युग के परिवर्तन -प्रवाह में नारियों का संसार भी परिवर्तित हो रहा है अब वे धुँधले-कुहासे भरे अतीत को पीछे छोड़कर उज्ज्वल और गौरवशाली भविष्य की ओर पाँव बढ़ा रही है। कल तक वे धर की दहलीज के भीतर ही सहमी, सकुचाई, ठिठनी-सी रहती थी। सहमी, सकुचाई, ठिठकी-सी रहती थी। आज वे दहलीज के पार हैं कल तक उनके सपने आँखों की पलकों पर ही चिपके रहते थे, आज वे सपने धीरे धीरे आकार ले रहे है। नारी शक्ति का यह समवेत स्वर बीसवीं सदी के अन्तिम मोड़ पर युगपरिवर्तन के इन महान क्षणों में अपनी यथार्थता की गूँज सर्वत्र प्रतिध्वनित कर रहा हैं विश्व के हर कोने में ऐसी हवा चल पड़ी है कि महिलाओं के विकास के अनुरूप वातावरण बनता जा रहा है। आर नारी अपने धर की चारदीवारी में सिमटे दोयम दर्जे से उबरकर, स्वयं की अन्तर्निहित क्षमता, सूझ-बूझ एवं साहस का परिचय देती हुई अपने दृढ़ इरादों एवं आत्मविश्वासपूर्ण कदमों के साथ आगे बढ़ रही है। पुरुष प्रधान समाज में वह अपने स्वतन्त्र अस्तित्व का अहसास दिला रही है।
रूस में यह अहसास सघन हो चला है। वहाँ जनसंख्या की 53 प्रतिशत महिला हैं, जिनमें 47 प्रतिशत रोजगार में लगी है। नौकरी में लोगों उच्चशिक्षा प्राप्त महिलाओं की संख्या 40.5 प्रतिशत प्राप्त महिलाओं की संख्या 50.5 प्रतिशत है और 56.2 प्रतिशत उच्चतर शिक्षा प्राप्त है। राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए कई प्रयास चल रहे हैं। इसी उद्देश्य से अक्टूबर, 1993 में ‘वीमेन ऑफ एशिया’ नामक राजनैतिक आन्दोलन की नींव रखी गयी थी। वहाँ 1993 के संसदीय चुनाव में इस आन्दोलन की 21 सदस्या विजयी होकर आयी थी। गत जून माह में राष्ट्रपति बोरिस येल्तिसन ने महिलाओं के हित में एक अध्यादेश जारी किया, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि स्त्रियाँ समाज में भूमिका अदा कर रही है, उसी अनुपात में उन्हें राज्यप्रणाली के उच्च व मुख्य पदों उन्हें राज्यप्रणाली के उच्च व मुख्य पदों पर भी प्रतिनिधित्व दिया जाए। प्रथम बार वहाँ इस तरह महिलाओं के लिए न्यूनतम कोटा रखने की बात कही गयी।
ईरान के उदारवादी राष्ट्रपति मोहम्मद फातमी ने एक महिला सम्मेलन में, स्त्रियों को पुरुषों के बराबर अधिकार देने कि मजहब के आधार पर महिलाओं को उनके वाजिब अवारों से वंचित नहीं करना चाहिए अपने वादे को निभाते हुए उन्होंने कई महिलाओं को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त भी किया हैं जिनमें मैसीमेह उब्तेकार तो उपराष्ट्रपति पद पर हैं इस समय ईरानी संसद में 13 महिला सदस्य ओर एक महिला उपाध्यक्ष है। महिलाओं एक महिला उपाध्यक्ष हैं महिलाओं को समान अधिकार देने सम्बन्धी प्रयास के ही परिणामस्वरूप वर्ष 17 के अन्त में ईरान ने पहली बार चार महिला न्यायाधीशों की नियुक्ति की है। तेहरान प्रान्त के एक शहर में पारिवारिक मामलों की अदालतों के लिए इनकी नियुक्ति की हैं तेहरान प्रान्त के एक शहर में पारिवारिक मामलों की अदालतों के लिए इनकी नियुक्ति की गयी हैं इस देश के लिए यह वस्तुतः एक चमत्कारी परिवर्तन वाली प्रक्रिया मानी जा रही है, क्योंकि यहाँ पर सदा से नारी पर प्रतिबंध रहा है।
