सुनें महापरिवर्तन की इस आहट को

February 1998

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युगपरिवर्तन की अरुणिमा-आभा सबसे पहले चैतन्यलोक में घनीभूत होती है, बाद में परिवर्तन की ये सूक्ष्म तरंगें स्थूल जगत में विभिन्न घटनाक्रमों के रूप में आकार धरण करती है। भविष्यद्रष्टा महामानव अपनी अतीन्द्रिय क्षमताओं से परिवर्तन की इस आहट को महसूस करते है। उनकी यह अनुभूति भविष्यत् का शब्दचित्र बनकर मानवता के समक्ष प्रस्तुत होती है। ज्योतिर्विद् मनीषी भी काल परिवर्तन की इन्हीं आहटों का ब्यौरा अपनी गणितीय व्याख्या से प्रतिपादित करते है। आज भविष्यद्रष्टा दिव्यदर्शी हों या फिर कालगणना करने वाले ज्योतिषाचार्य, सभी युगपरिवर्तन की प्रक्रिया के तीव्र वेग से संचालित होने पर एकमत हैं। इन सभी के अनुसार इस परिवर्तन प्रक्रिया की परिणति धरती पर सतयुगी सम्भावना को साकार करके ही रहेगी। ये सभी मनीषी वर्तमान विप्लवी एवं भीषण हलचलों के पीछे उज्ज्वल भविष्य की स्वर्णिम छटा निहार रहे हैं। इनका अनुसार भारत फिर से चक्रवर्ती, जगद्गुरु बनेगा एवं विश्व का नेतृत्व करेगा,

अमेरिकन कम्प्यूटर ज्योतिर्विद् जॉन नेसविट एवं पैट्रिशय आवर्देन ने सन् 1982 में अनपीन कृति’ मेगाट्रण्ड्स’ में दस भविष्यवाणियों का संकलन प्रस्तुत किया था। इनके अनुसार सन् 2000 तक का समय समस्त संसार के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इन दौरान दुनिया के सभी देशों एवं मानवता के सभी क्षेत्रों में परिवर्तन की प्रक्रिया अपने तीव्रतम वेग में होगी। इस दौर के बाद इक्कीसवीं सदी में इनसानियत शीर्षतत बुलन्दियों को स्पर्श करेगी।

इनकी भविष्यवाणियों के अनुसार सन् 2000 के पूर्व महाविनाश का आतंक रह-रहकर मानवता को भयाक्रान्त करता रहेगा, परन्तु अन्ततः मानवीयता विजयी होगी सन् 2000 मानवता के इतिहास का स्वर्णकाल सिद्ध होगा। पूरे विश्व में परिवर्तन की आँधी उमड़ेगी यूरोप के देशों में योग, ध्यान तथा पुनर्जन्म पर आस्था एवं विश्वास की बढ़ोत्तरी असाधारण रूप से होगी। प्रत्येक देश भारत के मार्गदर्शन में अपने साँस्कृतिक मूल्यों का सृजन, संरक्षण एवं संवर्धन करेगा। राजनीति में सेवाभावी, चरित्रवान, एवं उच्चशिक्षित व्यक्तियों का पदार्पण होगा। हर क्षेत्र में महिलाएँ आगे आयेगी। महिलाओं का वर्चस्व बढ़ेगा। भारत सबसे समृद्ध देश के रूप में उभरकर आएगा।

ख्यातिनामा ज्योतिषाचार्य बेजान दारुवालास ने भी भारत के भविष्य को उज्ज्वल एवं उमंग भरा बताया है। अपनी गणनाओं के माध्यम से इन्होंने स्पष्ट किया है कि अगली सदी के प्रथम दशक में भारत का विकास विश्वपटल पर उभरकर दीखने लगेगा। दूसरे दशक में यह एक ‘सुपर पॉवर’ बन जायेगा। तभी लोग ‘मेरा भारत महान’ बन जाएगा। तभी लोग ‘मेरा भारत महान ‘ गर्व से कह सकेंगे। 2022 तक भारत दुनिया का मसीहा बन जायेगा। राजनैतिक या सामाजिक कारणों से नहीं वरन् साँस्कृतिक विरासत की वजह से भारत की प्रतिष्ठा विश्व में सर्वोच्च होगी।

