हमने पुनः प्रश्न किया ‘हे गुरुदेव! क्या गायत्री उपासना से धनबल, शरीरबल, बुद्धिबल मिल सकता है?’’
उनका उत्तर था ‘‘बेटा केवल तुम ही नहीं संसार का प्रत्येक व्यक्ति इन्हीं तीन बलों को प्राप्त करने के लिए भाग रहा है। परंतु इन तीन बलों से बड़ी भी एक शक्ति है अध्यात्म बल जो हमें गायत्री महामंत्र से मिली है। इस शक्ति से तीनों बल भी प्राप्त हो जाते हैं। शरीर बल तो बड़ा आवश्यक है, उससे ही मेहनत व्यायाम, चलना-फिरना सब संभव है। दूसरी समर्थ शक्ति है बुद्धि। बुद्धि का उपयोग डॉक्टर, वकील, आदि सब पैसे कमाने में कर सकते हैं और तीसरी धन की शक्ति से मोटर कार खरीद सकते हैं, मकान बनवा सकते हैं, भौतिक साधनों की उपलब्धि हो सकती है।
इन तीनों शक्तियों से भी महत्वपूर्ण है ‘
अध्यात्म बल’। इसकी प्राप्ति के बिना
शरीरबल, बुद्धिबल, धनबल सभी बेकार हैं। आध्यात्म की इस चौथी शक्ति को आज सब भूल गए हैं।
दुर्योधन के पास इसी का अभाव था। उसके पास क्या नहीं था? राजपाट, धन-संपदा, विशाल सेना, बुद्धि-चातुर्य, सभी तो था पर आध्यात्मिक शक्ति नहीं थी इसी कारण उसे सर्वनाश ही हाथ लगा।
रावण जब मरने लगा तब विचार किया मेरे पास तो धन बल, जन बल, शरीर बल सब कुछ था। उधर ये वनवासी राम-लक्षण! इनके पास तो कुछ भी नहीं था, फिर इन्होंने विजय कैसे पा ली। इस जिज्ञासा के समाधान हेतु उसने राम से ही प्रश्न किया। भगवान राम ने कहा ‘तुम्हारे पास तीनों बल तो थे परंतु चौथा बल नहीं था—अध्यात्म बल।’ रावण ने पुनः पूछा ‘यह चौथा अध्यात्म बल कहां से आया’ रामचंद्रजी ने उसे बताया ‘यह बल गायत्री उपासना से आया। हमें गुरु वशिष्ठ ने यज्ञोपवीत संस्कार के समय इस मंत्र की साधना और आदर्श सिद्धांतों का अपने में समावेश करना इत्यादि समस्त मार्गदर्शन किया था तथा ऋषि विश्वामित्र ने गायत्री-सावित्री महाविद्या सिखाई थी।’
पूज्यवर ने समझाया कि गायत्री महामंत्र के मूलभूत सिद्धांतों को जीवन में उतार कर सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है। बुराइयों को छोड़कर पवित्र विचार से पवित्र कार्य करना चाहिए। उसके आदर्शों और मर्यादाओं का पूर्णरूपेण पालन करना चाहिए तभी यह प्राणवान होकर प्रतिफलित होगी। गुरुदेव ने आगे बताया कि तुम देखते हो कि हनुमान के मंदिर रामचंद्रजी के मंदिरों से कई गुना अधिक हैं। यह सब अध्यात्म का ही प्रतिफल है। भगवान भी भक्त को अपने से बड़ा बना देता है। हनुमान जी पहले सुग्रीव के सेवक थे, बालि के भय से ऋष्यमूक पर्वत पर छुपकर रहते थे। वही हनुमान जब भगवान राम से मिले तब समुद्र लांघने, पर्वत उखाड़ने, संजीवनी लाने जैसे असंभव कार्य भी कर सकने में समर्थ बन गए। जब सामान्य सा वानर अध्यात्म से जुड़कर इतना महान शक्तिशाली बन सकता है तो मनुष्य क्या नहीं कर सकता।
हमारी हठवादिता से पूज्यवर परिचित थे। हमने कहा ‘‘गुरुदेव! हनुमान जी का दृष्टांत तो बहुत पुराना है, हो सकता है इसमें अतिशयोक्ति भी हो। कोई जीवंत उदाहरण बताइए’’
पूज्यवर ने कहा ‘‘बेटा तुमने
महात्मा गांधी को तो देखा होगा।’’
‘‘जी हां गुरुदेव! हमने देखा है, वे दुबले पतले, पांच फीट दो इंच कद के सादगी से जीने वाले व्यक्ति थे।’’
