गुरुदेव ने कहा ‘‘न्यास करते समय भावना करनी चाहिए कि ये इंद्रियां शक्ति की, आनंद की स्रोत हैं, हम इनका सदुपयोग करने का संकल्प लेते हैं, देवत्व की स्थापना करते हैं, इनको गतिशील बनाने के लिए क्रिया करते हैं। हथियार को भी सामर्थ्यवान बनाना है, उसे धार देनी है और साथ ही हथियार को चलाने का सही तरीका भी तो आना चाहिए। अब जिन अंगों का न्यास किया जाता है उनके बारे में सुनो—
मुख — इसके दो कार्य हैं। एक भोजन करना अर्थात् स्वाद की शक्ति। जीभ का सही इस्तेमाल करो, सतोगुणी भोजन ही ग्रहण करो। उपनिषद् कहते हैं ‘‘जैसा खाए अन्न-वैसा बने मन।’’ जीभ को काबू में रखकर ही हम स्वास्थ्य रह सकते हैं। हराम की कमाई का अन्न भी हमें नहीं खाना चाहिए। मुख का दूसरा काम है बोलना, इससे किसी के लिए अपशब्द नहीं बोलने चाहिए, दूसरों को गुमराह नहीं करना चाहिए। यदि तुम उचित वाणी बोलने लगे तो गांधी और विवेकानंद जैसी प्रभावशाली वाणी तुम्हारी भी हो जाएगी।
नासिका — इसके बाद नासिका का न्यास करते हैं। कुत्ता अपनी घ्राण शक्ति से ही चोर को पकड़ लेता है। अनेक जीव जंतु गंध पाकर ही भोज्य पदार्थों का पता लगा लेते हैं। यह है इस शक्ति का सदुपयोग। हम भी नाक की शक्ति से उचित की खोज करने की प्रेरणा लें, उचित वस्तु ही खोजें। अकारण बेसिर पैर की बातों पर झूठे अहं के लिए, नाक कटने या नाक ऊंची नीची होने की भावना का त्याग करें।
चक्षु — आंखों का न्यास करते हैं। इस समय भावना करनी चाहिए कि इन नेत्रों से हम दिव्य ही देखेंगे। सारी विश्व-वसुंधरा को भगवान का ही रूप मानकर ‘सियाराम मय सब जग जानी’ की दृष्टि रखेंगे। आज हर व्यक्ति आंख से नकारात्मक ही देखता है, ईर्ष्या-द्वेष की भावना से ही देखता है। आंखों का न्यास करते समय प्रार्थना करनी चाहिए कि हे भगवान! हमें दिव्य चक्षु प्रदान करें ताकि हम आपके दिव्य स्वरूप को देख सकें, सबके अंदर आपका दर्शन कर सकें।
कान — कानों का भी न्यास करते हैं। उस समय हम ‘भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम्’ की भावना रखें। हम कल्याणकारी श्रेष्ठ विचार ही सुनें व ग्रहण करें। हे भगवान हमारे कान हितकारी, परोपकारी, लोक-कल्याणकारी वचन ही सुनें, ऐसी ही प्रेरणा हमें देना-इसी भावना के साथ कानों का न्यास करना चाहिए।
भुजा — भुजाओं के न्यास से ये भावना जागृत करते हैं कि हमारे हाथ सशक्त हों और सत्कर्मों में ही प्रेरित हों। भावना यह है कि भिखारी मत बनो, किसी के आगे हाथ मत फैलाओ, वरदान मत मांगो, पुरुषार्थी बनो। मनुष्य की गरिमा देने में है, देने की वृत्ति पैदा करो, दोनों हाथों से दो। दो हाथों से एक बालिश्त का पेट भरना कठिन नहीं है। परिश्रमी बनो, मेहनत करो, आलसी मत बनो।
जंघा — जंघाओं का न्यास निरंतर गतिशीलता की भावना हृदयंगम करने के लिए करते हैं। ‘चरैवेति, चरैवेति’ के सिद्धांत को धारण करो। उठो, जागो और तब तक न रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए। ‘उत्तिष्ठत जागृत प्राप्य, वरान्निबोधत’ का ध्येय वाक्य सदैव अपने सामने रखो। इसी शक्ति का कमाल था जिससे स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति के प्रकाश स्तंभ बनकर सारे विश्व को आलोकित किया। ब्रह्मचर्य की शक्ति अर्जित करो। गांधी जी के पास यही शक्ति थी जिसका तेज उनकी आंखों में भरा पड़ा था। उन्होंने असाधारण कर्म कर दिखाए।’’
पूज्यवर ने कहा, ‘न्यास क्रिया का दर्शन पक्ष तो अब समझ गए।’
‘हां गुरुदेव! अब हम इसे जीवन में उतारने का अभ्यास करेंगे।’