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हां गुरुदेव! शिखावंदन का प्रयोजन तो समझ में आ गया परंतु यह प्राणायाम करने से क्या फायदा? लोग कहते हैं कि नाक से सांस खीचना और हवा बाहर निकालना तो तांगे के घोड़े भी अच्छी तरह कर लेते हैं। कृपया हमें उसके बारे में भी बताएं ताकि हमारी जिज्ञासा का समाधान हो सके।’’‘‘बेटा, यह तेरा ही नहीं अनेक लोगों का भ्रम है। हमने पहले ही बताया था कि क्रिया के साथ भावना भी होनी चाहिए। प्राणायाम का सिद्धांत है कि हमारी उपासना प्राणवान होनी चाहिए। प्राण निकल जाने पर शरीर निस्पंद हो जाता है। जैसे बिजली का कनेक्शन टूटने पर माइक, पंखा, बल्ब, हीटर आदि नहीं चलते हैं उसी प्रकार कर्मकांड पंखा, बल्ब, हीटर आदि हैं जिनमें प्राणायाम प्राण फूंकते हैं, साहस उत्पन्न करते हैं। बिना साहस के तो कुछ भी नहीं हो सकता। चोरी डकैती के लिए भी हिम्मत चाहिए, साहस चाहिए। पानी का घड़ा उठाने के लिए भी साहस चाहिए। बुराई छोड़ने के लिए भी साहस चाहिए। हम जो भी अनुचित बात है उसे अस्वीकार करेंगे, गलत परंपराओं का अनुसरण नहीं करेंगे, धूमधाम से विवाह नहीं करेंगे, दुनिया के इन बेकार के रीति रिवाजों को तोड़ेंगे-ऐसे संकल्प करने के लिए भी साहस चाहिए। मछली की तरह साहस के साथ पानी को चीर कर ऊपर जाना पड़ेगा। अध्यात्म कायरों का नहीं शूरवीरों का काम है। उसके लिए प्राणवान बनना होगा। कायरों को, लोभ को, अध्यात्मवादी नहीं कहते। अध्यात्मवादी तो लड़ाकू साहसी होते हैं, देवताओं के सामने नाक नहीं रगड़ते।
प्राणायाम के द्वारा हम साहस और हिम्मत को अंदर खींचते हैं, प्राणों में जीवटता उत्पन्न करते हैं। श्वास खींचते समय (पूरक) प्राणों में दिव्य भावों को धारण करने की भावना की जाती है। श्वास बाहर निकालते समय (रेचक) यह भावना होनी चाहिए कि हमारे भीतर की कमजोरियां, निकृष्टता, मलिनता बाहर निकल रही हैं। ऐसे ही पूरक करने के बाद नाक बंद कर लेते हैं (कुंभक) और यह भावना करते हैं कि अच्छाइयां हमारे भीतर सुरक्षित रहेंगी और बुराइयां भीतर नहीं जाएंगी। इस भावनाओं के साथ प्राणायाम करेंगे तभी तो कुछ लाभ होगा।’’
इतना कहकर पूज्यवर ने पूछा ‘‘अब तो प्राणायाम का सिद्धांत समझ गए होगे।’’
हमने कहा ‘‘हां गुरुदेव! हमारी समझ में इस क्रिया के भाव आ गए। अब आप न्यास के बारे में भी हमारा मार्गदर्शन करने की कृपा करें।’’