अन्तरिक्ष के सूक्ष्म शक्ति-प्रवाह

April 1969

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक बार महात्मा चित्र ने यज्ञ करने की इच्छा की। उन्होंने अरुण के पुत्र महर्षि उद्दालक को प्रमुख ऋत्विक् बनाया। परन्तु उद्दालक मुनि ने स्वयं उपस्थित न होकर अपने पुत्र श्वेतकेतु को भेज दिया। श्वेतकेतु यज्ञाचार्य के उच्च पद जा बैठे। इससे महात्मा चित्र को आश्चर्य हुआ। उन्होंने पांडित्य की परीक्षा के तौर पर प्रश्न किया-

संवृत लोक यस्श्राधास्यस्यहो योचदहवा लोके

यास्यसीति। स होषाच नाहमेद्वेद हन्ताचार्य पृच्छानीति।

- कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद्॥1॥

हे श्वेतकेतु! क्या इस लोक में कोई आवरण वाला ऐसा स्थान है, जहाँ मुझे स्थित करोगे अथवा उससे भिन्न किसी आचरण रहित अद्भुत स्थान में मुझे रखोगे।

श्वेतकेतु उस प्रश्न का उत्तर न दे सके। महर्षि उद्दालक को भी उसका पता न था। तब वे स्वयं महर्षि चित्र के सम्मुख उपस्थित हुए और उक्त प्रश्न का रहस्य जानना चाहा। महर्षि चित्र ने बताया कि-चन्द्रमा के नाम से जो प्रसिद्ध है वही स्वर्ग-लोक का द्वार है। निष्काम भावना वाला पुरुष वहाँ पहुँचकर लोक-सेवा की इच्छा से पृथ्वी पर भी लौट सकता है और ब्रह्मलोक को भी जा सकता है।” जो परमेश्वर की उपासना करता है, वह देव यान मार्ग द्वारा प्रथम अग्नि-लोक में पहुँचता है फिर वायु-लोक में, वहाँ से सूर्य-लोक वरुण और इन्द्र-लोक को गमन करता है। इन्द्र-लोक से प्रजापति लोक और वहाँ से ब्रह्म-लोक को पहुँचता है। इस यात्रा-पथ पर अनेक आश्चर्यजनक संस्थान हैं, वहाँ पहुँचकर जीवात्मा को विचित्र अनुभूतियाँ होती हैं।

महाभारत में भी इसी प्रकार का एक कथन-पितामह भीष्म का है, उन्होंने दुर्योधन को बुलाकर कहा था- “दक्षिणायन हुए सूर्य के समय यदि मैं प्राण त्याग करता हूँ तो निश्चय ही, मेरी दुर्गति होगी इसलिये तब तक मैं अपने प्राणों का त्याग नहीं करूँगा

इन दोनों उपाख्यानों से एक बात निश्चित रूप से मालूम होती है कि पृथ्वी और अन्य लोकों को मिलाने वाली कुछ अदृश्य शक्तियों की सूक्ष्म धारायें हैं, जो जीव की ऊर्ध्व या अधोगामी लोकों तक पहुँचाने में समर्थ हैं। वरुण, इन्द्र, अग्नि आदि तत्त्वों की विशिष्टता और बहुलता वाली यह शक्ति धारायें पृथ्वी के समीप भी हो सकती हैं और किसी ऐसे स्थान पर भी जहाँ पृथ्वी निर्धारित समय पर घूमते-घूमते पहुँचती हो और उन शक्ति धाराओं के समीप हो जाती हो पर एक बात यह निश्चित है कि वह शक्ति धाराओं भू-गुरुत्वाकर्षण (ग्रैविटेशन) नहीं हो सकती, क्योंकि यदि एक सा होता तो जिन घटनाओं द्वारा उक्त-पथों की निश्चिन्तता अगली पंक्तियों में प्रमाणित कर रहे हैं, वैसी घटनायें कहीं भी किसी भी स्थान में हो सकती थीं।

विज्ञान यह मानने लगा है कि आकाश में कुछ विशिष्ट प्रकार के नक्षत्र ऐसे हैं, जो कुछ एक ही प्रकार की किरणें या ऊर्जा प्रवाहित करते है और उनकी शक्ति एवं प्रचंडता इतनी तीव्र होती है कि वे सृष्टि के किसी भी स्थान में व्यापक हलचल उत्पन्न करती रहती है। 1962 में राकेट अभ्यास के समय यह पाया गया कि सूर्य से बहुत दूर हमारी आकाश गंगा में ही एक ऐसा तारा है जो वर्तमान सौर एक्स विकिरण की अपेक्षा दस लाख गुनी तीव्र रफ्तार से एक्स-विकिरण कर रहा है। यह तारा पृथ्वी से 1000 प्रकाश वर्ष दूर है और इसका नाम ‘स्को एक्स वन’ रखा गया है।

