भारतीय संस्कृति सदैव से ही देवोपासक रही है। ऐसी मान्यता है कि निखिल आकाश में कोई ऐसे स्थान हैं, जहाँ देवता रहते हैं, उन्हें मंत्र जप ध्यान आदि के माध्यम से प्रसन्न और प्रभावित किया जा सकता है, उनसे शक्ति और वरदान प्राप्त किया जा सकता है। शिव, वरुण, अग्नि, इन्द्र, गणेश, सरस्वती, सोम, ऊषा, सूर्य, धन्वन्तरि, बृहस्पति आदि अनेक देवता अपनी-अपनी तरह के शक्ति और क्षमता वाले है और अपने उपासक को वैसी ही शक्ति से आविर्भूत कर देते हैं, इसलिए न केवल लौकिक दृष्टि से समर्थ और बलवान् बनने के लिए देवताओं की शरण ली जाती थी वरन् आत्म-कल्याण और ईश्वर प्राप्ति के लिए भी देवाश्रय ग्रहण करते थे। सभी देवता परमात्मा की विभिन्न अलौकिक शक्तियाँ हैं, किसी के भी आश्रय से उस परम प्रभु को प्राप्त करने का विज्ञान था, उसे अब केवल कल्पना ही समझा जाता है।
कठोपनिषद् में नचिकेता यम से प्रश्न करता है-
स त्वमग्निं स्वर्ग्यमध्येषि मृत्योः प्रबूहिं तं श्रद्दद्यानाय मह्ममे। स्वर्गलोक अमृतत्वं भजतं एतद्द्वितीयेन वृणे वरेण्य॥
-1।1।13,
हे यमराज! आप स्वर्ग के साधनभूत अग्नि को जानते हैं। मैं श्रद्धा प्लावित होकर आपसे पूछता हूँ कि जिनके द्वारा स्वर्गीय पुरुष अमरत्व प्राप्त करते हैं, उन अग्नि को मुझसे वर्णन कीजिये।” यह प्रश्न सुनकर आचार्य यम कहते हैं -
प्रते व्रवीनि तदुमे निबोध स्वर्ग्यमग्निं नचिकेतः प्रजानन्। अनंत लोकप्तिमयी प्रतिष्ठों, विद्धि त्वमेतं निहितंगुहायाम्॥ -कठो. 1।1।14,
हे नचिकेता! मैं तुझसे अच्छी प्रकार अग्नि का उपदेश करता हूँ। वह अग्नि स्वर्ग को प्रदान करने वाली है, अनन्त लोक की प्राप्ति कराने वाली है, उसका आधार बुद्धि रूपी गुहा में निहित है, तू उसे अच्छी प्रकार समझ ले।
इस मन्त्र में निःसन्देह अग्नि के प्रामाणिक स्वरूप को स्थिर करने का प्रयास किया गया है। मैत्रायणी उपनिषद् में उसे और अच्छी प्रकार स्पष्ट करते हुए शास्त्रकार ने बताया कि अग्नि हृदय कमल में स्थित है, वह जो अन्न खाता है, वह जो मोक्ष धाम द्यौः में स्थित कालाग्नि नामक परमेश्वर रुपं अग्नि है, जो प्रलय काल में समस्त भूतों को खा जाता है, अपने आप में लीन कर लेता है।
उपरोक्त कथन में अग्नि का तात्त्विक विश्लेषण है। सचमुच शरीर में अग्नि न हो तो अन्न न पचे। मन्दाग्नि पुरुष को सदैव अपच और अवसाद की बीमारी बनी रहती है, इसलिए वैद्य वह औषधियाँ देते हैं, जिससे जठराग्नि प्रदीप्त हो। अन्न से भी शरीर में गर्मी पैदा होती है, अर्थात् अग्नि एक व्यापक तत्त्व है, जो दृश्य भी है और अदृश्य भी है। अदृश्य अवस्था वाले अग्नि के परमाणु ही ईश्वरीय सत्ता को बोध कराते हैं, इसलिए अग्नि को देवता और भगवान् कहा गया है। शरीर मन और वाणी की तेजस्विता अग्नि तत्त्व की प्रधानता से ही विकसित होती है।
ऋग्वेद के 7।87।2 मंत्र में वरुण देवता की स्तुति करते हुए मंत्र दृष्टा कहते हैं-समस्त नदियाँ वरुण के आदेश से ही बहती हैं, यह आकाश देव हैं, अन्य देव इनके अनुयायी हैं। इनका आदेश सर्वोपरि है, यह देव जिस व्यवस्था का संरक्षक है, उसे ‘ऋत’ कहते हैं, विश्व सृजन के पूर्व भी ‘ऋत’ था इसके रहस्य को जानने वाला ऋताचारी होता है।’’
वरुण ‘वर’ धातु से बना है, जिसका अर्थ आच्छादन करना होता है-एक तत्त्व जो समस्त देवताओं में अवस्थानुसार परिवर्तित होकर ऋतु-नियमन करता है। यदि ऋतुयें न हों तो संसार शून्य हो जाये यह बात प्लेटो के यूनिवर्सल सिद्धान्त से बहुत मिलती-जुलती है। रूस तो अब विस्तृत रूप से ऋतु-विज्ञान की खोज कर रहा है। अमेरिका इस बात से भयभीत है कि यदि रूस ने जलवायु पर नियन्त्रण कर लिया तो वह बिना युद्ध लड़े हुए अमेरिका को रेगिस्तान में बदल देगा। रूस परमाणु शक्ति से परिचालित सैकड़ों मशीन पम्पों के द्वारा प्रशान्त महासागर के जल को स्थानान्तरित करने की योजना बना रहा है, उससे साइबेरिया तो हरा-भरा हो जायेगा पर अमेरिका की जलवायु एकदम बदल जायेगी। ऐसी आशंका अमेरिका के डा. एडवर्ड टाड और डा० हेनरी वेक्स्लर भी कर चुके हैं, इस सम्बन्ध में कभी अन्यत्र विस्तृत प्रकाश डालेंगे, यहाँ तो हमें अपने इस कथन की पुष्टि करनी थी कि ऋतु का नियमन करने वाली ऐसी कोई अदृश्य सत्ता है, जिसे हम वरुण देवता के नाम से जानते हैं।
सन्देह नहीं कि उसको जानने वाला व्यक्ति ऋताचारी या मौसम विज्ञान का पंडित हो सकता है। क्रेमलिन वैज्ञानिकों को इच्छानुसार कहीं भी वर्षा करा देने का सिद्धान्त ढूँढ़ निकालने की सफलता मिल गई है, वह इस वरुण विज्ञान की एक छोटी-सी स्फुल्लिंग मात्र है, विस्तृत खजाना तो भारतीय धर्म के अंचल में छिपा पड़ा है। सूत्र मिल रहा है, आगे की जानकारी की आवश्यकता है।
सोम, उषा, अदिति आदि के बारे में भी विस्तृत विवेचन शास्त्रों में मिलते हैं, किन्तु खेद है कि आज के पढ़े-लिखे भारतीय भी देवताओं की इन शक्तियों और स्वरूपों को मात्र बाल-कल्पना मान कर उपेक्षित कर देते हैं। फ्लीडरट और ब्लूम नामक पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने देवताओं के सम्बन्ध में भारतीय तत्त्व दर्शन का जो मजाक बनाया था, पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित व्यक्ति उसी को ठीक माने चले आ रहे हैं, प्रसन्नता की बात है कि आज का विज्ञान ही उनकी इस भ्रान्त धारणा को खण्डित कर देता है।
देवता किसी की प्रतिकृति नहीं वरन् विशिष्ट गुण या शक्ति के प्रतीक मात्र हैं और वह शक्तियाँ सूक्ष्म जगत् में सचमुच क्रियाशील हैं, उनसे सम्पर्क या यांत्रिक संबन्ध स्थापित करने में जो सफलता मिली है, वह वेद और उपनिषदों की मान्यता को ही पुष्ट करती है। इस विज्ञान को आज संगणक विज्ञान (कम्प्यूटर) के नाम से जाना जाता है। वेद के जिन देवताओं की शक्तियों पर लोग उपहास करते थे, वही अब लोहे के यन्त्रों में आकर सुनती हैं, गिनती हैं, अपने विवेक से निर्णय और सुझाव ही नहीं देती, बोलती भी हैं। चन्द्रमा की यात्रा से लेकर गणित के प्रश्न हल करने तक में कम्प्यूटर एक चमत्कार की तरह काम कर रहा है। वह इन अदृश्य सत्ताओं के सूक्ष्म परमाणुओं के इच्छानुवर्ती संचालन के फलस्वरूप ही है।
