शराब जितना आप जानते हैं उससे भी खराब

June 1971

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एवरडीन (ग्रेट ब्रिटेन) का रहने वाला ट्रिमेन्स डीलीरियम बहुत शराब पीता। लोगों ने समझाया भी मित्र अपनी मृत्यु असमय क्यों बुलाते हो पर उसने किसी कि एक न सुनी। एक दिन शराब पीकर वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा। देखने में जान पड़ता वह अतीन्द्रिय लोक में किसी से बात कर रहा है। फिर वह बुरी तरह चीख-चीख कर रोने लगा। भयानक अवस्था में उसकी मृत्यु हो गई।

डॉक्टर जेम्स किक्र शव का पोस्टमार्टम कर रहे थे। मस्तिष्क चीरा गया तो बदबू आई, स्त्रीज से थोड़ा द्रव निकाल कर डॉक्टर किक्र ने उसे सूँघा तो उल्टी होने को आई, एक अलग पात्र में रखकर माचिस जलाकर पास ले गये तो वह भभक कर जल उठा उसमें से नीली लपटें उठ रहीं थी जो इस बात का प्रमाण थीं-द्रव और कुछ नहीं शराब है जो ट्रिमेन्स पिया करता था।

अन्न खाने और पचाने की एक नैसर्गिक क्रिया है यदि निसर्ग (प्रकृति) का अनुकरण बन्द कर दिया जाता है तो वैसे ही उपद्रव कहीं भी उठ खड़े कर दिये। अन्न,फल, रस, दूध आदि खाते हैं। मुँह में लार, पेट में हाइड्रोक्लोरिक एसिड आदि की मदद से वहीं अन्न रस बनता है रक्त बनता है उसी से हड्डियाँ, मेदा, मज्जा, माँस, वीर्य और तेजस का निर्माण होता है। सब कुछ स्वाभाविक रीति से चलता है। मनुष्य आनन्दपूर्वक हँसते-खेलते जीता रहता है किन्तु शराब ? शराब बहुत कम गर्मी में गैस बन जाने वाला विषैला तत्व है। इसे पीते ही रक्त की शिराओं में तीव्र हलचल उत्पन्न होती है वह इस शराब को अपनी ओर आकर्षित करती है गैस का गुण है पोले भाग में ऊपर उठना सो शराब भी ऊपर की और भागती है प्रारम्भ में यह गैस रूप में होती है जिससे मस्तिष्क में उत्तेजना होती है। मस्तिष्क अत्यन्त सूक्ष्म और कोमल कोषों (न्यूरान्स) और “न्यूराग्लिया” से बना होता है। सबसे ऊपर सेरेब्रम जिसमें भूरा पदार्थ ग्रे मटैर बालू की परतों के समान लहरियादार जमा होता है। यह लहरें और पर्तें जन्म-जन्मान्तरों के गुणों, संस्कारों बौद्धिक क्षमताओं की भण्डार होती है शराब का सीधा प्रकार इन्हीं पर होता है जिससे मनुष्य विक्षिप्त और पागल हो जाते हैं और मृत्यु तक हो जाती है। डॉ0 आर्मस्ट्रांग ने लिखा है कि मैंने कई शराबी ऐसे देखे है जिनकी मृत्यु के बाद हुई चीर-फाड़ में उनके मस्तिष्क से पाँच ओंस तक शराब निकली। इसकी के प्रभाव से मस्तिष्क सन्तुलन खो बैठता है फलस्वरूप शराबी कभी दंगा कर देता है, कभी अनाप-शनाप बकता, कभी किसी को मार देता और कभी स्वयं भी आत्महत्या कर लेता है।

सेरेब्रम के पिछले हिस्से में “सेरीबेलम” नामक लघु मस्तिष्क और उसके नीचे मेडुला आब्लाँगेटा होगा है यह मस्तिष्क और सुषुम्ना (स्पाईनल कार्ड) के मध्य की कड़ी होती है ओर शरीर के ताप आदि का नियन्त्रण करती है। शराब के प्रभाव से यह संस्थान भी लड़खड़ा जाते हैं फलस्वरूप शरीर शिथिल हो जाता है इन्द्रियों की क्षमतायें नष्ट हो जाती है सर्दी-गर्मी का प्रकोप सताने लगता है, कानों में सनसनाहट रहने लगती है। देखने, सुनने, सूँघने स्वाद चखने तथा स्पर्श द्वारा वस्तुओं की पहचान करने की सारी क्षमतायें नष्ट हो जाती है।

गीता में भगवान् कृष्ण ने एक चेतावनी दी थी-

स्मृति भ्रंशाट् बुद्धि नाशो। बुद्धि नाशात् प्रणश्यति॥

अर्थात्- स्मृति क्षय हो जाने से बुद्धि नष्ट होती है बुद्धि नष्ट हो जाने से प्राणों का अन्त हो जाता है। “शराबी व्यक्तियों की मस्तिष्कीय जाँच ने यह बात अब स्पष्ट साफ कर दी है। मस्तिष्क का आधा भाग ही कड़े कोशों का होता है। शेष आधा भाग जिन न्यूरान कोशों (सेल्स) से बना होता है उनकी संख्या लगभग 1000000000 (एक अरब) होती है। न्यूराँग्लिया इनसे भी सूक्ष्म होने से उनकी संख्या इनसे दस गुनी अधिक होती है इन्हें संस्कार कोष कहा जा सकता है इनकी क्षमता असाधारण होती है न्यूरान कणों का नियन्त्रित उपयोग सारे विश्व में ब्रह्माण्ड में विचार क्रान्ति उत्पन्न कर सकता है पर यह सम्भव है जबकि उनकी संवेदनशीलता--भावुकता बनी रहे। महापुरुषों ने प्रेम ओर भावनाओं में सारे विश्व को बाँध लिया और जिसे भी जिस राह चाहा चला दिया। इनकी क्षमताओं से संसार अपरिचित है योगी जानते हैं कि इन कणों में सारे विश्व-ब्रह्माण्ड का नक्शा खिंचा हुआ है ध्यानस्थ योगी एक न्यूरान कण को देखकर किसी भी ग्रह-नक्षत्र की हलचल, वाराणसी के तेली धनीराम के घर के कोने में बैठी हुई चींटी क्या कर रही है देख सकता है इन कणों की संवेदनशीलता को शराब जड़ से नष्ट कर देती है ऐसा व्यक्ति न तो भावुक हो सकता है और न किसी का हित चाहने वाला उसे पत्थर की तरह कठोर ही कहा जाना चाहिये ।इन कणों की समाप्ति, नाश ही प्राणों का सर्वनाश कहलाता है। शराब और धर्म में इसी कारण परस्पर विरोध बताया गया है। शराब पीने वाला सामाजिक शत्रु है क्योंकि उसमें भावनाओं का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है।

शराब मस्तिष्क ही नहीं इन्द्रियों की सामर्थ्य को भी नष्ट करती है। दरअसल इन्द्रियां भी मस्तिष्क से ही तो नियंत्रित होती है अतएव ऐसा होना स्वाभाविक ही है। एक मोटर ड्राइवर शराब पीकर गाड़ी चला रहा था। कुछ ही दूर जाकर उसने एक पेड़ से टक्कर कर दी। सड़क के किनारे दूर तक यह अकेला ही पेड़ था। बेहोशी टूटने पर उसके बयान के लिये गये तो उसने बताया वहां दो पेड़ थे मैंने सोचा इनके बीच से मोटर निकाल दूं तो ऐक्सीडेंट हो गया।

मस्तिष्क दांया-बांया दो भागों में बंटा है दोनों अलग-अलग काम करने में समर्थ हैं पर जब कोई शराबी पीता है तब दोनों का सम्बन्ध टूट जाता है उसी कारण ऐसा भ्रम होता है। फ्राँस में एक बर सैनिक शराब पीकर युद्ध करने गये कमाण्डर आगे खड़ा हुआ और बोला-अरे यह क्या कर रहे हो अपने को ही गोली मारोगे क्या, रायफलें उल्टी करो सैनिकों ने कहा-अरे हां आज तो सचमुच धोखा हो गया था। धोखे में धोखा हुआ रायफलें उल्टी चलीं और सैनिकों ने अपना ही घात कर लिया।

बन्दूक न भी चलाये तो भी शराब अपने आपमें आत्मघात है मनुष्य को इस पाप से बचना चाहिये शराब पीकर उसे पाशविकता को प्रोत्साहन नहीं देना चाहिये।


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