेल मालिश करके धूप में बैठने से विटामिन ‘डी.’ शरीर को अनायास ही मिलता है।
विटामिन ‘ई.’ और ‘के.’ इसके अभाव में रक्त पतला पड़ जाता है और उसमें जमने की शक्ति घट जाती है।
इसे प्राय सभी प्रकार की हरी तरकारियों में और गेहूँ के चोकर में पाया जाता है। गोभी तथा पालक में यह अधिक रहती है।
खनिज लवणों में—कैल्शियम, लौह, आयोडीन, सिलिकन, मैगजीन आदि ऐसे हैं जिनकी शारीरिक सन्तुलन बनाये रहने के लिए अतीव आवश्यकता रहती है। वे कम पड़ने लगे तो हड्डियों की मजबूती, रक्त की सक्षमता, विजातीय तत्वों को बाहर निकालना, स्नायु संस्थान की बलिष्ठता आदि विशेषताएँ नष्ट होने लगेंगी ओर शरीर दुर्बल एवं रुग्ण रहने लगेगा। इन खनिजों—लवणों का बाहुल्य निम्न खाद्य−पदार्थों में पाया जाता है—
कैल्शियम—गाजर, गोभी, चुकन्दर, मूली, दूध आदि।
लौह—पालक, केला, सेब आदि।
आयोडीन—गाजर, गोभी, टमाटर आदि।
सिलिकन—सेब, मूली, गाजर, गोभी आदि।
मैंगनीज—खीरा, ककड़ी, गाजर, टमाटर, मटर एवं हरी सब्जियाँ।
गाजर में बिकने वाले विटामिनों के कैप्सूलों तथा गोलियों की निरर्थकता पर एक लम्बा लेख लिखते हुए अंग्रेजी की प्रख्यात पत्रिका ‘लाइफ नेचुरल’ में उन्हें ‘नकली विटामिन’ बताया गया है और कहा गया है कि इनसे मन बहलाने के अतिरिक्त और कोई लाभ नहीं होता। स्वाभाविक खाद्य−पदार्थों के साथ यदि वे सन्तुलित क्रम के अनुसार ग्रहण नहीं किये गये हैं और अलग से खाये गये हैं तो बिना पचे ही बाहर निकल जायेंगे।
डा. जे. ई. आर. मैकडोनेध ने अपने ग्रन्थ ‘प्रेक्टिकल नेचर क्योर’ में औषधि रूप में विटामिनों के सेवन को निरर्थक बताया है, उनका कहना है कि जिन खाद्य−पदार्थों में विटामिनों घुले रहते हैं उनमें अन्य रसायनों के साथ उनका उपयोगी सन्तुलन बना रहता है। जब वे अलग से निकाल लिये जाते हैं तो सहयोगियों के अभाव में उनकी प्रकृति ही बदल जाती है और लाभ के स्थान पर हानि करने लगते हैं। रसायन विशेषज्ञ डा. जान प्राईड ने लिखा है—खाद्य−पदार्थों में से केवल विटामिन भाग अलग निकाल कर उन्हें सेवन करने से उस आवश्यकता की पूर्ति नहीं हो सकती जो प्रकृति प्रदत्त खाद्यों के साथ ग्रहण करने से होती है। अलग निकाले हुए विटामिनों का सेवन करने के परिणामों पर यदि विचार किया जाय तो प्रतिफल निराशाजनक ही सामने आवेगा।
भोजन सन्तुलन का यह अनुपात सर्वोत्तम है। (1) 20 प्रतिशत उबली हुई सब्जियाँ (2) 20 प्रतिशत कच्ची सलाद (3) 20 प्रतिशत दूध, दही (4) 20 प्रतिशत दाल, रोटी, चावल आदि अन्न। दिन में दो बार से अधिक भोजन नहीं करना चाहिए। प्राय दूध, छाछ, नींबू, शहद जैसा कोई गुणकारी पेय लिया जा सकता है।