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January 1967

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अभ्यास की दृष्टि रही तो साधन काम आते हैं। अभ्यास की दृष्टि न रही तो उत्तम साधन भी निकम्मे हो जाते हैं।

उत्तम साध्य के लिए उत्तम साधन भी होना चाहिए। सुगन्ध की प्राप्ति चन्दनादि सुगन्धित द्रव्यों से ही सम्भव है। घटिया तेल जलाकर हवन की सुगन्ध नहीं पैदा की जा सकती।

-वृन्द

यह उद्बोधन साँसारिक सफलता, सामाजिक व्यवस्था तथा नैतिक सदाचरण सभी दृष्टियों से महत्वपूर्ण है कि मनुष्य कुछ करने के पूर्व उस पर विचार कर लिया करे। भली प्रकार विचार किये हुये कर्म सब फलकारी होते हैं उनसे ठोस लाभ मनुष्य जाति को मिलते हैं। बिना विचार किये हुये जो काम करते हैं उन्हें बाद में पश्चाताप ही भुगतना पड़ता है।


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