उल्टी चाल सुधारी जाए-
मनुष्य सुख चाहता है और दुःख से दूर भागता है। किन्तु चाहने भर से न तो कोई वस्तु मिलती है और न भागने से कोई भय दूर हो सकता है।
सुख पाने और दुख दूर करने के लिये उसकी परिस्थितियों और कारणों को समझना होगा। मनुष्य न तो सुख की परिस्थितियों को समझना चाहता है और न दुःख के कारणों को जानना चाहता है। यदि मनुष्य इस द्वन्द्व का मूल समझ कर उसके अनुसार उपाय करे तो कोई कारण नहीं कि वह अपने ध्येय को न पा ले।
मनुष्य उन विकारों को दूर करने का तो प्रयत्न करता नहीं जिनके कारण वह दुःखी है। चेष्टा यह जानने की करेगा कि सुख का भंडार स्वर्ग कहाँ है? उसका स्वरूप क्या है? उसमें कौन-कौन से सुख साधन प्राप्त हो सकेंगे? क्या उसकी समस्त उचित और अनुचित कामनायें वहाँ पूर्ण हो जायेंगी? वह आनन्द के लिये ईश्वर की खोज करेगा किन्तु पाँव के नीचे चुभने वाले काँटों को हटाने का प्रयत्न नहीं करेगा। सुख के लिये साध्य को छोड़कर असाध्य की उपासना करेगा। इसी उल्टी चाल को हमें सुधारना है।