हमने पूज्यवर के समक्ष अपनी एक शंका रखी ‘‘
आपने 24 वर्ष तक गायत्री महामंत्र के 24 महापुरश्चरण किए तो आपको लाभ हुआ परंतु कई ऐसे भी हैं जिन्हें कई पुरश्चरण करने पर भी कोई लाभ नहीं हुआ। इसके पीछे क्या कारण है, कृपया हमें समझाइए।’’गुरुदेव ने हमारा शंका समाधान करने से पूर्व एक किस्सा सुनाया कि एक बार राजस्थान में एक मेला लगा था जिसमें एक व्यक्ति ऊंची आवाज लगाकर एक रुपये में एक खाट बेच रहा था। हमने सोचा कि एक रुपये में इतनी सस्ती खाट मिल रही है तो ले लेनी चाहिए। दोपहर में यहीं उसपर आराम करेंगे। जब हम खाट लेने गए तो देखा वह आदमी कह रहा था ‘दो दांया नहीं, दो बांया नहीं, बीच का झाबर झल्ला नहीं और तीन नहीं है पाया। खाट ले लो मेरे भाया।’ वह एक पाए वाली खाट लेकर खड़ा था। उसकी एक मसखरी पर सभी हंस रहे थे। तुम्हें भी यह किस्सा सुनकर हंसी आती होगी परंतु तुम्हारी शंका का समाधान भी इसी में है। एक पाए वाली खाट के समान केवल जप कर लेने से लाभ हो जाए, सब यही चाहते हैं। लिखने के लिए भी तीन चीजों की आवश्यकता होती है, कागज, कलम और स्याही। खेती में भी खाद, पानी, बीज चाहिए। हमारे जीवन के लिए अन्न, जल, वायु तीनों ही आवश्यक हैं। केवल जप से काम चलता नहीं। राम का नाम ही पर्याप्त नहीं है। नाम जप के साथ राम का काम भी करना होगा। हनुमानजी की तरह ‘राम काज करिबे बिना मोहि कहां विश्राम’ की भावना जाग्रत करनी होगी। बिल्वमंगल ने अपना जीवन बदला, वे सूरदास हो गए। वाल्मीकि ने जप भले ही उल्टा किया हो या सीधा परंतु जप ने उनका जीवन क्रम ही बदल दिया था तभी वे इतने महान ऋषि हो सके।
गायत्री मंत्र का महत्व बताते हुए पूज्यवर ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने त्रिवेणी स्नान का महत्व लिखा है—
मज्जनफल देखिय तत्काला ।
काक होई पिक बकऊ मराला ।।
इस चौपाई का अर्थ है कि त्रिवेणी में स्नान करने से कौवा कोयल हो जाता है और बगुला हंस। पर क्या ऐसा हो सकता है? बाह्य आकृति क्या इस प्रकार बदल सकती है? इसका भाव है कि आकृति नहीं प्रकृति बदल जाती है। यह त्रिवेणी में स्नान करने से मनुष्य की मनोदशा भी उत्कृष्ट हो जाती है। यह त्रिवेणी है उपासना, साधना, आराधना की। गायत्री मंत्र के जप के साथ उपासना, साधना और आराधना तीनों ही होनी चाहिए तभी तो वह अपना चमत्कार दिखाएगा।