तात्पर्य यह कि अब तक की यह मान्यता कि पृथ्वी के जलवायु में केवल सूर्य का ही हस्तक्षेप है, गलत है। एक्स-विकिरण के ही तीस तारे छः वर्षों में ढूँढ़े गये हैं, अभी अन्य महत्त्वपूर्ण किरणों के तारे जो अपना विशिष्ट प्रभाव रखते हैं, अनन्त आकाश में हैं और उनकी जानकारी वैज्ञानिकों को नहीं है पर कुछ ऐसी घटनायें अवश्य सामने आई हैं, जिनसे भारतीय दर्शन की उक्त मान्यता सत्य सिद्ध होती है कि आकाश में सूक्ष्म प्रवाह हैं अवश्य जो लौकिक जीवन में ही नहीं पारलौकिक जीवन को भी प्रभावित करते है।

5 दिसम्बर 1945 को 5 टी वी एम॰ बम वर्षक हवाई जहाज हवाई अड्डे से प्रशिक्षण उड़ान पर रवाना हुये। उन्हें पहले पूर्व की ओर जाना था, फिर उत्तर को ओर अन्त में दक्षिण-पूर्व होकर लोटना था। सब वायुयान पेट्रोल, ईधन, दिशा निर्देशक यन्त्रों और ‘संचार साधनों से पूरी तरह सुसज्जित था उड़ाकों में कोई नया नहीं था, सब पुराने योग्य ओर अनुभवी उड़ाके किसी प्रकार की घटना की रत्ती भर भी सम्भावना नहीं थी।

कण्ट्रोल टावर के निर्देश पर पहला जहाज जिसे स्क्वाड्रन लीडर चला रहे थे, उड़ा उनके 5 मिनट के अन्तर के अन्तर से शेष चार आकाश में गड़गड़ाने लग। प्रथम वायुयान में दो व्यक्ति शेष चारों में तीन-तीन व्यक्ति थे। सब जहाज में मजे में उड़ते गये। रेडियो संदेश मिला हम 200 मील प्रति घण्टा की रफ्तार से ठीक तरह उड़ रहे हैं। अब हम अटलांटिक महासागर के पूर्वी किनारे की ओर बढ़ रहे हैं।

दोपहर ढल चुकी थी। तीन बजकर पैंतालीस मिनट हुये थे कि एकाएक खतरे का संकेत मिला। जहाजों को उतरने का सन्देश देने की तैयारी की जाने लगी पर तभी स्क्वाड्रन लीडर की आवाज सुनाई दी-हम लोग एकाएक कहाँ आ गये, कुछ पता नहीं चल रहा, यन्त्र ठीक हैं पर जब नीचे की ओर देखते हैं तो न समुद्र है न कहीं जमीन। पूछा गया-नक्शा देखकर अपना ग्रिड रिफरेन्स (स्थान का पता) दो-तो उत्तर मिला-यहाँ भौगोलिक स्थिति के बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता।”

यह आखिरी शब्द थे। इसके बाद जहाज कहाँ गये आज तक किसी को पता नहीं चल पाया। चलते-चलते अनुमानित सन्देश मिला था, उत्तर-पूर्वी किनारे से कोई 225 मील दूर। उसी के आधार पर 13 कर्मचारियों और अच्छे से अच्छे यन्त्रों से सुसज्जित मार्टिन हवाई जहाज को खोज के लिये भेजा गया। 5 मिनट तक उसने अपने उड़ने की खबर दी पर उसके बाद ही उधर से भी कोई आवाज आना बन्द हो गई। रात भर समुद्र के रक्षक जहाजों ने उधर निगाह रखी। प्रातः काल होते ही 21 जहाज समुद्र में दौड़ाये गये। 300 जहाज आकाश का चप्पा-चप्पा छानने लगे। 12 खोजी दल जमीन में खोज करते रहे। दिन भर खोज चलती रही पर न तो समुद्र तल पर एक बूँद तेज का निशान मिला न जमीन पर जहाज का एक इंच टुकड़ा। किसी के शव मिले न कोई पुर्जे। मार्टिन जहाज तो समुद्र तल पर भी आराम से उतर सकता था। उनका सन्देश प्रसारक यन्त्र इतना जबर्दस्त था कि उससे दूसरे देशों को भी सन्देश भेजे जा सकते थे पर उसका भी कही कोई सुराग न मिला।

नौ सैनिक अधिकारियों ने बहुत खोज की पर वे किसी कारण का पता न लगा सके। उन्होंने रिपोर्ट प्रकाशित करते हुए कहा-यह सब क्या हुआ हम इसकी कल्पना तक नहीं कर सकते।” इस स्थान का नाम प्वाइंट आफ नो रिटर्न’ रखा गया। वहाँ जो भी गया आज तक नहीं लौट पाया।

