आत्मा की अनंत गहराई का प्राकट्य-स्वप्न

April 1969

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दो प्रश्नों का सन्तोषजनक उत्तर प्राप्त करने के उपरान्त मुनि गार्ग्य सौययिणी ने महर्षि पिप्पलाद से तीसरा प्रश्न पूछा- “कौन देवता स्वप्नों को देखता है।” मुनिवर के इस प्रश्न का उत्तर देते हुये महर्षि ने बताया-

“अत्रैष देवः स्वप्ने महिमानमनु भवति।

यद् दृष्टं दृष्टमनुपश्यत श्रुत श्रुतमेवार्थ मनुश्रणोति।

देश विगन्तरैश्च प्रत्यनुभूतं पुनः पुनः प्रत्यनुभवति दृष्टं चादृष्टं च श्रुत चाश्रुतं चानुभूतं चाननुभूतं च सच्चासच्च सर्व पश्यति सर्वः पश्यति।

प्रश्नोपनिषद् चतुर्थ।5,

हे महामुनि ( स्वप्नावस्था में जीवात्मा ही मन और सूक्ष्म इन्द्रियों द्वारा अपनी विभूति का अनुभव करता है। इसने पिछले अनेक जन्मों में जहाँ कहीं भी जो कुछ बार-बार देखा सुना और अनुभव किया हुआ है उसी को स्वप्न में बार-बार देखता-सुनता और अनुभव करता है। परन्तु यह नियम नहीं है कि जागृत अवस्था में इसने जिस प्रकार जिस ढंग से जिस जगह जो घटना देखी सुनी और अनुभव की है, उसी प्रकार यह स्वप्न में भी अनुभव करता है, अपितु स्वप्न में जागृत की किसी घटना का कोई अंश किसी दूसरी घटना के किसी अंश के साथ मिलकर एक नये ही रूप में इसके अनुभव में आता है। अतः यह स्वप्न में देखे और न देखे हुये को भी देखता है, सुने और न सुने हुये को भी सुनता है, अनुभव किये और अनुभव में न आये हुये को भी अनुभव करता है। जो वस्तु हो गई है और जो वस्तु आगे होती है, उसे भी देख लेता है। इस प्रकार स्वप्न में यह विचित्र ढंग से सब घटनाओं का बार-बार अनुभव करता है और स्वयं भी सब कुछ बनकर देखता है, उस समय जीवात्मा के अतिरिक्त कोई दूसरी वस्तु नहीं रहती।

अगले प्रश्न के उत्तर में महर्षि पिप्पलाद ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि स्वप्नावस्था में मन उदान वायु के आधीन हो जाता है, उदान वायु द्वारा मन जब हृदय गुहा में पहुँच जाता है तो मन की शक्ति समाप्त होकर वह आत्मा में परिणित हो जाती है। उस मोहित अवस्था का नाम ही स्वप्न है और उस समय जो कुछ सुख-दुःख की अनुभूति होती है वह मन को नहीं आत्मा को ही होती है।

उपरोक्त तथ्यों के प्रमाण में उन स्वप्नों को रखा जा सकता है, जिनसे भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पूर्वाभास स्वप्न में हुआ। अन्य व्यक्ति के साथ दूरस्थ स्थान में हो रही घटनाओं का आभास किसी और को और स्थान में हुआ और बाद में उन्हें पूर्णतया सत्य पाया गया। कुछ स्वप्न ऐसे भी हुए हैं, जिनमें किसी महत्त्वपूर्ण कार्य का ज्ञान या अनुभूति स्वप्न में हुई और उसके द्वारा कुछ विशिष्ट कार्य या आविष्कार तक सम्भव हुये।

यदि स्वप्न मन का ताना-बाना होता, जैसा कि फ्रायड और उसके अनुयाइयों का मत है तो इस प्रकार के पूर्वाभास और इन्द्रियातीत ज्ञान जागृत अवस्था में ही मिल जाया करते, क्योंकि उस समय मन अधिक सक्षम और क्रियाशील रहता एवं सुनियोजित ढंग से सोच सकता है पर जागृत अवस्था में ऐसे किसी पूर्वाभास की अनुभूति न होना यह बताता है कि स्वप्न सुख या दृश्यों की अनुभूति वस्तुतः मन से भी परे किसी विश्व-व्यापी और सूक्ष्म सता द्वारा हो सकता है, यह गुण आत्मा के गुणों से मेल खाते हैं, इसलिए यह मानने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिये कि मनुष्य शरीर में ‘आत्मा’ नामक कोई त्रिकालदर्शी तत्त्व विद्यमान् है और उसका पूर्ण ज्ञान प्राप्त किये बिना मनुष्य की समस्यायें सुलझ नहीं पातीं।

