भूत की मान्यता निराधार भी साधारण भी-

June 1971

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मैन चेस्टर की टुल्ली स्ट्रीट पर स्थित छोटे से मकान के पास जैसे ही प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री डॉ0 जे0 डी0 विलियम्स पहुंचे घर के लोगों ने उनका स्वागत किया। इस घर में पति-पत्नी और उनके दो बच्चे कुल चार ही व्यक्ति रहते थे। चारों तब घर में ही उपस्थित थे।

घटना के विस्तार में जाने से पूर्व यह बता देना आवश्यक है कि हम भारतीयों की यह जो मान्यता है कि धन, पुत्र, वासना आदि पर आसक्ति रहते यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसे कई बार मृत्यु के बाद बहुत समय तक किसी भूत-प्रेत की योनि में रहना पड़ता है। इसीलिये भारतीय संस्कृति में सदैव ही अनासक्त जीवन जीने की प्रेरणा दी गई है। चार आश्रम- (1) ब्रह्मचर्य विद्याध्ययन, (2) गृहस्थ, (3) वानप्रस्थ, (4) और संन्यास में अन्तिम दो की अधिकाँश शिक्षायें और कर्त्तव्य ऐसे है जिनमें प्रत्येक व्यक्ति को धीरे-धीरे परिवार धन-सम्पत्ति का मोह हटाकर अपन मन परमार्थ-साधना में लगाना पड़ता था। संन्यास दीक्षा के बाद तो वह सब कुछ त्याग कर अपने आप को उस तरह अनुभव करता था जैसे मकड़ी अपने बने बनाये जाले को स्वयं खाकर संतोष अनुभव करती है। तक जिसके पीछे बेटे होते थे वह उनकी आवश्यकता की सम्पत्ति उन्हें देकर शेष लोक-कल्याण में लगा कर घर छोड़ देते थे और आत्म-कल्याण की साधना में जुट जाते थे।

मोहान्ध व्यक्तियों के प्रेत-योनि में जान का कोई वैज्ञानिक आधार तो अभी समझ में नहीं आता किन्तु बौद्धिक और प्रामाणिक आधार अवश्य है। हम में से अनेकों को भूत का सामना करना पड़ जाता है पर यदि सामान्य लोगों की बात को भ्रम या अन्धविश्वास माने जैसा कि अनेक लोग किसी स्वार्थ वश या किसी को धोखा देने के लिये भी भूत-प्रेत की बात कहकर डरा देते हैं तो भी संसार में कई ऐसी घटनायें घटी है जिनमें इस विश्वास को विचारशील लोगों का भी और सामूहिक समर्थन भी मिला है।

यह एक घटना ऐसी ही है और उसे स्वयं डॉ0 जे0 डी0 विलियम्स ने स्वीकार भी किया है। दिल्ली स्ट्रीट के अनेक लोगों ने इस घटना को अपनी आंखों से देखा। श्री विलियम्स महोदय ने इस घटना को 3 सितम्बर 1968 के इन्दौर से छपने वाले दैनिक अखबार नई दुनिया में छपाया भी उनका यह लेख विश्व के अनेक अखबारों में छपा और बहुत समय तक लोगों की चर्चा का विषय भी बना रहा।

घर की स्त्री श्री विलियम्स को एक आलमारी के पास ले गई। यहीं पर वह भूत था जो दिखाई तो नहीं दे रहा था पर पूछे गये किसी भी प्रश्न और अपनी उपस्थिति का प्रमाण एक विशेष प्रकार की खटपट के द्वारा दे रहा था। उसके संकेत बड़े ही शिक्षित व्यक्तियों जैसे थे। अँग्रेजी वर्णमाला के प्रथम अक्षर “ए” के लिये वह एक बार (खटपट) की आवाज करता था। इसके आगे जो अक्षर जितने नम्बर पर पड़ता है उस अक्षर के लिये उतने ही बार बिना रुके खट्-खट्-खट् का उसने संकेत बना लिया था उसी के माध्यम से वह पूछे गये प्रश्नों के उत्तर भी देता था।

यह खेल सारे दिन चलता रहा। घर के दूसरी आरे ऐसी कोई वस्तु नहीं थी कि वहां से खट्-खट् की आवाज आ रही होती लोगों ने सारी सम्भावनायें पहले ही छानबीन लीं थी। श्री विलियम्स को तो बहुत देर बाद बुलाया गया था। उनकी पराविद्या में रुचि होने के कारण ही उन्हें सूचना दी गई थी। उन्होंने सब जांच पड़ताल कर ली पर उन्हें कोई भौतिक कारण न मिला जिससे खट्-खट् का सूत्र समझ में आता।