कोट्टम राजू नारायण राव ज्योतिष के क्षेत्र में शास्त्रीय मान्यताओं को आधुनिक संदर्भों में देखकर निष्कर्ष निकालते हैं। इन्होंने तेईस सौ सालों के इतिहास की प्रमुख घटनाओं और उन तिथियों में ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति का अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट किया है कि भारत का भविष्य सुनहरा एवं समुज्ज्वल है। इनके अनुसार, आने वाले दो-ढाई सालों में तनाव, विग्रह, हिंसा एवं प्राकृतिक विपदाओं की चौतरफा इसके पश्चात का परिवर्तन सुखद होगा।

उन्होंने इसे पुष्ट करने के लिए ज्योतिषीय गणनाएँ की हैं। बाराहमिहिर के अनुसार, भारत का लग्न मकर है। शनि मंगल के साथ राहु और केतु के संयोग इसकी नियति तय करते है। ईसा से 327 साल पूर्व भारत पर सिकन्दर का हमला हो या गजनी-गोरी को आक्रमण, शनि और मंगल केन्द्र में रहे है। मोहम्मद गजनी ने 24 नवम्बर, 1027 को भारत पर हमला किया था, उसे दिन शनि और राहु एक ही अंशों में स्थित थे। सोमनाथ मन्दिर 25 मई, 1024 को विध्वंस हुआ, उस समय मंगल और केतु मिथुन राशि में एक-दूसरे से काफी निकट थे। 1398 में तैमूर का हमला, 99 अप्रैल, 1526 को पानीपत का प्रथम युद्ध, 5 नवम्बर, 1556 को पानीपत का द्वितीय युद्ध इन्हीं ग्रहों के योगों का संकेत करता है। 9 सितम्बर, 1938 को द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारम्भ होने के समय शनि के साथ केतु की युति थी। 9 अगस्त, 1942 को प्रातः दस बजे मंगल और राहृ सिंह राशि में थे, तब भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ हुआ 6 और 9 अगस्त, 1942 को प्रातः दस बजे मंगल ओर राहु सिंह राशि में थे, तब भारत अगस्त, 1945 को जापान में अणुबम गिराने के समय शनि और राहु साथ बैठे गिराने के समय शनि ओर राहु साथ बैठे थे। भारत विभाजन के फैसले, 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध के समय शनि और राहु का अपूर्व संयोग था। इसी तरह 14 मई, 200 को छह ग्रह एक साथ वृष राशि में होंगे यह योग भारत के उज्ज्वल भविष्य का संकेत करता है। इसी के साथ संसार में नए युग कस सूत्रपात होगा।

भविष्यद्रष्टा टाम वैलेण्टाइन ने सन् 1980 में किए गए अपने भविष्यकथन में 5 मई, 2002 को तीव्रतम परिवर्तनकारी समय घोषित किया है। इस दौरान इस एक ध्रुवीय विश्व में भोगवादी पाश्चात्य ताकतों को वर्चस्व समाप्त हो जाएगा एवं नूतन परिवर्तन परिलक्षित होगा।

सिख धर्म के दशम गुरु गुरुगोविन्दसिंह ने अपने पवित्रतम ग्रन्थ ‘गुरु ग्रन्थ साहिब’ में एक दिव्य अवतारी चेतना द्वारा सतयुगी सम्भावनाओं को साकार होना बताया हैं जापानी सन्त भी शूशमा ने 1985 में अपनी स्थूल काया को त्यागने के पूर्व महापरिवर्तन का संकेत करते हुए कहा था- “इस सदी के अन्त तक विनाश के उमड़ते भयावह बादलों के बावतूद अगली सदी की शुरुआत से धरती पर स्वर्गीय परिस्थितियों के अवतरण का क्रम प्रारम्भ हो जाएगा। इस अद्भुत सृजन की कोई कल्पना नहीं कर सकता है।” महापरिवर्तन की इन आहटों को समझने वाले विवेकीजन स्वयं को भावी युग के अनुरूप तैयार कर सकेंगे। भावी सदी- संवेदनाओं एवं सृजन की सदी होगी। विनाशकारी निष्ठुरता का इसमें कोई स्थान न होगा। अनुमान लगाने में आसानी मिलेगी कि आज इंटरनेट पर जब हम रोजमर्रा के सामान की खरीदी की बात कर रहे हैं, एक-दूसरे की जानकारियों का आदान-प्रदान कुछ ही जानकारियों का आदान प्रदान कुछ ही सेकेण्डों में कर लेते है, तब विज्ञान की स्थिति तब क्या थी, कैसे-कैसे वह अधुनातन स्थिति में पहुँचता चला गया है?

सन् 1900 से 1100 के बीच की अवधि में विज्ञान की कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ संक्षेप में इस प्रकार है।


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