फिर न भटकना पड़े इतर मानव योनियों में

June 1971

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

“ब्रिजेट एक सभ्य शिक्षित घराने की स्त्री है, उस पर पागलपन का आघात हो जाया करता है। उसका मनो-वैज्ञानिक चिकित्सक उससे कुछ पूछना चाहता है तो वह कहती है-मैं तो चुहिया हूँ मुझे दफना दो ? इतना ही नहीं जब कभी विक्षिप्तता की स्थिति होती वह हू-बहू चूहे के समान दोनों हाथ पैरों से रेंगने लगती और किसी सूराख के पास जाकर, किसी सन्दूक के पास जाकर उसके नीचे छुपने का प्रयत्न करती कभी-कभी वह सूराख ढूंढ़ने के लिए पूरी इमारत छान डालती जब लोग उसके पास पहुँचते और कहते-ब्रिजेट तुम यह क्या कर रही हो तो-वह कहती मैं तो चूहा हूँ और मर जाना चाहता हूँ।”

“सामान्य स्थिति में ब्रिजेट खाना पकाती, घर वालों को खिलाती कढ़ाई-बुनाई से लेकर घर के दूसरे काम-काज भी निबटाती है किन्तु मस्तिष्क की पेटी में न जाने क्या भरा है भगवान ने कि एक पुर्जे की ढील व्यक्ति को न जाने क्या से क्या बना देती है। ब्रिजेट जैसी भद्र महिला अपने आपको चुहिया कहती है और एकबार नहीं जब भी वह पागलपन की स्थिति में होती है उसके सारे क्रिया-कलाप हाव-भाव मुँह का जल्दी-जल्दी चलाना आदि सारी क्रियायें ठीक चूहों की तरह होती है। यह आश्चर्य नहीं कोई महत्व पूर्ण तथ्य है जो अभी वैज्ञानिकों की दृष्टि में नहीं आयें।”

प्रस्तुत घटना प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक प्रोफेसर जेम्स ने अपनी पुस्तक-मनोविज्ञान के सिद्धान्त (प्रिन्सिपुल्स आफ साइकोलॉजी) में वर्णन किया है ऐसी एक नहीं अनेक घटनायें डॉक्टरों मनोवैज्ञानिकों और वैज्ञानिकों के सामने आती है पर इसे पाश्चात्यों का अन्ध-विश्वास ही कहना चाहिए कि जब भी ऐसी बातें आती है बजाय इसके कि कोई नई धारणा बनाई और नई शोध की जाये वे लोग पिटे-पिटाये “विकासवाद के सिद्धान्त” को आगे रख देते हैं और उसी के अनुसार घटना को तौलने परखने लगते हैं फलस्वरूप घटनाओं का कोई उचित निष्कर्ष और निराकरण किये बिना अध्याय जहाँ का तहां समाप्त कर देना पड़ता है।

हर्बर्ट स्पेन्सर का कथन है कि गाय का बछड़ा जन्म लेते ही गाय का सा रँभाना, चलना, फिरना आदि प्रारम्भ कर देता है यह उसकी सहजात क्रिया है अभ्यास से एक नस्ल के संस्कार दूसरी नस्ल (लाइक प्रोड्यूसेस) में चले आते हैं। यदि ब्रिजेट पागलपन की अवस्था में जर्मनी भाषा बोली हिब्र स्वाहिली फ्रेंच या जापानी बोलती और उन जैसी ही क्रियायें करती तो सहजात-क्रिया का तर्क यहां भी उचित बैठ जाता कि चूहे और मनुष्य में कोई सहजात सम्बन्ध न होने पर भी ब्रिजेट का अपने आपको चूहा बताना क्या यह तथ्य नहीं है कि ब्रिजेट के शरीर में विकसित चेतना कभी चूहे जैसी निकृष्ट योनि में रही होगी। मस्तिष्क की किसी गड़बड़ से वह संस्कार जागते हैं और वह अपने आपको चूहा समझने लगती है। अवचेतन मन के यह संस्कार ही है जो निद्रा की अचेतना में विचित्र स्वप्न सृष्टि का सृजन करते हैं।