गुरुदेव ने आगे कहा ‘देखो बेटे गांधी जी एक वकील थे। अफ्रीका की अदालत में जब एक मुकदमे की पैरवी कर रहे थे तब दूसरे पक्ष के वकील की बहस का उत्तर नहीं दे पाए और उनके हाथ पैर कांपने लगे, वाणी लड़खड़ाने लगी। आखिरकार अदालत के बाहर आने पर मुवक्किल को वकालत की फीस भी गांधीजी को वापस करनी पड़ी। इतने कमजोर मनोबल वाले गांधीजी जब अध्यात्म से जुड़े तब उनके अंदर इतनी शक्ति आ गई कि एक आवाज पर लाखों व्यक्ति मरने-मिटने के लिए स्वतंत्रता सेनानी बनकर आगे आ गए। जिन अंग्रेजों के राज्य में कभी सूर्य अस्त नहीं होता था उनको भी एक दिन भारत छोड़ना पड़ा। जब अध्यात्म की शक्ति आ जाती है तब आदमी के पास तीनों बल स्वमेव आ जाते हैं। अगर आदमी अध्यात्म को समझ ले तो निहाल हो जाए। इससे शरीर बल, बुद्धि बल, धन बल ही प्राप्त नहीं होते अपितु लोक-परलोक भी संवरता है।
फिर पूज्यवर ने
स्वामी विवेकानंद का दृष्टांत समझाया। नरेंद्र नाम का एक पढ़ा लिखा ग्रेजुएट लड़का स्वामी रामकृष्ण परमहंस के पास नौकरी मांगने गया था। परमहंस ने कहा ‘‘जाओ मां काली से मांग लो।’’ वह मां काली के मंदिर में गया। इसके हृदय में अध्यात्म का प्रकाश स्वामी रामकृष्ण की कृपा से प्रवेश कर गया था। अतः उसके हृदय में अनेक बेरोजगारों की समस्याओं की गुहार गूंजने लगी। इस विश्व माता से अपने लिए एक छोटी सी भीख क्या मांगना? मुझे तो विश्वहित के लिए ही कुछ मांगना चाहिए। वे काली मां की प्रतिमा के समक्ष गिड़गिड़ा उठे ‘हे मां मुझे ज्ञान दो, भक्ति दो, विवेक दो, उनके हृदय में सारे विश्व, जो समस्याओं से भरा पड़ा है, की चिंता जागृत हो गई। नरेंद्र को बहन के विवाह की चिंता थी। घर में मा थी जिसके निर्वाह के लिए नरेंद्र को नौकरी की जरूरत थी। परंतु उन्होंने अपने लिए यह सब न मांगकर विश्वमाता से वैसा ही आशीर्वाद मांगा कि जिससे सबका हित हो। वह नरेंद्र जब अध्यात्म बल से जुड़ा तो विवेकानंद बन गया।
गुरुदेव ने आगे कहा कि तुम हमारे साथ टाटानगर गए थे। वहां जब हम टाटा की फैक्ट्री देखने गए तो वहां के जनरल मैनेजर ने तुम्हारे सामने ही बताया था कि यह फैक्ट्री स्वामी विवेकानंद की ही देन है।
जमशेद जी टाटा ने अपनी डायरी में लिखा है कि उनकी भेंट स्वामी विवेकानंद से विदेश के एक होटल में हुई थी। वहां उन्होंने स्वामीजी से पूछा था कि क्या वे भारत में ऐसा स्थान बता सकते हैं जहां कोयला, लोहा और पानी तीनों एक साथ उपलब्ध हो सकें। स्वामी जी ने एक पल आंख मूंदकर ध्यान किया और भारत के नक्शे में बिहार के सिंहभूमि जिले में एक स्थान बता दिया। जमशेदजी ने भारत आकर इसी स्थान पर अपना कार्य आगे बढ़ाया। आज उसी स्थान पर स्वामी विवेकानंद के आध्यात्मिक तेज के प्रताप से विशाल औद्योगिक नगर बस गया है और इस टाटा नगर की प्रसिद्धि सारे संसार में है। जमशेदजी अपनी समस्त प्रगति का श्रेय स्वामी विवेकानंद को ही देते रहे। अध्यात्म बल का यही चमत्कार है। आज भी जमशेदजी की डायरी वहां पर प्रमुखता से प्रदर्शित है और कोई भी इस सब को पढ़ सकता है। जमशेदजी ने ही बेलूर मठ बनवाया है जहां से रामकृष्ण मिशन का कार्य संचालन होता है।
सच्चा अध्यात्म यही है। असली और नकली अध्यात्म में भी उसी प्रकार अंतर होता है जैसे असली और नकली सोने में। अध्यात्म का अर्थ होता है लोक मंगल का काम करना और पवित्र जीवन जीना।
