सेवा करना इनसे सीखो

April 1969

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क्या तुम सच्चे सेवक बनना चाहते हो? सच्ची समाज सेवा करने की इच्छा मन में है? तो आओ, आज हम कुछ ऐसे सच्चे सेवकों का परिचय आपसे करायें, जो हमारे लिए मार्ग दर्शक हो सकते है। संध्या समय पश्चिम आकाश में अस्त होने वाले सूर्य को देखो। बारह बारह घंटों तक पृथ्वी को प्रकाश देने के पश्चात् भी वह निश्चित होकर विश्राम लेने जाना नहीं चाहते हैं। मैं चला जाऊँगा फिर सृष्टि को प्रकाश कौन देगा? उसे अन्धकार से कौन उबारेगा? इस चिन्ता में देखो उनका मुख मंडल म्लान हो गया है। सच्चे सेवक की सेवा की भूख कभी शांत नहीं होती।

चन्द्र के पास स्वयं का प्रकाश नहीं है। फिर भी वह दूसरे का तेज उधार लेकर अपने को आलोकित करता है। सच्चे सेवक को साधन का अभाव कभी नहीं खटकता।

हमारी शक्ति बहुत थोड़ी है, इसलिए हमसे क्या सेवा हो सकेगी। क्या तुम ऐसा सोचते हो? नहीं, नहीं, ऐसा कभी मत सोचो। आकाश के तारों की ओर देखो। ब्रह्माण्ड की तुलना में कितने अल्प हैं, फिर भी यथाशक्ति सेवा करने- भूमण्डल को प्रकाशित करने - लाखों की संख्या में प्रकट होते है और अमावस्या की अँधेरी रात में अनेकों का पथ -प्रदर्शन करते हैं।

थक कर, ऊब कर सेवा क्षेत्र का त्याग करने का विचार कर रहे हो? तुम्हारे सामने बहने वाली इस सरिता को देखो। उद्गम से सागर तक संगम होने तक कभी मार्ग में वह रुकती है? ‘सतत कार्यशीलता’ यही उसका मूल मंत्र है। मार्ग में आने वाले विघ्नों से वह डरती नहीं तो तुम क्यों साधारण संकटों एवं अवरोधों से घबराते हो? वह नदी कभी ऊँच-नीच का भाव जानती ही नहीं। मनुष्य मात्र ही नहीं, पशु-पक्षी या वनस्पति सबकी निरपेक्ष सेवा करना ही वह अपना धर्म समझती है। सेवक के लिए कौन ऊँच और कौन नीच?

‘इन अज्ञानी लोगों की क्या सेवा करें? इनका सुधरना असम्भव है’ ऐसा मत सोचो। देखो कीचड़ में यह कैसा सुन्दर कमल खिला है? तुम भी अज्ञान के कीचड़ में कमल के समान खिलकर कीचड़ की सुरभि पैदा करो, सच्चे सेवक की यही कसौटी है।

-स्वामी विवेकानन्द,


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