चंदन-रोली चढ़ाने का अर्थ है कि हमारा जीवन भी चंदन जैसा ही होना चाहिए।
चंदन के संपर्क में आने वाले झाड़-झंखाड़ सभी चंदन जैसे सुगंधित हो जाते हैं। हमारा जीवन खुशबूदार बनना चाहिए। इत्र-फुलेल लगाने से नहीं, हमारे कर्मों की कीर्ति से, सद्विचारों से, सब ओर हमारी यश पताका फहराती रहे। हमारे पास जो भी प्रतिभा है उसे समाज के लिए नियोजित करना चाहिए । स्वार्थ के लिए नहीं, परमार्थ के लिए जीवन जीने की बात सोचें। भागीरथ ने गंगा अवतरण के लिए कठोर तपश्चर्या की थी। उसमें परमार्थ की ही भावना थी तभी तो वह गंगा भी स्वयं को भागीरथी कहलाकर धन्य हुई। भगवान की भक्ति शबरी जैसी होनी चाहिए। केवल भजन-कीर्तन करने वाले सच्चे भक्त नहीं होते हैं। भजन का अर्थ है सेवा करना। शबरी प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में ऋषियों के स्नान घाट तक जाने के मार्ग पर झाड़ू लगाया करती थी ताकि ऋषियों के पैरों में कांटे न चुभ जाएं। उसकी भक्ति निःस्वार्थ भाव से प्रेरित भक्ति थी तभी तो भगवान राम एक दिन उसकी कुटिया में गए और उसके जूठे बेर भी खाए। चंदन यह कहता है कि दूसरों की सेवा करना सीखो।
चंदन के बारे में कहावत है ‘खड़े-खड़े सौ साल, पड़े-पड़े सौ साल’ मतलब कि चंदन का पेड़ सौ साल तक खड़ा रहकर अपनी सुगंध फैलाता रहता है और कटने के बाद उसकी लकड़ी भी सौ साल तक सुगंध देती रहती है। हम भी इसी तरह सौ साल तक जीवित रहकर, ‘जीवेम शरदः शतम्’ समाज में अपने सत्कार्यों की सुगंध फैलाएं और बाद में भी सैकड़ों वर्षों तक वह सुगंध संसार में व्याप्त रहे।
चंदन यह कहता है कि दूसरों की सेवा में अपने को समर्पित करना सीखो। भगवान सदैव पहले मांगते हैं, हमारा समर्पण चाहते हैं फिर कुछ देते हैं। सुदामा से चावल की पोटली मांगी थी। राजा बलि सिंहासन पर बैठे थे, भगवान नीचे खड़े थे, भिक्षा मांगने के लिए। भगवान से कुछ मांगना भक्ति नहीं है, यह तो व्यापार है। देना भक्ति है, समर्पण भक्ति है। हमें कर्ण जैसा दानी होना चाहिए।