गुरुदेव ने बताया, ‘‘
मूर्तिपूजा पहला चरण है। इस माध्यम से हम अपनी भावनाओं को केंद्रीभूत करते हैं। जिस प्रकार छोटे बच्चों को ‘क’ से कबूतर ‘ख’ से खरगोश पढ़ाना पड़ता है, उसी प्रकार मूर्ति पूजा के माध्यम से अध्यात्म का प्रारंभिक शिक्षण दिया जाता है। तिरंगे झंडे का हम सम्मान करते हैं। यह राष्ट्रीय भावना का, गौरव का प्रतीक है। आर्य समाजी मूर्ति पूजा नहीं करते परंतु यदि कोई स्वामी दयानंद की प्रतिमा या चित्र का अपमान करे तो वे कभी बरदाश्त नहीं करेंगे। यह भावना का, सम्मान का विषय है। मूर्ति पूजा प्रारंभिक चरण है जिसके सहारे भगवान को प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त होता है। देव पूजन और मूर्ति पूजा के पीछे क्या भावना है यह अब समझ में आ गया होगा बेटे।’’
‘‘जी हां गुरुदेव। यह सब तो समझ में आ गया परंतु पूजा में चार चम्मच जल, चंदन-रोली, अक्षत, पुष्प और मिष्ठान्न चढ़ाने से क्या होता है? दीपक क्यों जलाते हैं? इससे क्या लाभ है यह भी बताने की कृपा करें।’’