निद्रा की अवस्था के बोध कई बार जागृत अवस्था में भी हो सकता है और पागलपन की स्थिति में मनुष्य का मन उन पुराने संस्कारों और पूर्व जन्मों की स्मृतियां उसके मस्तिष्क में आने लगती है उस समय मन और वर्तमान शरीर का सम्बन्ध विच्छेद हो जाने से मनुष्य को अपनी स्थिति का ज्ञान नहीं रहता। कौलोनी हैच मेन्टल हॉस्पिटल के असिस्टेंट मेडिकल ऑफिसर डॉ0 अलेक्जेंडर कैनन ने एकबार लैसेंट अखबार में एक लड़की का दिलचस्प विवरण छापा उसे पढ़ने से कठोपनिषद् का दर्शन याद आता है-

आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु। बुद्धिन्तु सारथिं विद्धि मनः प्रग्रहमेव च॥

हे नचिकेता ! यह शरीर तो रथ है वाहन है, उसका स्वामी जीवात्मा (आत्म-चेतनता) है बुद्धि उस रथ को हांकने वाला सारथी और मन लगाम है जो इन्द्रिय रूपी घोड़ों को पकड़ कर रखती है।

बुद्धि रूपी सारथी सो गया, मन की लगाम ढीली पड़ गई तो उच्छृंखल इन्द्रियों के घोड़े शरीर रथ को ले जाकर किसी गड्ढे में पटक देते हैं और तब जीवात्मा को अपनी विकास यात्रा को जारी रखने के लिए दूसरे रथ की खोज में चल देना पड़ता है जब तक जीव अपनी पूर्णता को प्राप्त नहीं कर लेता यही क्रम चलता रहता है। लैसेंट अखबार में प्रस्तुत घटना यह बताती है कि मनुष्य एक नहीं हजारों रथ तोड़ चुका होता है तब कहीं मनुष्य शरीर में आता है इसलिये “बड़े भाग्य मानुष तन पावा-सुर दुर्लभ सद्ग्रन्थनि गावा” का सिद्धान्त भारतीय आचार्यों ने दिया।

इस लड़की के मस्तिष्क में जब वह 13 वर्ष की थी सूजन का रोग उत्पन्न हो गया। 3 वर्ष तक कष्ट पूर्ण स्थिति के बाद उसमें एक नहीं अनेक नये व्यक्ति उदय हो गये।

कभी वह अपने को वस्तु कहती और उस स्थिति में जैसे कोई मिट्टी का ढेला पेड़ पौधा निश्चेष्ट होता है उसी प्रकार निश्चेष्ट हो जाती (2) कभी वह अपने को मैमीवुड कहती और जैसे कोई 4-5 वर्ष की बालिका बात करती है ठीक उसी टोन मुद्रा, हाव-भाव से बातचीत करती और बाल्यावस्था की अनेक बातों का वर्णन करती (3) कभी-कभी वह अपने को “टाम्स् डार्लिंग” कहती इस स्थिति में भी उसके भाव बच्चों जैसे ही होते पर क्रियायें और बोली बदल जाती थी (4) कभी वह अपने को एक मास्टरनी कहती, पढ़ाती और सामने बैठा हुआ कोई व्यक्ति उसके कहने के अनुसार पढ़ता नहीं तो मारने लगती (5) कभी-कभी वह अपने आपको मेमना कहती और मेमने की सी बोली और भाव भंगिमा व्यक्त करने लगती (6) उसकी योग्यता बिलकुल नहीं थी पर कभी-कभी वह अपने को चित्रकार कहती उस समय वह बिना किसी पूर्वाभ्यास के ऐसे सुन्दर चित्र बनाती कि देखने वाले दंग रह जाते। 15 अगस्त 1932 के लीडर अखबार में भी यह समाचार छपा था। विकास वाद के सिद्धान्त में निष्क्रिय जड़ पदार्थों की कोई अवस्था नहीं है जबकी यह लड़की कई अवस्थाओं में अपने आपको जड़ कहती। जड़ योनियों का वर्णन केवल मात्र भारतीय पुनर्जन्म सिद्धान्त में है और इस तरह वह घटना जहाँ विकासवाद और प्राणियों में सहजात .... का खंडन करती है वहाँ इसे सत्य का प्रतिपादन कि जी विशुद्ध रूप से स्वतन्त्र अस्तित्व है वह कर्म वश योनियों में भ्रमण करता रहता है।