यों पूर्व-जन्मों की घटनाओं और अनुभवों की सत्यता के स्पष्ट प्रमाण नहीं जुटाये जा सकते पर वर्तमान और भविष्य में घटने वाली घटनाओं के पूर्वाभास यह बताते हैं कि स्वप्न निःसंदेह आत्मा के विज्ञान का वह पहलू हैं, जिससे उसके अनेक रहस्यों का प्रकट प्रमाण पाया जा सकता है। स्वप्नों से रेखा चित्र और अपनी तरह के निर्मित स्वप्न देखने के यन्त्र वैज्ञानिकों ने बनाये हैं यदि इस दिशा में और प्रगति हुई और उन स्वप्न रेखाओं के विस्तृत अध्ययन का कोई सूत्र वैज्ञानिक निकाल पाये तो जीव पूर्वजन्मों में किस योनि में था और उसके साथ कैसी कैसी घटनायें घटीं, यह सब जान लेना सम्भव हो जायेगा। अभी जो जानकारियाँ मिली हैं उनके अनुसार स्वप्नावस्था में लिए गये चित्रों की रेखाएँ इलेक्ट्रानिक स्मृति कणों के फलस्वरूप ही होती हैं, यद्यपि अभी उनका विश्लेषण (एनालिसिस) किया जाना सम्भव नहीं हो पाया तो भी भविष्यदर्शी स्वप्नों के अनेक प्रामाणिक दृष्टान्त अवश्य हैं जो आत्मा की गहराई की ओर स्पष्ट संकेत करते हैं।

‘ट्रू एक्सपीरियन्सेज इन प्रोफेसी’ (भविष्यवाणी के सत्य अनुभव) नामक पुस्तक की लेखिका मार्टिन एबान ने ‘चार काले घोड़े’ नामक शीर्षक से अपने जीवन के उन चार स्वप्नों का वर्णन बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। वह इस तरह हैं-

मुझे अनेक बार अपने परिवार और परिचित मित्रों की मृत्यु का पूर्वाभास एक ही ढंग से हुआ है। पहला स्वप्न मुझे तब आया जब में छोटी बच्ची थी। मैंने देखा मैं एक ऐसी घोड़ा गाड़ी में सवार हूँ, जिसमें चार काले घोड़े जुते हुए हैं। जैसे ही मैं गाड़ी में बैठी किसी अदृश्य शक्ति ने मुझे कुछ आदेश दिये। गाड़ी एक मकान के किनारे रुक गई मैं उसके पिछले भाग में गई। दो कमरों के बीच एक शयन कक्ष (बैडरूम) पड़ता था वहाँ पहुँचकर मुझे ऐसा लगा कोई अधेड़ आयु (मिडिल एज्डमैन) लेटा है, उसकी साँस से दुर्गन्ध निकल रही है मैं चिल्लाई पर उस व्यक्ति पर उसका कोई असर नहीं हुआ। इसी बीच मुझे अनेक स्त्रियाँ दिखाई दीं। उन्होंने एक कम उम्र की पौढ़ा (शार्ट मिडिल एज्ड वूमन) को घेर रखा था और उसे धीरज बँधा रही थीं। इसके बाद नींद टूट गई और में समझ नहीं पाई कि यह सब क्या था पर उस स्वप्न का कुछ विशेष प्रभाव मेरे मन में था, क्योंकि नींद टूट जाने के बाद भी उसे मैं एकाएक भुला न सकी वह दृश्य बार-बार मस्तिष्क में उठता रहा और मैं उपेक्षा करती रही- अब सोचती हूँ ऐसी उपेक्षाओं ने ही मनुष्य जीवन के अनेक आवश्यक आध्यात्मिक पहलुओं को गौण बना दिया है और उसी के फलस्वरूप मनुष्य जीवन सत्य से दूर हटता चला जा रहा है।

उन दिनों मैं टोरोण्टो की एक मीटिंग में भाग लेने गई थी। दूसरे ही दिन मेरे कमरे की साथी (रुममेट) आलेन्दा जो कि क्यूबेक की निवासिनी थी ने मुझे बुलाया और बताया कि उसके पिता बीमार हैं, उसके कुछ दिन बाद ही पिता की मृत्यु का समाचार भी आ गया। बस इस घटना का पहला पटाक्षेप यहीं हो गया।

उसी वर्ष जुलाई में मैं क्यूबेक शहर गई। अचानक मेरी दृष्टि एक मकान पर स्थिर हो गई। मैंने देखा हूबहू वही मकान जिसे मैंने स्वप्न में देखा था। दो कमरे बीच में शयन-कक्ष उसी कमरे में एक चित्र टँगा था वो बिलकुल उसी आकृति का था, जैसा मैंने स्वप्न में देखा था, यह मकान ओलेन्दा का था और उसने ही बताया कि यह चित्र उसके पिता का है तो मैं स्तब्ध रह गई और सोचने लगी क्या वह स्वप्न मुझे इसी घटना के पूर्वाभास के रूप में देखने को मिला था। यदि ऐसा ही था तो वह स्वप्न ओलेन्दा को क्यों नहीं दिखा? क्या मेरी मानसिक स्थिति धर्म-मुखी और पवित्र होने के कारण स्वप्न मुझे स्पष्ट दिखा और ओलेन्दा को न दिखा। यह प्रश्न सोचते सोचते मैं एक गहराई में डूब जाती हूँ और यह मानने लगती हूँ कि इस संसार में सचमुच ही कोई सर्वव्यापी, सर्वदृष्टा शक्ति है, जब मनुष्य उसमें खो जाता है तो स्वयं भी वैसा ही अनुभव करने लगता हैं।

