मानव अभ्युदय का सच्चा अर्थ

January 1967

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

बुद्ध ने उपनिषद् की शिक्षाओं को जीवन में कार्यान्वित करने की कला का अभ्यास करने के बाद अपना संदेश दिया था। वह संदेश था कि भूमि या आकाश में, दूर या पास में, दृश्य या अदृश्य में, जो कुछ भी है उसमें असीम प्रेम की भावना रखो, हृदय में द्वेष या हिंसा की कल्पना भी जाग्रत न होने दो। जीवन की ही चेष्टा में उठते-बैठो, सोते-जागते, प्रतिक्षण इसी प्रेमभावना में ओतप्रोत रहना ही ब्रह्म-विहार है, दूसरे शब्दों में जीवन की यही गतिविधि है जिससे ब्रह्म का आत्मा में विचार किया जाता है।

यह ब्रह्म की आत्मा क्या है? उपनिषद् के शब्दों में जो आकाश में तेजोमय और अमृतमय है और जो विश्वचेतना है वही ब्रह्म है और उपनिषद् का कहना है कि आकाश में ही नहीं बल्कि जो हमारे अन्तःकरणों में भी तेजोमय और अमृतमय पुरुष है और जो विश्वचेतना का स्रोत है वह ब्रह्म है। इस विराट विश्व के रिक्त स्थान में उस को चेतनता प्राप्त है और हमारी अंतर-आत्मा में भी उसी की चेतनता है।

इस लिये इस व्यापक चेतना की प्राप्ति के लिए हमें अपने अन्तर की चेतना से विश्व की असीम चेतनता का समभाव स्थापित करना है। वस्तुतः मानव के अभ्युदय का सच्चा अर्थ इसी चेतना के उदय और विस्तार में है। वही हमारे-सारे ज्ञान-विज्ञान का ध्येय रहा है।

-रवीन्द्रनाथ ठाकुर

वर्ष 28 सम्पादक - श्रीराम शर्मा आचार्य अंक 1


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118