एक वृद्ध सड़क के सहारे पड़ा था। वृद्धावस्था के कारण कुछ काम नहीं कर सकता था और खाने को उसके पास कुछ था नहीं। कोई कुछ डाल जाता वही खा लेता था। एक बच्चा उधर से आया करता था। वह प्रतिदिन बुड्ढे को अपने खाने में से कुछ अंश दिया करता था पर उस दिन वह स्वयं भी भूखा था क्योंकि घर में कुछ न था।
बच्चे को देखते ही बुड्ढे ने हाथ उठाये- बच्चे ने दोनों हाथ पकड़ लिये और बोला -”बाबा, आज तो मेरे पास भी देने को कुछ नहीं।” वृद्ध की आंखें भर आईं। उसने कहा -”बच्चे तूने आज वह सब दे दिया जो अब तक किसी ने नहीं दिया था।
यह घटनायें बताती हैं कि कितने ही स्वप्न आत्मा की गहराइयों को समझने वाले चित्रपट होते हैं, उनसे मनुष्य जीवन की अनन्तता और नश्वरता पर विश्वास कर सकता है। यही नहीं अपने जीवन को स्वच्छ और पवित्र बनाकर भगवान से सम्बन्ध जोड़कर स्वप्नों को जीवन विकास के सहयोगी रूप में भी विकसित कर सकता है।