वृक्षों के इन्द्र और दधीचि--
सुममा द्वीप में एक ऐसा वृक्ष पाया जाता है जो जल बरसाता है। दोपहर के समय यह हवा से भाप सोख लेता है, थोड़ी देर बाद वह बूँदों के रूप में बरसने लगता है। जिससे नीचे खोदकर रखा गया कुण्ड भर जाता है, जहाँ जल का अभाव होता है वहाँ यही पानी पीने के काम आता है।
अफ्रीका का ‘रोटी का पेड़ ‘ भी प्रसिद्ध है। इस पेड़ की छाल से रोटियाँ बनाई जाती है जो आटे की रोटियों की तरह ही स्वादिष्ट और शक्तिवर्धक होती है। दक्षिणी प्रशान्त महासागर में एक रजाई का वृक्ष पाया जाता है, इसकी छाल निकाल कर कोमल गद्दे और रजाइयाँ बनती है। ब्राजील और पेरू के जंगलों में ‘मिल्क ट्री’ मिलता है, इसे छेद कर दूध निकाला जाता है। यह दूध गाय के दूध की तरह पतला स्वादिष्ट और शक्ति वर्धक होता है।
वृक्षों के इन उपकारों के देखकर लगता है मनुष्य जाति भले ही रीत गई हो, वृक्षों में कर्ण, दधीचि और इन्द्र की तरह उपकार करने वालों का अभाव नहीं हुआ।