पूज्यवर ने याद दिलाते हुए कहा कि तुम हमारे साथ गुजरात भी गए थे। वहां बापा जलाराम की मूर्ति देखी थी। बेटे! बापा जलाराम ने भी सच्चे अध्यात्म का जीवन जिया था। वे साधारण किसान थे। उनका व्रत था कि हमारे द्वार से कोई भूखा न जाए। खेत से जो अन्न पैदा होता था वह परोपकार में लगाते थे। उनका यही व्रत उन्हें भगवान तक पहुंचाने में सहायक रहा। एक दिन एक वृद्ध साधु जलाराम के घर ठहरे। उन्होंने कहा ‘मुझे चारों धाम की यात्रा करनी है। आप मुझे यात्रा करा लाओ।’ बापा ने कहा ‘मैं तो खेती के कार्य की देखभाल करूंगा। मेरी धर्मपत्नी आपको चारों धाम की यात्रा करा देगी।’ वृद्ध साधु को यात्रा कराने के लिए उनकी धर्मपत्नी ने सेवा व्रत धारण करना स्वीकार किया तथा उनका सामान लेकर साथ में चल पड़ी। रास्ते में एक जगह वह साधु अपनी झोली सौंपकर शौच के बहाने कहीं चले गए, वह उनकी राह देखती रही। जब शाम तक भी वे वापस नहीं लौटे तो वह उस झोली को, जिसे संभालकर रखने को वृद्ध ने कहा था, लेकर घर आ गई। वह झोली आज तक वहां टंगी है। उस वीरपुर के जलाराम मंदिर में सदाव्रत भोजनालय आज भी अनवरत चल रहा है।
यही अध्यात्म की शक्ति का चमत्कार है। इन दृष्टांतों को सुनकर तुम्हारे सभी भ्रम दूर हो गए होंगे। यदि फिर भी संतोष न हुआ हो तो मेरे जीवन को देखो। मैं अठारह घंटे लोकमंगल के लिए निरंतर काम करता हूं। न तो मैं कभी बीमार हुआ हूं और न ही कमजोर। कोई मुझे बुड्ढा कहता है तो मुझे गाली लगती है। मैं इस उम्र में भी जवान हूं। बाल सफेद होने से कोई बूढ़ा नहीं होता। भेड़ के बच्चे के बाल तो जन्म से ही सफेद होते हैं। हमने लालटेन जलाकर उसकी रोशनी में ही चारों वेदों, अठारह पुराणों तथा 108 उपनिषदों का भाष्य किया है। ‘अखंड ज्योति मासिक पत्र’ से अध्यात्म और विज्ञान को मिलाया है। वैज्ञानिक तो अध्यात्म और विज्ञान में कुत्ते-बिल्ली का सा बैर मानते हैं। हमने दोनों को मित्र के समान मिला कर एक और एक ग्यारह के बराबर शक्तिशाली बना दिया है। जन्म भूमि आंवलखेड़ा, गायत्री तपोभूमि, शांतिकुंज, 2400 शक्तिपीठ इन सबकी करोड़ों की संपत्ति, लाखों परिजनों का विशाल संगठन, यह सब कहां से खड़ा हो गया। यह तो केवल मेरे व्यवहारिक जीवन आदर्श और सिद्धांतों का ही चमत्कार है। अध्यात्म की मैंने असली कमाई तो अभी तिजोरी में बंद कर रखी है। उसे हमारे इस शरीर छोड़ने के बाद तुम सब स्वयं देखोगे।
पूज्यवर ने अपने बारे में जो कुछ कहा था उस बात को आज हम प्रत्यक्ष देख रहे हैं। गायत्री परिवार का विस्तार और अश्वमेध महायज्ञ जैसे विराट आयोजनों की सफलता, यह सब उनकी सूक्ष्म सत्ता और उनकी तप शक्ति की ही उपलब्धि है। कितने ही दुःखी, रोगी, समस्याग्रस्त, व्याकुल व्यक्ति उनके पास आए और सभी को पूज्यवर के आशीर्वाद का लाभ मिला। कितने ही ऐसे परिजन हैं। जिन्हें उन्होंने जीवन दान दिया, मृत्यु की गोद से भी वापस ले आए। आज यह सब एक गहन शोध का विषय है।
हमें पूज्यवर के इस कथन से कि अध्यात्म से सब कुछ पाया जा सकता है, इन दृष्टांतों से पूर्ण संतुष्टि मिली। इसी अध्यात्म को उन्होंने जन-जन को सिखाया। इसके वास्तविक स्वरूप को समझ कर अगणित साधकों के लिए मार्ग प्रशस्त किया।