हमने विज्ञान में इतनी उन्नति की है कि चन्द्र और मंगल ग्रहों तक पहुँच रहे हैं। हमारा भूगोल इतना समृद्ध हो चुका है कि ध्रुवों तक के बारे में अच्छी तरह जानने लगे हैं। ऐसी योजना बनाई जा रही है कि समुद्र के भीतर घूमकर धरती को छेद किया जाये ताकि उत्तर और दक्षिण की दूरी न्यूनतम रह जाये पर उन पारलौकिक तथ्यों का पता लगाने में हमारी बुद्धि बिलकुल काम नहीं करती जो इस तरह की अविज्ञात घटनायें घटित किया करते है।

हमारी पृथ्वी संसार के शून्य-कालचक्र में कहाँ घूम रही है, कहाँ से कैसा विकिरण किसी समय हो रहा है, यह रहस्य सुलझने को नहीं आ रहे हैं। बड़े-बड़े भौतिक उपकरण और मानवीय बुद्धि कौशल भी इस तरह के अज्ञात कारणों का पता लगाने में असफल हैं, घटनायें ज्यों की त्यों होती रहती हैं।

इस घटना के ठीक तीन वर्ष बाद ही 28 जनवरी 1948 को एक चार इंजिन वाला ब्रिटिश जहाज ‘स्टार टाइगर’ किंगस्टन जा रहा था। उसका सम्बन्ध बरम्पुड़ा हवाई अड्डे से था। हवाई जहाज में कर्मचारियों सहित 26 यात्री सवार थे। जहाज से खबर मिली मौसम साफ है, हम ठीक तरह से उड़ रहे हैं, इसके बाद जैसे ही वायुयान उस प्वाइंट के स्पर्श में आया, न जाने कहाँ लुप्त हो गया। समुद्र में कोई निशान नहीं, धरती का कही मुख चौड़ा न हुआ। क्या उसे फिर आकाश निगल गया इसका आज तक कुछ पता नहीं चल पाया।

स्टार-टाइगर की तरह एक दिन ‘एरियल’ ने उड़ान भरी। कैप्टन जै०सी० मैंक्फी चालक थे, उन्हें बारम्पुड़ा से जमैका जाना था। फोर्टसेकरले (फ्लोरिडा) के निकट वह स्थान आता है, जहाँ की उड़ान काफी विचित्र होती है। वहाँ एक छोटा तिकोना चक्कर काटकर बढ़ना होता है। एरियल की तेल टंकियों में दस घण्टे तक उड़ने के लिये पर्याप्त तेल था, हवाई अड्डा छोड़ने के पौन घण्टा बाद कैप्टन मैक्फी ने खबर दी जमैका ठीक समय पर पहुँच रहे हैं। इसके बाद न कोई आवाज ही आई और कही पता चला कि एरियल कहाँ स्वाहा हो गया।

यह तीनों घटनायें एक से एक भयंकर घटित हुई पर आज तक इस बारे में सही तथ्यों का पता नहीं लगाया जा सका। न वहाँ से कोई संकेत मिले ओर न ही उस रहस्य का पता लगाया जा सका कि उस स्थान पर पहुँच कर वायुयानों का क्या हो जाता है। वैज्ञानिकों का अनुमान हैं कि सम्भवतः उस स्थान पर किसी ग्रह का इतना तेज विकिरण होता हो कि जहाज गैस बन जाते हैं। उस स्थान पर यदि मनुष्य सकुशल रह सके तो अनुमान है कि पृथ्वी और आकाश के अनेक रहस्यों का पता चले।

पृथ्वी के अक्ष के सम्बन्ध में नई जानकारियाँ मिल सकती हैं क्योंकि उस बिन्दु पर पहुँचते ही जमीन दिखाई देना बन्द हो जाती है, एक अनन्त गहराई रह जाती है। यह भी सम्भावना है कि वहाँ किसी ग्रह का अधिक गुरुत्वाकर्षण हो जो वायुयानों की अपनी ओर खींच लेता हो। ऐसा भी सम्भव है कि किसी ग्रह से वहाँ विद्युत धारायें प्रवाहित होती हाँ, जो जहाजों को चुम्बक बनाकर किसी शक्तिशाली ग्रह या क्षुद्र ग्रह की और ढकेल देती हों।

अनुमानों में कहाँ कितनी सत्यता है, कहा नहीं जा सकता पर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि मानवीय विधान की अपेक्षा ईश्वरीय विधान अधिक शक्तिशाली है। यहाँ न मनुष्य की भौतिक सामग्री साथ देती है, न बुद्धि-कौशल न तकनीक काम देती है न माइन्ड। उसे जानने के लिए तो अपने जीवन के दृष्टिकोण को ही बदलना पड़ता है। अपनी तुच्छता स्वीकार करनी पड़ती है और महाकाल की महाशक्तियों पर विश्वास करना पड़ता है, जब इस तरह की ज्ञान-बुद्धि जागृत होती है तो मनुष्य (जीवात्मा) के कल्याण का मार्ग भी निकलने लगता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles