दैवी अनुदान अजस्र मात्रा में (kahani)

April 2000

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एक राजा ने महात्मा को अपना हीरे-मोतियों से भरा खजाना दिखाया। महात्मा ने पूछा- “इन पत्थरों से आपको कितनी आय होती है ?” राजा ने का-”आय नहीं होती, बल्कि इनकी सुरक्षा पर व्यय होता है ?” महात्मा, राजा को एक किसान की झोंपड़ी में ले गया। वहाँ एक स्त्री चक्की से अनाज पीस रही थी। महात्मा ने उसकी ओर संकेत कर कहा- “पत्थर तो चक्की भी है और तुम्हारे हीरे-मोती भी। परंतु इसका उपयोग होता है और नित्य पूरे परिवार का पोषण करने योग्य राशि दे देती हैं तुम्हारे हीरे-मोती तो उपयोगहीन हैं। उन्हें यदि परमार्थ में खर्च करोगे, तो सुरक्षा-व्यय तो बचा ही लोगे, बदले में जनश्रद्धा, दैवी अनुदान अजस्र मात्रा में पाओगे।”


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