स्वर्गीय पंडित नेहरू आयु से वयोवृद्ध होते हुए भी मन से एक स्वयंसेवक ही थे। एक बार जब वे प्रधान मंत्री थे-कुछ लोग उनसे मिलने आये। आने वालों की संख्या अधिक थी और कुर्सियां कम। जब वे उस कमरे में आये तो देखा कि कुछ लोग खड़े है। उनके बैठने के लिये कुर्सियां नहीं हैं और कोई उधर ध्यान भी नहीं दे रहा है।
वे तुरन्त अन्दर के कमरे में गये और एक कोच को उठाने लगे। तत्काल कई नौकर दौड़ पड़े और उन्हें उठाने के लिये मना करने लगे वे उसे खींच ही लाये, यह कहते हुए कि “घर आये हुए मेहमानों के स्वागत के लिये, हर कार्य करना अपना धर्म है। काम करने से आदमी छोटा नहीं बनता।”