भवानी शंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रुपिणौ

June 1971

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आदि शक्ति गौरी को श्रद्धा और देवाधिदेव परमात्मा को विश्वास के रूप में भजन करने वाला सिद्धी प्राप्त करता है। बाइबिल की मान्यता है विश्वास पूर्वक की गई प्रार्थना बीमार को भी स्वस्थ कर देती है (एण्ड दि प्रेयर आफ फेथ शल सेव दि सिक)।

हमारे देश में यह विश्वास जनजीवन में गहराई तक घुला हुआ है ऐसे अनेक अवसर आते हैं जब विश्वास पूर्वक की गई ईश्वरीय प्रार्थनायें चमत्कारिक लाभ देती है तथापि आज का तर्कवादी जगत पश्चिम के उदाहरण देकर कहता है यह मान्यतायें विभ्रम है। लोग यह नहीं जानते कि जिन बातों को इस देश का अन्धविश्वास कहा जाता है उन्हीं को पश्चिम में विज्ञान की भांति मानते और लाभ प्राप्त करते हैं।

अमरीका के “सीनेट पब्लिकेशन लीडर एवरेट डिक्शन आफ इलियास” के जीवन की एक घटना है। 1947 में अचानक उनकी दाँई आँख की रोशनी जाती रही। डॉक्टरों ने उस आँख को निकलवा देने की सलाह दी। डिक्शन को यह शब्द बाण की तरह हृदय में चुभ गये। सोचने लगे यदि मनुष्य इतना बेबस है तो भगवान् ने उसे बनाया ही क्यों ? दुःख और निराश्रित अवस्था न आती ते मनुष्य आध्यात्मिक सत्यों को कहाँ समझता ? भगवान् की याद आते ही उन्हें याद आये यह शब्द- “प्रेयर इज ए डाइरेक्ट पाइपलाइन टु गॉड” प्रार्थना परमात्मा तक पहुँचने का सीधा मार्ग है” उन्होंने डॉक्टर की बात अमान्य कर दी दुबारा चुनाव में खड़े होने का निश्चय त्यागकर इलियास चले आये। एक दिन रात में वे अत्यन्त दुःखी होकर भगवान् की प्रार्थना के लिये बैठे। एक क्षण के लिए आत्मा परमात्मा में विलीन हो गई एक क्षण की सुखद अनुभूति को जब तक स्मरण हो गई एक क्षण सुखद अनुभूति को जब तक स्मरण करें समाधि टूट गई और उन्होंने एक सुखद आश्चर्य अनुभव किया कि उनकी आँख की रोशनी लौट आई है और अब वे पहली आँख से भी अधिक साफ देख सकते थे।

केंटकी के एशबरी कॉलेज के एक छात्र को समाचार मिला- तुम्हारी माँ मरणासन्न स्थिति में है डॉक्टरों ने घोषित कर दिया है कि मृत्यु दो-ढाई घण्टे से अधिक नहीं टल सकती। डॉ0 एल्सन इस घटना का विवरण देते हुये लिखते हैं यह समाचार पाते ही लड़का वहाँ गया जहाँ अपने राष्ट्रपति के जीवन काल में श्री आयजन होवर और उनकी धर्म-पत्नी नित्य प्रार्थना किया करते थे। युवक ने भरे अन्तःकरण से परमात्मा से प्रार्थना की प्रभो! मेरी माँ कि स्थिति में सुधार हुआ, डॉक्टरों ने परीक्षा की सब कुछ अस्वाभाविक गति से बदल रहा है शरीर का कष्ट दूर हो रहा है डॉक्टर एक - दूसरे का मुँह ताक रहे थे और कह रहे थे “गाड अच्छी हो गई और काफी दिन तक स्वस्थ जीती रही।

“दि मैन इन दि नेक्ट रूप”-बगल के कमरे का आदमी शीर्षक अध्याय में अपनी पुस्तक “सत्य की खोज” (ए सर्च आफ ट्रथ) पुस्तक में श्रीमती रुथ मान्ट गुमरी ने लिखा है-मैं अस्पताल में थी मेरे बगल के कमरे में एक मरीज के जोर-जोर से खाँसने की आवाज आ रही थी। नर्स ने बताया-”बेचारा यक्ष्मा से पीड़ित है आज रात किसी भी समय उसकी मृत्यु हो सकती है” यह सुनते ही मुझे बड़ा दुःख हुआ। लेटे-लेटे परमात्मा से प्रार्थना करने लगी- है प्रभु! उस बीमार को नया जीवन दो- प्रार्थना करते -करते न जाने कब नींद आ गई। प्रातःकाल उठी तो रोगी की खाँसी की आवाज नहीं सुनाई दी। नर्स को बुला कर पूछा- नर्स ने बताया रोगी अच्छा हो रहा है जिस दिन मैं अस्पताल से छूटी उसी दिन उसे भी ओ.के. सार्टीफिकेट देकर अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।

विश्वास पूर्वक की गई ईश्वर-प्रार्थना से कुछ भी असम्भव नहीं।


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