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January 1967

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अपने को प्रभु में विलीन करें-

ईश्वर के व्यक्त रूप इस संसार-सागर में हम मानव उसके जल पर तैरते फेन और तट पर बिखरे सिकताओं के समान हैं। समय रूपी ज्वार और प्रलय रूपी वायु आती है और उड़ा ले जाती है। किन्तु यह सिकता और फेन-रूपी मानव कहाँ जाते हैं? सिकता समुद्र की अटलता में डूबकर विलीन हो जाती है और फेन जल में घुल-मिलकर तदाकार हो जाता है।

मनुष्य के इन दोनों रूपों की गति एक है। किन्तु अन्तर इतना है कि सिकता समुद्र में डूबकर भी समुद्र रूप नहीं पाती, किन्तु फेन डूबकर समुद्र रूप हो जाता है।

ईश्वर में लवलीन होकर भी जो अपने अहंकार को बनाए रखता है, अपने विभिन्न अस्तित्व की भावना बनाये रखता है वह सिकता-रूप है और जो अहंकार को तिरोहित करके अपने भिन्न अस्तित्व का मोह नहीं रखता वह फेन-रूप है और देहावसान पाने पर समुद्र-रूप होकर आनन्द-रूप हो जाता है।

-खलील जिब्रान


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