पूजा में दीपक जलाते हैं। दीपक तभी प्रकाश देने में समर्थ होगा जब पात्र, घी, बत्ती तीनों हों। पात्रता, निष्ठा और समर्पण। यदि पात्र ही टूटा-फूटा होगा तो उसमें घी कैसे रुकेगा और प्रकाश कहां से फैलेगा। इसी प्रकार हमें भी दीपक के समान ही अपने में भगवान की सेवा की पात्रता पैदा करनी चाहिए। अंदर-बाहर के सब कषाय-कल्मष समाप्त करके दीपक के समान सेवा हेतु समर्पित होना चाहिए। प्यार और सेवा भाव से ओत-प्रोत होना चाहिए। सत्कर्मों के प्रति, समाज सेवा के प्रति निष्ठा भी चाहिए। इन तीनों प्रतीकों की सम्मिलित ज्योति से ही भटकों को राह दिखाई जा सकेगी। ज्ञान का प्रकाश जन-जन तक पहुंचाने में तभी तो सक्षम हो सकेंगे। इसी भावना के साथ दीपक के रूप में हम स्वयं को भगवान के समक्ष समर्पित करके प्रार्थना करते हैं कि हम पात्रता की उपयुक्त कसौटी पर खरे उतर सकें।