विचार स्वातंत्र्य का सम्मान-
एक बार एक अंग्रेज पादरी ने स्वामी श्रद्धानन्द जी को लिखा कि मैं भारत में ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिये आया हूँ। किन्तु हिन्दी का ज्ञान न होने से मुझे अपने कर्त्तव्य में कठिनाई हो रही है। मैं आपके गुरुकुल काँगड़ी में रहकर हिन्दी सीखना चाहता हूँ। मैं वचन देता हूँ कि जब तक गुरुकुल में रहूँगा ईसाई धर्म का प्रचार विद्यार्थियों के बीच नहीं करूंगा।
हिन्दू धर्म के अखण्ड भक्त एवं विद्वान् स्वामी श्रद्धानन्द ने पादरी को उत्तर में लिख भेजा कि ‘आप अवश्य आकर गुरुकुल में रहें और हिन्दी पढ़ें किन्तु इस बात का वचन दें कि यहाँ आकर आप अपने धर्म का प्रचार पूरी तरह करेंगे। इससे मुझे प्रसन्नता होगी-क्योंकि इससे मेरे विद्यार्थी ईसामसीह तथा उनके प्रचारित धर्म के विषय में ज्ञान प्राप्त करेंगे।
पादरी स्वामी जी की यह धर्मनिष्ठा एवं उदारता देखकर इतना प्रभावित हुआ कि जीवन भर के लिये उनका मित्र बन गया।