सिलाई की मशीन के आविष्कारक एलियस होवे ने भी एक ऐसा ही विचित्र स्वप्न देखा जिसने उसकी बड़ी भारी गुत्थी को ही सुलझा दिया। एलियस होवे ने जब अपनी सारी मशीन तैयार करके उसे फिट कर लिया, तब उसकी समझ में आया कि सुई में ऊपर छेद रखने से मशीन सिलाई नहीं कर सकती तो फिर छेद कहाँ रखा जाये, इसी बात पर सारा आविष्कार अटक गया। उसका मस्तिष्क चकरा गया, क्योंकि उसका इतने दिन का परिश्रम व्यर्थ गया ऐसी स्थिति में सिवाय भगवान का नाम लेने के अतिरिक्त उसे और कुछ न सूझ पड़ा।

होवे ने एक रात स्वप्न देखा। उसने देखा कुछ दस्युओं ने उसे पकड़ लिया है और जंगली जाति के राजा के यहाँ पकड़कर ले गये। राजा की वेशभूषा और आकृति भी भयंकर थी। राजा ने कड़ककर कहा- “शाम तक सिलाई की मशीन तुम मुझे सौंप दोगे या नहीं।” कुछ न बोलने पर एक सिपाही एक नुकीला भाला लेकर सामने आया और बार बार छाती की ओर भाला ले जाता पीछे हटाता और फिर वही प्रश्न पूछता बोला - “मशीन शाम तक देगा या नहीं।” आविष्कारक .......... की दृष्टि भाले पर ही थी और वह बहुत डर गया था, साँस तेज हो जाने से नींद टूट गई पर घबड़ाहट अभी ज्यों की त्यों थी। नींद टूटने के बाद भी भाले का आने-जाने वाला दृश्य मस्तिष्क में बराबर झूल रहा था और इसी दृश्य ने उसकी समस्या हल कर दी, उसने मशीन में एक ऐसा पेंच फिट कर दिया जिससे सुई भाले की तरह नीचे-ऊपर जाने लगी और दुस्तर समस्या भी मिनटों में सुलझ गई। मशीनें कई तरह की बन चुकी हैं पर सभी जानते हैं सिलाई करने वाली सुई हर मशीन में उसी तरह आगे-पीछे जाकर मिलती है।

28 फरवरी 1844 को वाशिंगटन (अमेरिका) में एक बड़ा भारी राष्ट्रीय उत्सव होने वाला था। उसमें दो तोपों का प्रदर्शन भी किया जाने वाला था। विशिष्ट मेहमानों में तीनों सेनाओं के सेनाध्यक्ष और उच्च-सैनिक अधिकारी कर्नल डेविड गार्डिनर उनकी पुत्री जूलिया (प्रेसीडेन्ट टेलर की पत्नी) तथा जलसेना के नव-निर्वाचित सेक्रेटरी श्री थामस डब्ल्यू गिलमर व उनकी पत्नी ऐनी प्रमुख था।

27 फरवरी की रात ऐनी और जूलिया दोनों ने स्वप्न में अपने पतियों की मृत्यु देखी। जूलिया ने अपने पिता को बताया कि आज ऐसा होने वाला है आप लोगों को इस उत्सव में सम्मिलित नहीं होना चाहिये। किन्तु गार्डिनर ने वह बात अनसुनी कर दी। इसी तरह ऐनी गिलमर ने भी अपने पति को वहाँ जाने से रोका किन्तु उन्होंने भी नहीं माना। इतिहास प्रसिद्ध घटना है कि उस दिन दोनों तोपों के गोले बैरेल में ही फट जाने (परमिचर) के कारण उक्त दोनों व्यक्तियों की ठाँव मृत्यु हो गई। बाद में जूलिया ने प्रेसीडेन्ट टेलर से विवाह कर लिया।

जूलिया ने एक स्थान पर लिखा है कि - “वह पति के सौ मील दूर रहने पर भी वह किस अवस्था में हैं, यह स्वप्न द्वारा जान लेती है।” एक रात उसने अपने पति प्रेसीडेन्ट टेलर को पीले चेहरे में देखा। उसे लगा कि अपने हाथ से कमीज और टाई पकड़े प्रेसीडेन्ट कह रहे हैं, “मेरा सिर थाम लो।” इस स्वप्न से जूलिया बहुत घबराई। प्रेसीडेन्ट टेलर तब रिचमोन्ड में थे। जूलिया ने प्रातःकाल वहाँ के लिए प्रस्थान किया। वह सकुशल थे। किन्तु जिस होटल में वे ठहरे थे, उसी दिन दुर्घटना हो गई और मृत्यु का ठीक वही दृश्य उपस्थित हुआ जो जूलिया ने रात स्वप्न में देखा था।


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