सेवा से सत्य-प्राप्ति

June 1971

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गुफा में रहकर भी आकाश में महल बनाये जा सकते हैं और जनक की तरह महलों में रहने वाला भी विरक्त योगी हो सकता है, अपने मन को साधने की बात है तो वह गुफा में भी हो सकती है और शान-शौकत के बीच रहते हुए भी। मन, महत्वाकांक्षाओं के पंख लगाकर आकाश में विचरण करता रहे तो गुफा में रहने से कोई फायदा नहीं उससे शान्ति नहीं मिल सकती, अपने देश वासियों की सेवा करते हुये यदि कोई मोह उत्पन्न नहीं होता तो उससे वैभव के बीच रहकर भी परम शान्ति मिल सकती है।

मेरा भी लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना है, पृथ्वी के नश्वर राज्य की मुझे जरूरत नहीं है मैं भी परलौकिक राज्य की कामना करता हूं, पर उसके लिए गुफा चुनने की आवश्यकता नहीं हुई। मेरी गुफा मेरे साथ है। आत्म-दर्शन व्याकुलता मेरे हृदय में है सत्य को पाना ही मेरा इष्ट है उसके लिये मैंने सेवा को ही अपनी साधना चुना इसी जरिये मानवता की सेवा चाहता हूं। प्राणि मात्र के साथ मेरी आत्मा घुल जाना चाहती है, और शत्रु दोनों को एक भाव से देखता हुआ मैं किसी से घृणा या राग करता मुझे लोग घृणा से देखेंगे तो भी मैं उनसे प्यार ही करूंगा। जाति की सेवा से ही मुझे मुक्ति मिलेगी ऐसा मुझे पूरा विश्वास है।


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