आत्मा के गुण है सूक्ष्मता, इन्द्रियाधिष्टाता, .... चेतनता, अजर और अमर इन गुणों की पुष्टि करने और जीवात्मा के अनेक योनि शरीरों में आवागमन की .... करने वाली महत्वपूर्ण घटना-’ह्यूमन पर्सनालिटी भा में इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक डॉ0 मायर्स ने .... किया है। 18 वर्षीया अमरीकन लड़की “एनो विन्सस” .... मस्तिष्क में विक्षिप्तता आ गई उस समय वह कई बार अपने आपको क्वेकर सम्प्रदाय का सदस्य बताती और समय जो भाषण देती वे ठीक क्वेकर दर्शन के जैसे होते। उसने अपने आपको एकबार इंग्लैण्ड की रानी बताया और उस समय जो बातें कहीं पता लगाने पर .... हुआ कि वे सब सच थी।

निश्चेष्ट अवस्था में वह आँखें बन्द करके कोई पुस्तक पढ़ सकती थी। बहुत समय तक उस पर .... करने वाले डॉ0 “आयरा बैरोज” ने इस अवस्था में अंधेरे कमरे में एक सुई व धागा दिया और उस सुई धागा पिरोने के लिये कहा तो उसने बड़ी आसानी से धागा पिरोकर यह सिद्ध कर दिया कि आत्मा स्वयं प्रकाश .... है उसे देखने के लिये आँखें आवश्यक नहीं आँख, कान, नाक आदि सब उसकी अतीन्द्रिय शक्तियाँ है। वह दूसरे .... में रखी घड़ी में क्या बजा है यह बताकर सिद्ध करती है कि आत्मा के लिये करोड़ों मील दूर तक देखने में भी .... बाधा नहीं। वह उल्टी किताब पढ़ लेती थी और सबसे अधिक आश्चर्य की बात यह थी कि वह सिर के ऊपर .... खोलकर जहाँ हिन्दू चोटी रखते हैं उस स्थान से पुस्तक .... देती थी मानों चोटी का स्थान आँख रही हो। इस तरह वह एक प्रमाण थी भारतीय योग विद्या की इस मान्यता का कि चोटी वाले स्थान से व्यक्ति की चेतना ब्रह्माण्ड व्यापी आदि चेतना से कैसा भी संपर्क-सम्बन्ध स्थापित कर सकती है।

यह लड़की सिर के बल एक हाथ के बल खड़ी हो जाती, कभी अपने को कुत्ता कहती और इस तरह भौंकने लगती कि पड़ोसी कुत्ते के भ्रम में पड़कर स्वयं भी भौंकने लगती उस स्थिति में वह पानी पीती नहीं ठीक कुत्तों की तरह ही जीभ से चाटती। उसने “हेस्टी पुडिंग” पुस्तक कभी भी पढ़ी नहीं थी तो भी उसके अध्याय के अध्याय और वह भी सोती हुई अवस्था में अपने दाहिने हाथ से लिख देती। लतीनी फ्रांसीसी भाषायें उसने कहीं भी पढ़ी नहीं थी पर लिख भी लेती और बोल भी लेती थी।

एक ही शरीर में अनेक व्यक्तित्व अपने आम में विलक्षण आश्चर्य थे उन्हें देखकर डॉ0 मायर्स और आयरा बैरोज को भी कहना पड़ा था-निःसन्देह मनुष्य विकासवाद से भी अधिक विलक्षण है जिसे हम वैज्ञानिक भी नहीं जानते।

इन सब घटनाओं को देखकर हमें अपने महर्षियों के तत्व-ज्ञान की ओर विवश होकर मुड़ना पड़ता है कि मनुष्य जीवन की इतनी अच्छी व्याख्या और विकल्प कोई अन्य ज्ञान व विज्ञान नहीं जितना कि भारतीय तत्व दर्शन। यजुर्वेद कहता है-

पुनर्मनः पुनरायुर्म आगन्पुनः प्राणः पुनरात्मा। म आगन् पुनश्चक्षुः पुनः श्रौत्र म आगन्। वैश्वानरोऽदब्धस्तनूपा अग्निर्नः पातुः दुरितादवघात्॥

मुझे यह मन फिर से प्राप्त हुआ है। प्राण फिर से मिला है। यह देह भी पुनः मिली है आंख और कान फिर से मिले है। मुझे पुनर्जीवन मिला है हे सर्वजन हितकारी अग्नि देव ! मुझ दुराचार और पाप से बचाओ ताकि हम इस महान् जीवन का सदुपयोग कर सकें फिर मानवेत्तर योनियों में न भटकना पड़ें।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118