निद्रा : हमारा पोषण करने वाली माता

April 2000

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इस दुनिया का हर प्राणी अपनी दिनचर्या में स्वाभाविक अंतराल कर ‘नींद’ अवश्य लेता है। पर आखिर क्यों ? वैज्ञानिक अभी तक इसका कोई ठोस कारण नहीं ढूंढ़ पाए है, परंतु इतना जरूर कहा जा सकता है कि नींद प्रत्येक जीवधारी की अनिवार्य जरूरत है। विज्ञानवेत्ताओं के अनुसार ‘नींद’ चेतना का अस्थायी हरण है, जिसके माध्यम से शरीर एवं दिमाग को आराम मिलता है। शरीर के ऊतकों की मरम्मत होती है एवं खर्च की हुई शक्ति वापस मिलती है। तन-मन में नई ऊर्जा का संचार होता है, जिससे व्यक्ति दूने उत्साह के साथ अपना काम करने के लिए सक्षम हो जाता है।

शोधकर्ताओं का मानना है कि सोते समय मानव−शरीर की बाह्य गतिविधियाँ समाप्त हो जाती है, साथ ही आँतरिक गतिविधियाँ भी कम हो जाती है। मस्तिष्क की विद्युत तरंगों के अध्ययन से पता चला है कि सोते समय व्यक्ति कई स्तरों से गुजरता है। सबसे पहले हलकी नींद, फिर क्रमशः गहरी नींद में पहुँचता है। उसके बाद उस स्तर में पहुँचता है। उसके बाद उस स्तर में पहुँचता है, जिसमें उसकी आँख की पुतलियाँ घूमती रहती है। ज्यादातर सपने इसी स्थिति में आते हैं। वैज्ञानिक अनुसंधान के अनुसार सोने के क्रम में बहुत सारी जटिल रासायनिक प्रक्रियाएँ होती एवं विद्युत तरंगें उठती हैं। इन सारी क्रियाओं-प्रक्रियाओं का नियंत्रण मस्तिष्क के मध्य भाग से होता है।

विशेषज्ञों के अनुसार, हमारी नींद टुकड़ों में बंटी होती है। सबसे पहले भुजाओं, पैरों, पीठ एवं गरदन की बड़ी मांसपेशियां सोती हैं। अंत में सबसे छोटी जैसे होठों एवं पलकों की मांसपेशियां सोती है। इसी प्रकार हमारे चेतनाकेंद्र भी क्रमशः एक-एक करके सोते हैं। पहले सूंघने की शक्ति, तत्पश्चात् देखने व सुनने की शक्ति और अंत में स्पर्शशक्ति अवचेतना के आगोश में समा जाती है। परंतु इसका मतलब यह नहीं कि शरीर भी अपना काम करना बंद कर देता है। नींद में भी शरीर के उपयोगी अंग क्रियाशील रहते हैं, भले ही इनकी क्रियाशीलता थोड़ी धीमी पड़ जाती है। नींद में रक्तचाप कम हो जाता है। हृदय एवं नाडी की गति मंद पड़ जाती है। यकृत, मस्तिष्क तथा वृक्क में रक्तप्रवाह मंद पड़ जाता है। इससे शरीर के अवयवों को आराम मिलता है। यदि किसी व्यक्ति को बहुत समय तक जागना पड़े, तो थकान के कारण चिड़चिड़ाने लगेगा एवं उसका शरीर व दिमाग ठीक से काम नहीं कर पाएँगे।

चिकित्सकों के अनुसार एक स्वस्थ मनुष्य के लिए औसतन 6 से 7 घंटे की नींद पर्याप्त होती है। हालाँकि नींद से मिलने वाला लाभ इस बात पर निर्भर नहीं होता कि कौन कितनी गहरी नींद सोया। बार-बार उचटने वाली 6-7 घंटे की नींद से दो तीन घंटे की गहरी नींद ज्यादा लाभप्रद है। इसी तरह रात में ही सोना अनिवार्य नहीं, बल्कि आवश्यकता के मुताबिक किसी भी समय सोया जा सकता है। उम्र के अनुसार नींद की आवश्यकता भी अलग-अलग होती है। बच्चों को वयस्कों से ज्यादा नींद की जरूरत होती है, क्योंकि उनकी अधिकांश ऊर्जा खेलने में खर्च हो जाती है, साथ ही उनके शारीरिक विकास के लिए भी ऊर्जा चाहिए। आमतौर पर एक साल के बच्चे के लिए आठडडडड घंटे, किशोरवय के लिए दस घंटे, वयस्क के लिए 6-7 घंटे एवं बुजुर्ग के लिए पाँच-छह घंटे की नींद पर्याप्त होती है।

आजकल नींद न आना एक आम समस्या बन गई है। प्रसिद्ध अमेरिका मनोचिकित्सक डॉ. एंथोनी वेल्स के अनुसार इसके कई कारण है। चिकित्साविज्ञान के अनुसार बहुत तीव्र दर्द, पुरानी खाँसी, हड्डी-प्लास्टर आदि नींद न आने के कई कारण हो सकते हैं। इन बीमारियों से छुटकारा मिलते ही अनिद्रा रोग भी स्वतः समाप्त हो जाता है। दूसरा कारण मनोवैज्ञानिक विकृति है, जैसे रेस्टलेसनेस ऑफ मेनिया या डिप्रेशन। ऐसे में व्यक्ति को किसी कुशल मनोचिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए। वास्तव में मनोवैज्ञानिक कारण जैसे चिंता, तनाव, ईर्ष्या, द्वेश, भय, अत्यधिक उत्तेजना एवं क्रोध नींद न आने के सबसे बड़े कारण हैं। चाय, काफी, शराब एवं धूम्रपान का अतिसेवन भी नींद संबंधी अनियमितता उत्पन्न करता है।

निद्रा संबंधी गड़बड़ी के पीछे चाहे जो भी छोटे बड़े कारण हों, वे स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत ज्यादा नुकसानदेह हैं। कई मामलों में तो जानलेवा भी सिद्ध हो जाते हैं। निद्रा संबंधी ऐसी ही बीमारी का नाम है- नारकोलीप्सी। इन रोग में कभी भी गहरी नींद आने लगती है, जिससे व्यक्ति का जगे रहना असंभव हो जाता है। इस बीमारी से व्यक्ति में निराशा व उदासी पनपने लगती है। स्मरणशक्ति क्षीण होने के साथ दृष्टिभ्रम भी होने लगता है। एक अन्य बीमारी है- रेपिड आई मूवमेंट स्लीप बिहेवियर डिसऑर्डर। इसमें व्यक्ति विक्षुब्ध हो उठता है। कई मामलों में मिरगी के समान दौरे भी पड़ते हैं।

सामान्यतः खर्राटे लेना गहरी नींद की निशानी समझी जाती है, परंतु सच्चाई यह नहीं है। तेज या गहरे खर्राटे अक्सर ऊपरी श्वसननलिका में बाधा पैदा करते हैं, जिससे न सिर्फ रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है, वरन् पूरी रात मस्तिष्क नींद से उत्तेजित रहता है। यह आदत धीरे धीरे एक बीमारी में परिणत हो जाती है, जिसे ‘आँब्सटक्टिव स्लीप एवनीया सिडोम’ कहते हैं। इससे रोगी व्यक्ति पूरी रात छाती एवं गले में घुटन अनुभव करते हुए बिस्तर पर करवट बदलते हुए बिता देता है। ऐसे रोगी में अचानक दिल का दौरा पड़ने की संभावना बढ़ जाती है।

श्वसन एवं निद्रारोग विशेषज्ञ डॉ. एम.एस कंवर के अनुसार अमेरिका व यूरोप में ऐसे सभी रोगी अपने इलाज के लिए निद्रा प्रयोगशालाओं की मदद लेते हैं। पश्चिम में इन प्रयोगशालाओं के लिए इतनी भीड़ बढ़ती जा रही है कि मरीज को अपनी बारी के लिए महीनों का इंतजार करना पड़ता है। ये प्रयोगशालाएं रोगी की नींद का पूरी रात ‘पाँलीसोमनोग्राफी’ विधि से निरीक्षण करती हैं। यह एक मात्र ऐसी विधि है, जो निद्रा संबंधी गड़बड़ियों, श्वास का नींद के विभिन्न चरणों से संबंध, दिल की धड़कन, रक्तचाप में असामान्यता आदि को नोट करता है। जिसके आधार पर रोगी का सही उपचार संभव होता है। नवीन शोध प्रयासों के अनुसार स्पेक्ट्रोस्कोपी ने भी दिमाग के किसी भी हिस्से का बहुत बारीकी से विश्लेषण कर नींद की समस्या को सुलझाया जा सकता है। भारत में भी कुछ स्थानों पर निद्रा की ऐसी प्रयोगशालाएं स्थापित की गई हैं।

नींद आने में गड़बड़ी समूचे जीवनक्रम को अस्त-व्यस्त कर देती है। पारिवारिक दायित्वों का दबाव, रोजगार व कार्यक्षेत्र में बढ़ते तनाव का असर भी सामान्य व्यक्ति की नींद पर पड़ा है। परंतु नींद संबंधी अधिकांश रोगों के लिए व्यक्ति का रहन-सहन, व्यायाम की कमी, खान-पान की बिगड़ी आदतें एवं मोटापा आदि ज्यादा जिम्मेदार हैं। नींद सामान्य हो, इसके लिए अभी तक कोई अवा व विधि नहीं विकसित हो पाई है, जिससे स्वाभाविक नींद बिना किसी कुप्रभाव के आ सके। चिकित्सकों के अनुसार जब तक अनिद्रा के मूल कारणों को समाप्त नहीं किया जाता, नींद की गोली की गोली से स्थायी निदान पूरी तरह से असंभव है।

निद्रा विशेषज्ञों के अनुसार सहज निद्रा के लिए व्यक्ति को तभी बिस्तर पर जाना चाहिए, जबकि वह सोने के लिए तैयार हो। बिस्तर पर जाने से पूर्व ही उसे स्वयं को समस्त चिंताओं एवं तनाव से मुक्त कर लेना चाहिए। कम से कम सोने से दो घंटे पूर्व ही भोजन कर लेना चाहिए। यह भी जरूरी है कि सोने का कमरा साफ-सुथरा हो, साथ ही कमरे में शाँति हो। पूर्व दिशा की ओर सिर रखकर सोने से सुखमय व शाँतिदायक नींद आती है। यह बात विभिन्न वैज्ञानिक अनुसंधानों से प्रमाणित हो चुकी है। अनिद्रा से बचाव के लिए दिनचर्या को नियमित किया जाना आवश्यक हैं। सूर्योदय से पूर्व उठना, नियमित व्यायाम, तनावपूर्ण वातावरण से बचना नींद लाने में सहायक हैं।

आयुर्वेद में निद्रा को ‘भूतधात्री’ कहा गया है। भूत यानि कि प्राणिमात्र, धात्री अर्थात् पोषण करने वाली। जिस तरह एक माँ बच्चे का पालन पोषण करती है, उसी तरह निद्रा भी शरीर का पोषण करती है। यदि हम चिंता-उद्वेग को दूर फेंककर सरल-निश्छल मनोभावों को आत्मसात कर सोने का प्रयास करें, तो निश्चित रूप से हमें निद्रा से मिलने वाले लाभों-अनुदानों से वंचित नहीं रहना पड़ेगा।


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