उगते सूर्य के देश जापान में भी नारियों की स्थिति में बहुत परिवर्तन आया हैं द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद छह वर्ष अमेरिकी कब्जे के बाद पुनर्निर्माण के गत चार दशकों में आर्थिक सुधार व सबके लिए अनिवार्य शिक्षा की इस बदलाव का कारण माना जाता हैं गत बीस वर्षों में जापान के श्रम बाजार में महिलाओं ने पुरुषों की अपेक्षा तेजी से प्रवेश किया हैं वर्ष 1976 से 1996 के बीच प्रबंधकीय पदों पर महिलाओं की उपस्थिति में 60 प्रतिशत वृद्धि हुई हैं अभी तक ज्यादातर महिलाएँ बैंक व डिपोर्टमेण्टल स्टोर तक सीमित थी, जबकि आज भव्य व्यापारिक मंत्रणा कक्ष भी उनके लिए अछूते नहीं रह गए है। वर्षों से जापानी कम्पनियों में प्रबन्धकीय श्रेणी केवल पुरुषों के लिए आरक्षित मानी जाती थी। महिलाएँ केवल लिपिकीय कार्य तथा चाय परोसने तक सीमित थी। इन दिनों पहली बार महिलाएँ प्रबन्ध की ओर अग्रसर हुई है। और उनकी संख्या बढ़ती जा रही है। टकाकोडोई वह पहली महिला थी, जो जापान के इतिहास में पहली बार पार्लियामेण्ट में बहुमत से चुनी गयी। राजनीति व अन्य क्षेत्रों में संख्या अब तेजी से बढ़ोत्तरी पर है।
सिडनी में हुए एक अन्तर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार पुरुषों की तुलना में महिलाएँ अच्छी अधिकारी सिद्ध हो सकती है, क्योंकि वे अपने काम के प्रति अतिरिक्त प्रयास के लिए तैयार रहती हैं और उनका सहयोगी व्यवहार आधुनिक कार्यस्थलों के लिए उपयुक्त रहता हैं महिला प्रबन्धक अपने कर्मचारियों का ऊँचे से ऊँचे लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रेरित करती है। सर्वेक्षण में आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, अमेरिका और कनाडा के उत्पादन और सेवा-संस्थाओं के एक लाख से अधिक कर्मचारियों के विचार लिए गए थे इस सर्वेक्षण से यह भ्रम पूरी तरह टूट गया कि नेतृत्व करने के लिए महिलाएँ उपयुक्त नहीं होती। सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि पुरुष अपनी नेतृत्व क्षमता विकसित करने के लिए महिलाओं से सीख ले सकते है।
अपने देश में भी पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी एक क्रान्तिकारी कदम है। 73 वें संविधान संशोधन बिल के परिणामस्वरूप अधिक से अधिक महिलाओं को लोकतंत्र के आधारभूत स्तर पर राजनैतिक प्रक्रिया में भाग लेने के अवसर मिल रहे पंचायतराज के तनों स्तरों गाँव, ब्लॉक, जनपद एवं जिला स्तर पर महिलाओं के लिए एक तिहाई स्थान आरक्षित किए गए हैं। अपनी भूमिका सक्षमता से निभाते हुए उन्होंने सिद्ध कर दिया है कि महिलाएँ किसी तरह कम नहीं है। अनुभव से ज्ञात हो रहा है कि वे बहुत अच्छा काम कर रही है।
पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत मिले अधिकारों एवं कर्तव्यों का सदुपयोग करते हुए बस्तर जिले की ग्राम पंचायत कलगाँव की महिलाओं ने अपने पिछड़े गाँव को एक आदर्श गाँव के रूप में बदलकर एक मिसाल कायम कर दी है। 800 महिलाओं से बने महिला मण्डल ने जब रचनात्मक कार्यों को हाथ में लिया तो सर्वप्रथम शराब के विरुद्ध लिया तो सर्वप्रथम शराब के विरुद्ध आन्दोलन छोड़ा महिलाओं के शराब विरोधी आन्दोलन ने शराबियों की शासत कर दी। उन्हें दंडस्वरूप 151 रुपये कर दी। उन्हें दंडस्वरूप 151 रुपये जुर्माना देना पड़ता था। प्रति रविवार मद्यपान, निरक्षरता एवं अंधविश्वास के खिलाफ महिलाएँ रैली निकालती थी। इसी के साथ ‘स्कूल चलो अभियान’ के अंतर्गत बच्चों को स्कूल चलो अभियान’ के अंतर्गत बच्चों को स्कूल भेजा जाने लगा।
उत्तराखण्ड की महिलाएँ भी इस पंचायती राज से मिले एक-तिहाई आरक्षण का भरपूर उपयोग कर रही हैं अब वहाँ कई महिलाएँ ग्रामप्रधान ब्लॉकप्रमुख है। जिला पंचायातों में भी उनकी काफी संख्या हैं इनमें से कई स्वतंत्र रूप से अपने प्रभाव का उपयोग कर रही हैं विशेषतौर पर ‘चेतना आन्दोलन’ के ऊपर अपनी छाप छोड़ती जा रही वे पुरुष प्रधान समाज में अपनी पहचान बनाने में संघर्षरत है। क्रान्तिकारी महिलाओं में गौरादेवी का उदाहरण प्रसिद्ध है, जिन्होंने ‘ चिपको आन्दोलन ‘ का शुभारम्भ कर विश्व को पर्यावरण रक्षा का मार्ग दिखाया।
हरियाणा में पंचायती राज में महिलाओं की भूमिका पर ‘सेन्टर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज एण्ड एक्शन’ की प्रो. सुशीला कौशिक ने चार जिलों की 100 चुनी गई महिलाओं पर अध्ययन किया है इसके अनुसार एक मौन क्रान्ति का शुभारम्भ हो चुका है। उनके अनुसार इनमें से अधिकांश चुनी गई महिलाएँ दो साल पहले अनपढ़ थीं, लेकिन दो सालों में उन्होंने शिक्षित होने और सरकारी कामकाज में सक्षम होने का अदम्य उत्साह प्रदर्शित किया है। पंचायती समिति की अध्याक्षाएँ इन्हीं दो सालों में विभिन्न राजनैतिक पार्टियां से जुड़ गई और उन्होंने 1996 में हुए हरियाणा असेम्बली चुनाव में भाग लिया। अब वे अपने स्वतन्त्र अस्तित्व का अनुभव कर रही है। अब उनके पति एवं बच्चे भी शिक्षा समेत जिन्दगी के विविध मसलों पर उनकी राय लेते है।
दिल्ली स्थित लेडी इर्विन कॉलेज के कम्यूनिटी रिसोर्स मैनेजमेण्ट तथा एक्सटेंशन विभाग की प्रमुख डॉ. अंजिल कपिला और उनकी सहयोगी डॉ. गीता कटरिया और उनकी सहयोगी डॉ. गीता कटारिया और मुदृला सेठ ने सत्ता के विकेन्द्रीकरण एवं स्थानीय प्रशासन में महिलाओं की भागीदारी से उनकी स्थाति में होने वाले परिवर्तन का पता लगाने के लिए एक सर्वेक्षण किया। अखिल भारतीय महिला संघ की सहायता से होने वाला यह सर्वेक्षण पाँच राज्यों -राजस्थान, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, गया। बाद में 86 महिला कार्यकर्ताओं की संगोष्ठी में इस सर्वेक्षण की रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी। विभिन्न राज्यों में महिला समाज के अन्दर होने वाली उथल-पुथल के रोचक प्रसंगों को उजागर करते हुए संगोष्ठी इस निष्कर्ष पर पहुँची कि ग्रामीण महिलाओं में भी असाधारण रूप से जाग्रति बढ़ रही हैं सत्ता में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका एवं अनुकरणीय सफलता की कहानियाँ उन्हें प्रोत्साहित तो करती ही हैं, साथ ही महिला समाज में हो रहे सामयिक एवं राजनैतिक परिवर्तन की ओर भी संकेत करती है।
उत्तरप्रदेश के मुस्लिमबहुल 10 जिलों की लगभग 45 महिलाओं से मिलने के बाद डॉ. अंजलि कपिला ने उनके दृष्टिकोण में दृढ़ निश्चय पाया। वह कहती है समाज के नेतृत्व का उत्तरदायित्व सँभालना महिलाओं के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि हैं। आरक्षण की नीति ने औरतों के विश्वास को और भी मजबूत किया है, जो उन्हें निर्णय लेने का सुअवसर देती हैं विभिन्न क्षेत्रों में पंचायती राज में सक्रिय महिलाओं में से कुछ का मानना है-”हम आरक्षण को बैसाखी की तरह नहीं देखतीं, इसे प्रमुख धारा से जुड़ने का सुअवसर मना रही है। “लखनऊ में ब्लॉक की एक महिलाएँ जो पहले धर से बाहर निकलने में झिझकती थी, आज प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं यह क्रान्तिकारी कदम हैं। फरीदाबाद जिला परिषद की एक सदस्या का मानना है, हम परिवार को चला सकती है, तो समाज का संचालन क्यों कर सकती।
