भगीरथ सुरसरि लाने चले (Kavita)

June 1971

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

भगीरथ सुरसरि लाने चले ! विश्व के अग्नि-कुण्ड में मग्न, मांगती है मानवता त्राण ! द्रवित सविता के तेजोवलय, हिमालय को पिघलाने चले !! भगीरथ सुरसरि लाने चले !

घुमड़ कर कण्ठ-देश में रुद्ध, ऋचाओं का वह बादल-राग ! सुधा के मेघ मंद स्वर मौन, बुझेगी जिनसे युग की आग ! धधकते अधरों तक जो प्राण, बादलों से अंगड़ाने चले !! भगीरथ सुरसरि लाने चले !

ऊषायें जग, इठलाने लगीं, निशाओं के कांपे है गात, तिमिर का यह अन्तिम त्यौहार, सिहरती तारों की बारात ! खिला शतदल से जन-जन प्राण, अरुण-से, तप मुस्काने चले !! भगीरथ सुरसरि लाने चले !

प्रभंजन बुझा सके कब ‘ज्योति’ प्रलय के सतत् उठे भूचाल, प्रात का करने को अभिषेक, रात भर जलती रही मशाल ! परि-पलकों में रोके सिन्धु, लक्ष्य को अर्घ्य चढ़ाने चले !! भगीरथ सुरसरि लाने चले !

प्राण का कन-कन देता रहा, मगर कब दानी बना दधीचि, कल्पतरु के घर भूखी-भीड़ निरख, जो जगा दृगों को सींच ! खुलें, युग के अक्षय भंडार, दीनता-दुर्ग ढहाने चले !! भगीरथ सुरसरि लाने चले !

कमंडल से ढुलका पीयूष, उमड़ते अंजलियों के ओक, असंख्यों तृषित प्राण पी गये, बुझी कब तृषा, दुखी है लोक ! देव, इतने उदार हो गये, सिन्धु बनकर लहराने चले !! भगीरथ सुरसरि लाने चले !

प्यार का पा अगाध स्पर्श, पिघलते गये प्राण-पाषाण, नींद का उतरा नहीं खुमार, विदा के क्षण पहुंचे है आन ! मिलन का देकर मधु सामीप्य, विरह का ज्वार जगाने चले !! भगीरथ सुरसरि लाने चले !

दानि, होगा जब हमसे दूर, दान होगा जब अपने पास ! दीनता जब होगी धनवान, प्राप्ति का तब होगा विश्वास !! पास रहकर, जिससे थे दूर-दूर रह, पास बुलाने चले ! बिसूरेगी, बरसेगी याद, विरह-सुधियां सुलगाने चले !! भगीरथ सुरसरि लाने चले !

*समाप्त*


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118