युग के अवतार का आगमन

February 1998

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

दिगम्बरो वापि च सम्बरो व त्वगम्बरों वापि चिदम्बरस्थः। उन्मत्तवद्वपि बाल वद्वा पिशाचवद्वपि चरन्तवन्यान्॥

इस अस्फुट उच्चारण के साथ वह खिलखिलाकर हँसते हुए एक ओर भाग चले। बालकों का झुंड उनके पीछे-पीछे दौड़ा थोड़ी देर तक यह भाग-दौड़ होती रही, फिर वे कुछ दूर पर एक पेड़ के नीचे खड़े हो गए। कि सम्भवतः अब उन्होंने अपने क्रीड़ा सखा बालवृन्द की थकान को जान लिया था। बालकों के साथ क्रीड़ा उन परम वीतराग, योगेश्वर, अवधूत नागा निरंकारी महाराज का सहज स्वभाव था। कानपुर जनपद पर पालीग्राम उनकी इन नित्यलीलाओं का वर्षों से साक्षी था।

आस-पास के सभी ग्रामवासी नागा महाराज की यौगिक विभूतियों से परिचित थे। महाराज उनके लिए गुरु मातृ, सहायक, स्वामी, सखा सभी कुछ थे। ग्रामवासी उनके बारे में इतना ही जानते थे कि इनके शरीर का जन्म पंजाब प्रान्त के किसी राजधराने में हुआ था किसी -किसी से इन्होंने शरीर के जन्मस्थान का नाम अठीलपुर नगर बताया था, जो कि रावी नदी के पश्चिम में था। ज्ञात नहीं अब उस नगर के भग्नावशेष चिन्ह किसी रूप में मिलते हैं या नहीं?

बालविरागी महाराज बचपन से ही हिमालय की ओर प्रस्थान कर गए। हिमशिखरों से घिरे दुर्गम एवं दिव्यक्षेत्र से लोक-साल उग्र साधना की। सिद्धियां उनकी अनुगामिनी बनी। सूक्ष्मशरीर से लोक-लोकान्तर गमन उनके जीवन का सामान्य सत्य बना। हिमालय की भयावह सत्य बना। हिमालय की भयावह शीत हो या फिर कानपुर फतेहपुर, प्रयाग का सामान्य मौसम दिगम्बर रहना ही उनका स्वभाव था। सर्दी के दिनों में भी यह उसी प्रकार स्नान करते थे, जिस प्रकार गर्मियों में किया जाता है। स्नान के बाद तन में लपेटी गयी विभूति उनके शिवत्व को प्रकाशित करती थी।

उनकी आँखों से सहज ही करुणा और ममत्व की तरंगें निकलती थी। एक अलौकिक आकर्षण था उनके वीतरागी व्यक्तित्व में पवित्र भावना का ऐसा तेजोबल था कि कोई भी उन्हें देखकर सरलतापूर्वक मुग्ध हो जाता था। ग्रामीण जनों से लेकर पढ़े-लिखें उच्चशिक्षित इनके चुम्बकत्व से खिंचे चले आते थे।

आज भी कुछ ग्रामीणजन उनके पास आए थे। इनमें से कुछ कष्टपीड़ित थे, तो कुछ जिज्ञासु। इन्हीं में से पास के ही अपने परिचित के साथ नागा महाराज के दर्शनों के लिए गए थे। उन दिनों विचारशीलों के मन में एक ही जिज्ञासा थी, अंग्रेजी के चंगुल से भारत कभी छूट भी पाएगा या नहीं? जब से अंग्रेजों ने एक गाँव के कुछ लोगों को उनकी देशभक्ति के कारण इमली के पेड़ से लटकाकर फाँसी दे दी, तब से आस-पास के सभी गाँवों में दहशत थी। चारों ओर दहशत, आतंक की छाया थी। भय का घना कुहासा ग्रामीणजनों के मनों में छाया हुआ था। डरे-सहमे इन गाँव वालों को देखकर नागा महाराज मुस्कराए। उनकी मुसकान में आश्वासन था, प्रेम था और था अभयदान का संकल्प। अपनी बाल मण्डली के साथ वे धीरे-धीरे चलते हुए इन सभी के पास आ गए। ये सब भी नागास्वामी के सान्निध्य में थोड़ी राहत महसूस कर रहे थे पास आने पर उन्होंने सबको सम्बोधित करते हुए कहा-चिंता क्यों करते हो तुम लोग? ये अँग्रेज रहने वाले नहीं है। इनके पाप का घड़ा भर चुका है हिंदुस्तान से क्या ये सारी दुनिया से उजड़ जाएँगे। अपनी विलायत में ही दुबके रहेंगे।

कब होगा यह सब महाराज! एक ग्रामवासी ने सहज जिज्ञासा की।

हिन्दुस्तान से तो इनके डेरे 19947 में ही उखड़ जायेंगे पर इनके जाते-जाते भी बड़ा तहस-नहस होगा।

महाराज! इतना घोर कलियुग हैं, तब क्या कल्कि भगवान नहीं आयेंगे। पं. जगदेव प्रसाद के इस प्रश्न ने बरबस सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया।

अवतार तो हो चुका है। यह अवतारी बालक हमें ध्यान में दीख पड़ा है। इसके क्रिया-कलाप अद्भुत होंगे। वह गायत्री मंत्र का प्रचार व धर-धर वेदों की स्थापना करेगा, परन्तु अभी इस देश को बहुत सहना है।

स्वतन्त्रता मिलने के बाद भी? बड़ा आश्चर्य था पूछने वाले के स्वर में।

हाँ। स्वतन्त्रता के बाद भी संकट है। पहले तो स्वतन्त्रता ही खण्डित होगी। देश के टुकड़े होने का दर्द ही क्या कम है। उस पर ये लड़ाइयाँ। बाहर से आक्रमण एवं भीतर अपनों के द्वारा ही घात।

नागास्वामी ने सभी के चेहरों पर आयी निराशा को दूर करते हुए आयी निराशा को दूर करते हुए कहा-नहीं, नहीं! इतनी चिंता भी ठीक नहीं! इतनी चिन्ता भी ठीक नहीं। यह तो संघर्ष है। सारा संकट इस सदी के अन्त तक है। फिर तो पूरा युग ही बदल जाएगा। अगली सदी में हिन्दुस्तान के टुकड़े फिर से हिन्दुस्तान में आ मिलेंगे हमें ध्यानयोग से यह सब स्पष्ट दिखाई हमें ध्यानयोग से यह सब स्पष्ट दिखाई देता है।

नागा महाराज आज भविष्य को अपनी दिव्यदृष्टि से देख रहे थे। उनके स्वर में ओज था। वह कहने लगे-तुम सब परेशान न हो, भारत पर हिमालय के ऋषि-तपस्वियों की छत्रछाया है। अभी वे पराधीनता की बेड़ियों को तोड़ने में लगें है। आगे भी वे भीतर से होने वाले और बाहर के प्रहारों से देश को बचाते रहेंगे। अनर्थ की स्थिति न आ पाए, इसके लिए उनका संरक्षक बना रहेगा। अगली सदी में अपना देश दुनिया का सिरमौर होगा। इस युगपरिवर्तन के लिए ही तो वो अवतार आया है इस समय हिमालय में बारह योगीगण तप कर रहे हैं। दुनिया की लड़ाई और सुलह में हम योगीगण ही आगे रहा करते है। सब कुछ ठीक होगा। अब तुम लोग जाओ। भगवान का स्मरण कतरे हुए स्वयं अच्छे बनो, परिवार को अच्छा बनाओ और देश और समाज के लिए अपने जीवन को लगाओ। वीतराग सन्त की इन बातों में ग्रामवासियों के लिए ही नहीं मस्त राष्ट्र के लिए उज्ज्वल भविष्य का आश्वासन था। युगपरिवर्तन की सुनिश्चित झाँकी दिखाकर वे पुनः अपनी दिनचर्या में लग गए।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118