श्रेष्ठ पुरुष दूसरे पापाचारी प्राणियों के पाप को नहीं ग्रहण करता, उन्हें अपराधी मान कर उनसे बदलना लेना नहीं चाहता। इस उत्तम सदाचार की रक्षा करनी चाहिए; क्योंकि सदाचार ही सत्पुरुषों का भूषण है।