प्रेम और पराक्रम
साहसी व्यक्तियों को अपने दोनों गुणों पर भरोसा होता है। एक गुण प्रेम जिससे हृदय जीते-जाते हैं और आत्मा की एकता अनुभव की जाती है। मानवता के इस पुण्य पथ का अनुसरण देव पुरुष ही कर सकते हैं क्योंकि प्रेम परमात्मा की प्रत्यक्ष अनुभूति है। पर संसार में ऐसे भी व्यक्ति है जिनकी दृष्टि में प्रेम और मानवता का कोई मूल्य नहीं होता। आतताईपन दिखाने में ही वे अपनी शान समझते हैं। ऐसे व्यक्तियों के लिए साहसी के पास दूसरा गुण-आत्मबल होता है। वह अनाचारी को शक्ति के द्वारा झुकने के लिये विवश कर देता है। यह भी मनुष्य का व्यावहारिक धर्म ही है और उससे भी मानवता का विकास ही होता है। अत्याचार का सामना न करना और उससे डर जाना कार्यरता है। जब भी समय आये हमें अत्याचार के विरुद्ध खड़े होने के लिये भी कटिबद्ध रहना चाहिये ताकि न तो हम साहस-विहीन माने जायें और न अपने प्रेम-गुण के लिये ही हमें लज्जित होना पड़े।
-हरिभाऊ उपाध्याय
अपनों से अपनी बात-