गायत्री पंचमुखी और एकमुखी

पृथ्वी पूजन का तात्पर्य

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उस दिन की बात वहीं समाप्त हो गई पर मन में अनेक शंकाएं समाई हुई थीं। अतः पुनः जब अवसर हाथ लगा तब हमने गुरुदेव से प्रश्न किया ‘‘धरती की पूजा करने से क्या तात्पर्य है? क्या जो लोग पृथ्वी पूजन करते हैं, उन्हें ही वह अन्न देती हैं?’’

पूज्यवर ने कहा, ‘‘बेटा! यह भी भावना का ही विषय है। हमारा यह शरीर पृथ्वी तत्व से बना है अतः हम पृथ्वी माता के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। हमने इस धरती माता का अन्न खाया है, जब पिया है, हम इसके ऋणी हैं। अतः उसका वंदन करते हैं। वंदन करते समय इस जागरूकता की भावना का समावेश होना चाहिए—‘तुम हम सबकी माता हो। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई पारसी, हम सबने मां! तेरे ही पेट से जन्म लिया है। हम सब आपस में भाई-भाई हैं। हम आपस में मिलजुल कर रहेंगे। हम किसी जीव की भी हिंसा नहीं करेंगे। मां! वे सब भी तो तेरी ही संतान हैं। हमारे भीतर एक सच्चे इंसान का दिल है। पृथ्वी पूजन करते समय हम ये सोचें कि हम एकता, जागरूकता तथा कृतज्ञता-इन तीनों ही भावनाओं को परिपक्व करते हैं। विश्व हमारा परिवार है। प्रांत, जाति, वर्ग ये सब अलग-अलग नहीं है, एक ही है। हमारी मां एक ही हैं हम सब सहोदर हैं। हम समाज के प्रति, राष्ट्र के प्रति अपने कर्त्तव्यों को नहीं भुलाएंगे।

इस पृथ्वी से हमें केवल अन्न-जल ही नहीं मिलता। पेड़-पौधे, पर्यावरण, वायु सभी का आधार यह पृथ्वी ही तो हैं। ‘जल, थल, पावक, गगन, समीरा’ सभी तो इस पृथ्वी के स्वस्थ पर्यावरण पर ही आश्रित हैं। हमें उन सबकी भी सुरक्षा करनी है। पृथ्वी से जितना हम लेते हैं उससे अधिक उसे देने को भी तत्पर रहना है। तभी तो सच्चा एवं सार्थक पृथ्वी पूजन होगा। इन श्रेष्ठ भावनाओं के साथ पृथ्वी पूजन किया जाता है।’’ विषय का समापन करते हुए परमपूज्य गुरुदेव ने कहा कि आत्मशोधन के लिए षट्कर्म करते हैं। इन कर्मकांडों से कच्चे लोहे को पक्का बनाया जाता है। हम भी इस भावना से अध्यात्मवादी बन जाते हैं। इन भावनाओं को परिपक्व करने से अवश्य लाभ होगा। बेटा अब तो तुम समझ गए होगे कि षट्कर्म क्यों कराया जाता है।

‘‘जी हां गुरुदेव! अब इस संबंध में हमारा भ्रम दूर हो गया। अब तो हमारे मन में देव पूजन से संबंधित अन्य प्रश्न उभर रहे हैं। उन्हें भी समझाने का अनुग्रह करें।’’

गुरुदेव ने कहा कि अब तो ध्यान का समय हो रहा है। कल प्रातः आगे चर्चा करेंगे। और हम षट्कर्मों के बारे में गुरुदेव द्वारा बताई गई बातों पर चिंतन-मनन करते हुए अन्य कार्यों में लग गए।






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