भगवान् बुद्ध अपने ज्ञान का प्रकाश संसार को दे रहे थे। अनेक लोगों का आत्मिक कायाकल्प हो चुका था।
एक दिन तथागत घूमते हुए एक सेठ के यहाँ पहुँचे। भिक्षा हेतु अपना कमंडल उसके सामने रख दिया। वह तथागत के ज्ञान और प्रभाव की प्रशंसा सुन चुका था। उसे आशा थी कि उनका आशीर्वाद पाकर मेरी मुक्ति हो जायेगी। बड़े प्रेम से खीर बनवाई और लाकर कमंडल में देने लगे। उसने आश्चर्य-पूर्वक देखा कि कमंडल में गोबर भरा हुआ है। इतनी सुन्दर खीर उस कमंडल में फँसे रखी जाय, जिसमें कि गन्दगी भरी हुई है।
उसने कमंडल उठाया, उसको अच्छी तरह साफ किया। तत्पश्चात् उसमें खीर रखी और तथागत से बोला-भगवान्! कहीं भिक्षा हेतु पधारा करें अपना पात्र साफ करके ही लाया करें। गन्दगी भरे पात्र से तो आहार की पवित्रता नष्ट हो जायेगी।”
तथागत शांत-भाव से बोले-वत्स! भविष्य में जब कभी भी आऊँगा, कमंडल साफ करके ही लाया करूँगा पर तुम भी तो अपना कमंडल साफ रखा करो।” सेठ ने आश्चर्य भरे शब्दों में पूछा- “भगवन्! कौन-सा कमंडल!” तथागत बोले-यह तन रूपी कमंडल। मन में मलीनता भरी रहने से यह जीवन भी कलुषित हो जाता है और भगवान् की कृपा उसमें ठीक प्रभाव नहीं करती।” बात समझ में आ गई। उस दिन से सेठ अपनी आन्तरिक सफाई में लग गया।