स्त्री ने सर्वप्रथम श्री विलियम्स का परिचय कराया। फिर पूछा- क्यों तुम यहाँ उपस्थित हो तो भूत ने उत्तर में सर्वप्रथम बिना रुके 24 बार खट्-खट् की (इससे अँग्रेजी के वाई अक्षर की सूचना मिलती है।) फिर थोड़ा रुक कर 5 बाद (ई) फिर रुककर 19 बार (एस) खट्-खट् की इस तरह उसने अंग्रेज में “यस” कहकर अपने वहाँ होने की सूचना दी।

इसके बाद श्री विलियम्स ने उससे अनेक प्रश्न पूछे-भूत ने उनमें से अनेक प्रश्नों के उत्तर दिये पर ऐसे किसी भी प्रश्न से सहमति प्रकट नहीं कि न उनके उनके उत्तर ही बताये जो मनुष्य जाति के लिये हितकर नहीं होते। उदाहरण के लिये जुये, सट्टे, शराब सम्बन्धी प्रश्न उसने नहीं बताये। भूत का कहना था जिन बातों से वह स्वयं दुःखी है वह बात नहीं बतायेगा। पर इससे एक बात स्पष्ट हो गई कि मनुष्य को मृत्यु के बाद जीवन की अनेक घटनाओं की ही नहीं भाषा आदि की भी जानकारी रहती है और उसमें भविष्य को भी जानने की क्षमता आ जाती है जो आत्मा के गुण का ही परिचायक है।

एकाएक श्री विलियम्स ने पूछा-”आप कौन हैं क्यों उपस्थित हुये है” इस प्रश्न के उत्तर में उसी खट्खट् विधि से उसने बताया-मैं इसी मकान में रहता था, जब मैं वृद्ध था तभी मैंने अपने घर वालों से कह दिया था कि मुझे कब्रिस्तान में दफनाया जाये पर मेरी इच्छा के अनुसार मुझे नहीं दफनाया गया।”

इसके बाद मैंने लोगों से पूछ कर उस मकान में रहने वाले पहले किरायेदारों का पता लगाया तो उनसे मालूम हुआ कि सचमुच उनके पिता ने मृत्यु से पूर्व इस तरह की इच्छा व्यक्त की थी।

एक और विलक्षण बात थी कि यह भूत तभी तक यह खट्-खट् की आवाज करता था जब तक घर में सबसे छोटा वाला लड़का उपस्थित रहता था। पहले कई दिन जब-जब स्कूल या घर से बाहर रहा भूत ने उपस्थिति नहीं दर्शायी। उस दिन श्री विलियम्स और एक पादरी को लाये। इनकी उपस्थिति में भूत एक दो बातों के सामान्य उत्तर दे सका था कि लड़का जो आज कई दिन छिपा-छिपा रह रहा था। उसे अस्पताल ले जाना पड़ा। इसके बाद उसके माता-पिता को भी बच्चे की ओर से बड़ी चिन्ता हो गई उन्होंने दूसरा मकान ढूंढ़ कर उस मकान को ही बदल लिया।

श्री विलियम्स ने भूत सम्बन्धी जिन तथ्यों का पता लगाया उनमें से कई जानकारी की दृष्टी से बड़े उपयोगी हो सकते हैं। भूत किसी का अहित नहीं कर सकता यदि सकता है तो वह कोमल और भीरु मस्तिष्क वालों को डरा सकता है या शरीर पर किसी तरह का नियंत्रण कर सकता है। दूसरे भूत को जिस वस्तु में इच्छा होती है वह केवल उतना ही सोचता रहता और उसी का दुःख करता रहता है। जब तक उस अवस्था में भी उसकी यह इच्छा शिथिल नहीं पड़ जाती तब तक मृत्यु वाली निद्रा नहीं आती जीवात्मा दूसरे जन्म की तैयारी नहीं कर पाती।

निष्कर्ष यह कि जन्म-मरण के चक्र में परलोक और पुनर्जन्म के रूप में हमारी इच्छायें ही हमें नचाती हैं हमें अपनी इच्छाओं को अपने वश में करके संसार के यथार्थ को जानना और प्राप्त करना चाहिये।

शैतान का वश नहीं चलता-

महर्षि कबीर अपने शिष्यों से कहा करते कि ‘रोज सवेरे शैतान आकर मुझसे प्रश्न करता है-’आज तू क्या खायेगा ?” मैं जवाब देता हूँ- ‘मिट्टी खाऊँगा।’ वह पूछता है-’क्या पहनेगा ?’ मैं जवाब देता हूँ-’मुर्दे का कपड़ा।’ वह फिर पूछता है ‘रहेगा कहाँ !’ मैं जवाब देता हूँ-’श्मशान में।’

मेरे उत्तर सुनकर शैतान मुझे बड़ा अभागा बताकर चल देता है। क्योंकि मैं उन सभी चीजों से अनिच्छा प्रकट करता रहता हूं कि जिनमें वह संसार के प्राणियों को फंसाकर मनुष्य से राक्षस बना देता है। इसी से उसका वश नहीं चलता।


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