साधना का मर्म समझाते हुए गुरुदेव ने बताया साधना के लिए
आत्मचिंतन, आत्मशोधन, आत्मपरिष्कार तथा आत्मविकास के सोपानों से आगे बढ़ा जाता है। साधना के ये चार चरण हैं।
उपासना गंगा है तो साधना यमुना है, इनका संगम आवश्यक है। बेटा! तुमने देखा होगा एक बंदर जो तरह-तरह के नाच व करतब दिखाकर मदारी के परिवार के पालन के लिए आय का स्रोत बन जाता है। यह चमत्कार साधना का है। बंदर तो इधर-उधर कूदते रहते हैं परंतु जिस बंदर को साध लिया जाता है वह सर्कस और मदारी के लिए परम उपयोगी बन जाता है, लाखों रुपये कमाता है। इसी प्रकार रीछ, बिल्ली, कुत्ते हाथी आदि को भी जब साध लिया जाता है तो वे इशारे पर काम करने लगते हैं। शेर तो मनुष्य के लिए मौत से कम नहीं है परंतु जब उसे साध लिया जाता है तो वही शेर रिंग मास्टर के इशारे पर कठपुतली की तरह काम करता है, तमाशा दिखाता है, आदेश पालन करता है।
अनगढ़ को सुगढ़ बनाने की प्रक्रिया ही साधना है। कुसंस्कारी को सुसंस्कारी बनाना साधना है। अनगढ़ लोहा ढल जाता है तो इंजन बन जाता है और असंभव कार्य भी कर दिखाता है। दोष-दुर्गुणों का निवारण ही साधना है। राजा दशरथ संतान की कामना से गुरु वशिष्ठ के पास पहुंचे और पुत्रेष्ठि यज्ञ कराने की प्रार्थना की। वशिष्ठ ने यह यज्ञ संपन्न कराने हेतु लोमश ऋषि के पुत्र श्रंगी ऋषि को लाने के लिए कहा। राजा दशरथ को बड़ा आश्चर्य हुआ कि एक बालक से पुत्रेष्ठि यज्ञ कराने की बात गुरुवर क्यों कह रहे हैं। संदेह निवारण के लिए पूछ ही लिया। उत्तर मिला कि उस बालक में संयम शीलता और साधना की अपरिमित शक्ति है। यह तो तुम जानते ही हो कि उन्हीं ऋंगी ऋषि के द्वारा पुत्रेष्ठि यज्ञ संपन्न कराने पर राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघन जैसी विभूतियों का जन्म हुआ था।
गुरुदेव ने अपना ही उदाहरण देते हुए कहा ‘‘हमने स्वयं 24 वर्ष तक केवल गाय के दूध के छाछ तथा जौ की रोटी पर निर्वाह कर चौबीस-चौबीस लाख के 24 महापुरश्चरण संपन्न किए। इस साधना से ही हमारे पास इतनी शक्ति आई है। कितने ही लोगों को नया जीवन दिया। कितने ही लोग रोते हुए आते हैं हंसते हुए जाते हैं। किसी को भी खाली हाथ नहीं जाने देते। यह सब साधना का ही तो चमत्कार है। साधना की परिपक्वता ही ऋद्धि-सिद्धि प्रदान करती है।