जिस तरह अध्यात्म विद्या के जानकारों के लिये देव शक्तियाँ सामान्य-सी लगती हैं, उसी प्रकार विज्ञान की दृष्टि में कम्प्यूटर भी कोई बड़ा भारी आश्चर्य नहीं रह गया। यह सब सृष्टि में विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रान अन्न को पचाते हैं, शरीर में शक्ति संतुलन बनाये रखते और जीवन के अस्तित्व रूप में प्रकट होते हैं। उसी प्रकार वरुण शक्ति के इलेक्ट्रान सारी सृष्टि में फैलकर ऋतु नियमन करते हों तो उसमें आश्चर्य क्या? इलेक्ट्रान की विविध स्थिति के रूप में ही तो कम्प्यूटर भी बोलता, सुनता, उत्तर देता और अगली पंक्तियों में दिये गये आश्चर्यजनक कार्य करता रहता है। यह बात किसी स्थान विशेष के लिए अपवाद नहीं सार्वभौमिक नियम है। कैलीफोर्निया विश्व-विद्यालय के डा. हावेर महोदय का भी कहना है ठोस और तरल पदार्थों की तरह गैस पदार्थों में भी जीव का निर्माण हो सकता है।
अर्थात् गैस जैसा किसी स्थिति में भी जीवन का अस्तित्व यदि हो सकता है तो वह यह देव शक्तियाँ ही हो सकती हैं, जिनका वेद, उपनिषदों में ब्रह्माण्ड व्यापी शक्तियों के रूप में वर्णन मिलता है। उन्हें केवल चेतन समझने भर की कठिनाई थी, उसे यह कम्प्यूटर विज्ञान दूर कर देता है। लीजिये अब इलेक्ट्रान के स्मृति पुञ्जों के उन करिश्मों का भी वर्णन पढ़ लीजिये, जो आज संगणक (कम्प्यूटरों) के अन्दर विभिन्न प्रकार का ज्ञान और शक्ति संयोजित किये पड़े हैं।
गणेश को असाधारण स्मृति और लेखन सामर्थ्य वाला देवता मानते हैं, पौराणिक कथा है कि व्यास जी द्वारा बोले गये 18 पुराणों को सुनकर उन्हें शब्द-बद्ध कर सकने को गुरुतर कार्य गणेश जी ही सम्पन्न कर सके थे। इस असाधारण मानवीय स्मृति शक्ति पर अर्धदग्ध मनुष्य शंका और सन्देह कर सकते हैं वैज्ञानिक नहीं। जर्मनी में ऐसे ही कम्प्यूटर का निर्माण हुआ है, जिससे दफ्तरों, बैंकों आदि के काम में 10 हजार गुना तीव्रता आई है। 1680 फाइलें रखने में ही कई अलमारियाँ लग सकती है पर यह कम्प्यूटर (संगणक) कुल 3 घन फुट में इतनी फाइलों की जानकारी को जज्ब (आब्जर्व) कर लेता है, जब भी आप चाहें किसी पन्ने को खोलकर सारा ब्यौरा प्राप्त कर सकते हैं।
मनुष्य हाथ से जब तक एक अंक लिखता है, यह कम्प्यूटर तब तक 16 बड़े-बड़े अंकों का गुणनफल, लघुतम या महत्तम समापवर्तक निकाल कर दे सकता है। मनुष्य अधिक से अधिक 5000 शब्द याद रख सकता है तो उसकी स्मरण क्षमता 60 हजार शब्दों से भी अधिक है। मनुष्य कठिनाई से चार-छः भाषाएँ सीख सकता है पर यह 15-15 भाषाओं का वेत्ता हो सकता है। एक भाषण का एक ही समय में 15 भाषाओं में अनुवाद कर देने की क्षमता उसमें मिलेगी। मनुष्य एक बार यदि 240 शब्द टाइप करेगा तो वह 60 हजार एकांश प्रति सेकेंड टाइप करके रख देगा। टेलीफोन, टेलीविजन पर आने वाले संवादों को यह संगणक 15 भाषाओं में अनुवाद कर देता है, जिससे सभी भाषाओं के अख़बार एक भाषा में खबर प्रचारित होने के बावजूद भी साथ-साथ छप जाते हैं और दूसरी भाषाएँ पढ़ने वालों की कोई दिक्कत नहीं आती।
