‘‘गुरुदेव! आजकल प्रत्येक व्यक्ति अनेकानेक कार्यों में व्यस्त रहता है, समस्याओं में उलझा हुआ है। जीवन एक प्रकार से भागमभाग में, मारामारी में बीतता है। ऐसे में हर व्यक्ति के पास समय का अकाल है, कुछ करने को समय ही नहीं मिलता। पूज्यवर! आप कृपया यह समझाएं कि प्रति दिन कम से कम समय में किस प्रकार से पूजा-पाठ का कार्य जन साधारण को करना चाहिए?’’
सुनकर गुरुदेव ठठाकर हंस पड़े और देर तक उनकी खिलखिलाहट के स्वर गूंजते रहे। फिर मानों स्वयं से ही कह रहे हों ‘‘समय का अकाल है, समय नहीं है, समय, समय तो वही चौबीस घंटे का प्रति दिन हर एक को मिलता है। फिर समय की कमी किसे है। अरे कमी है तो वह आस्था की है। हमारी आस्था सही स्थान पर नहीं है। इसी से हम समय का रोना रोते हैं। आस्था जब सिनेमा में लगती है तो उसके लिए तीन घंटे का समय निकल आता है। घर-घर में आज ही टी.वी. के प्रति आस्था जाग रही है तो हरेक के पास उसके लिए समय है। गप्पे मारने के लिए समय है, चाट-पकौड़ी के लिए समय है। आवारागर्दी के लिए समय है, गुंडागर्दी के लिए समय है। परनिंदा के लिए समय है एक दूसरे की टांग खींचने, नीचा दिखाने के लिए समय है। हां समय नहीं तो व्यक्ति निर्माण के लिए और समाज व राष्ट्र निर्माण के लिए तो बिल्कुल भी नहीं है। अरे समय का रोना क्यों रोते हो। समय तो बहुत है बस आस्था नहीं है। यदि आस्था सही दिशा में हो तो समय तो अपने आप मिल जाएगा। इसे समझो, फिर भी क्या करना चाहिए हम पुनः बता रहे हैं।