Quotation

January 1967

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

मन को भाव से ही माना जाता है, वचन या कर्म से नहीं। पत्नी और पुत्री के आलिंगन में भाव की ही भिन्नता है। जब तक मन नहीं जीता जाता, राग-द्वेष शाँत नहीं होते, तब तक मनुष्य इन्द्रियों का गुलाम बना रहता है। मन ही अपने जीवन का रास्ता बनाता है और मृत्यु का रास्ता भी मन में ही तैयार होता है, विचार उस रास्ते की सीमा निश्चित कर देते हैं। -अज्ञात

अपने मित्र एवं पथ-प्रदर्शक नेता मस्तिष्क को यथासम्भव मुक्त एवं निर्विकार रखिए। हर बात पर निष्पक्ष होकर विचार करिये और आवश्यक रीति-नीति को अपनाइये। आपके जीवन से शोक-संतप्त तापों के बहुत से कारण दूर हो जायेंगे।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles