तीर्थंकर महावीर ने दो कमंडलु एक साथ जल धारा में छोड़े। एक जिसमें छेद थे धीरे-धीरे पानी भरने के कारण वहीं डूब गया एवं दूसरा जा सही सलामत था- दूर तक तैरता चला गया। तीर्थंकर ने समझाते हुए कहा- मनुष्य इसी प्रकार जीवनधारा में बहकर अपनी नाव भी पार लगा सकता है और डूब भी सकता है। इसमें परिस्थितियों का कहीं कोई हस्तक्षेप नहीं। मन ही है, जो इंद्रियों को गुलाम इस प्रकार बना देता है कि जीवनक्रम ही अस्त-व्यस्त हो जाता है।