स्मरण शक्ति का यह छोटा-सा चमत्कार है, इससे भी अनन्त गुणा स्मरण शक्ति वाली कोई गणेश सत्ता है, मनुष्य उससे संपर्क साधकर इस से भी अधिक बौद्धिक क्षमता वाला ही हो सकता है। अनेक शतावधानी व्यक्ति अब भी है, उनका वर्णन कभी अन्यत्र करेंगे।
ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने एक संगणक (कम्प्यूटर) ऐसा बनाया है, जो बिना जन्म समय कुण्डली, राशिचक्र, सूर्यास्त, सूर्योदय अथवा सहयोग की जानकारी के बिना भी युवक-युवतियों को यह बता देता है कि उनका विवाह सफल रहेगा या असफल। ज्योतिष झूठ नहीं हो सकता। यही नहीं कुछ कम्प्यूटर ऐसे भी बने हैं, जो वायु कम्पनों के आधार पर नये शब्द भी गढ़ते हैं, जो व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध नहीं होते। जर्मनी में ही एक ऐसा कम्प्यूटर बना है, जो गीत बनाकर सुनाता भी है, उसकी मधुरिमा मानव कण्ठ और भावनाओं की उड़ान को भी परास्त कर देती है। यह संगणक (कम्प्यूटर) आज के सैकड़ों हजारों वर्षों पूर्व गाये गये गीत उन्हीं भाषाओं में सुनाने की क्षमता रखते हैं, उसका विकास किया जा रहा है। एक दिन वह आयेगा जब भगवान् कृष्ण ने अर्जुन से क्या कहा था, यह सब उनके मुख से ही सुन लेंगे तब महाभारत की कथा सुनने के लिए किसी पण्डित की आवश्यकता न होगी। वैशम्पायन महाराज स्वयं अपने मुख से वह कथा सुनाया करेंगे।
यह सब सृष्टि में फैले विभिन्न सम्वेदनाओं के सूक्ष्म कणों का खेल है, वैज्ञानिकों ने उन्हें पकड़ने की कला जान ली है। इसलिए वे इस तरह के अचम्भे जैसे करतब दिखा रहे हैं, दरअसल मनुष्य की आध्यात्मिक क्षमताएँ इनसे भी लाख गुना अधिक परिपूर्ण हैं। देव-शक्तियों का यह विधान अपने आप में वैज्ञानिक सिद्धान्तों से अलग नहीं, उस विज्ञान को आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित किया जा सके तो मनुष्य की सुख-सुविधाओं में अनन्त गुनी वृद्धि की जा सकती है।
यह देव-शक्तियाँ अन्तरिक्ष में अनन्तकाल से विद्यमान् है और उनका सूक्ष्म प्रतिनिधित्व मानव शरीर में भी भरा पड़ा है। भारतीय तत्त्व-वेत्ता इन शक्तियों के साथ संपर्क बनाने में आध्यात्मिक स्तर पर प्रयत्न करते रहे हैं। उपासना और तपस्या वस्तुतः एक ऐसे उच्चस्तरीय विज्ञान का ही प्रतिपादन करती है, जिसके लिये मशीनों की नहीं वरन् पवित्रता और सात्विकता के निर्मल बने व्यक्तित्वों की आवश्यकता होती है। देव-शक्तियों को भौतिक विज्ञान धीरे-धीरे यन्त्र-बद्ध करता चला जा रहा है। अध्यात्म विद्या के आचार्यों ने इन्हें मन्त्र-बद्ध किया था, जो अपेक्षाकृत अधिक सरल और अधिक उपादेय है।