मध्यप्रदेश के पिछड़े एवं आदिवासियों की यात्रा कर चुकी डॉ. मृदुला सेठ कहती हैं कि इन क्षेत्रों में जाग्रति एवं परिवर्तन की लहर शहरों एवं सभ्य इलाकों से कम नहीं है।
उज्जैन की निर्वाचित पंचायत सदस्या का उदाहरण देते हुए वे कहती है कि वह जिला कलेक्टर का स्थानान्तरण कराने में सफल हुई, जो बालबाड़ी के पोषण कार्यक्रम में घटिया मूल्य पर उपलब्ध करा रहा था। राज्यों -राजस्थान, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, हिमांचल प्रदेश तथा मध्यप्रदेश में किया गया। बद में 86 महिला कार्यकर्ताओं की संगोष्ठी में इस सर्वेक्षण की रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी। विभिन्न राज्यों में महिला समाज के अन्दर होने वाली उथल-पुथल के रोचक प्रसंगों को उजागर करते हुए संगोष्ठी इस निष्कर्ष पर पहुँची कि ग्रामीण महिलाओं में भी असाधारण रूप से जाग्रति बढ़ रही हैं सत्ता में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका एवं अनुकरणीय सफलता की कहानियाँ उन्हें प्रोत्साहित तो करती ही है, साथ ही महिला समाज में हो रहे रासयिक एवं राजनैतिक परिवर्तन की ओर भी संकेत करती है।
उत्तरप्रदेश के मुस्लिमबहुल 10 जिलों की लगभग 45 महिलाओं से मिलने के बाद डॉ. अंजिल कपिला ने उनके दृष्टिकोण में दृढ़ निश्चय पाया। वह कहती हैं समाज के नेतृत्व का उत्तरदायित्व सँभालना महिलाओं के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि हैं। आरक्षण की नीति ने औरतों के विश्वास को और भी मजबूत किया है, जो उन्हें निर्णय लेने का सुअवसर देती हैं विभिन्न क्षेत्रों में पंचायती राज में सक्रिय महिलाओं में से कुछ का मानना है-”हम आरक्षण को बैसाखी की तरह नहीं देखती, इसे प्रमुख धारा से जुड़ने का सुअवसर मान रही हैं। “लखनऊ में ब्लॉक की एक पंचायत सदस्य का कहना है वे महिलाएँ जो पहले धर से बाहर निकलने में झिझकती थी, आज प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं यह क्रान्तिकारी कदम हैं फरीदाबाद जिला परिषद की एक सदस्या का मानना है, पंचायत चलाने में क्या कठिनाई है? जब हम परिवार को चला सकती है, तो समाज का संचालन क्यों नहीं कर सकती।
मध्यप्रदेश के पिछड़े एवं आदिवासियों की यात्रा कर चुकी डॉ. मुदुला सेठ कहती है। कि इन क्षेत्रों में जाग्रति एवं परिवर्तन की लहर शहरों एवं सभ्य इलाकों से कम नहीं है।
उज्जैन की निर्वाचित पंचायत सदस्या का उदाहरण देते हुए वे कहती है कि वह सफल हुई, जो बालबाड़ी के पोषण कार्यक्रम में घटिया किस्म का दलिया अधिक मूल्य पर उपलब्ध करा रहा था। डॉ. सेठ के अनुसार, राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में महिलाओं की स्थिति बदलने लगी हैं। परिवार के साथ ही अब वे अपने सामाजिक दायित्वों का भी कुशलता एवं सफलतापूर्वक निर्वाह कर रही है। सबसे महत्वपूर्ण तो यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी क्रमशः नारीशक्ति नेतृत्व निभा रही है। यह प्रतिनिधित्व स्वावलम्बी तंत्र में भी फैलता जा रहा है, जो कि एक शुभ संकेत हैं। अधिकाँश राजनैतिक दलों ने प्रस्तुत लोकसभा के चुनावों में भले ही नारीशक्ति के अधिकारों की गाथा का बखान करके भी उन्हें टिकट न दिया हो, पर यह सुनिश्चित है कि आधी जनशक्ति की उपेक्षा की जानी चाहिए कि अगला चुनाव जो हर व्यक्ति शीघ्र ही अपने सिर पर आता देख रहा है, लोकमानस स्वयं आगे बढ़ नारी को नेतृत्व पकड़ायेगा। जाग्रत मुक्त प्रशासन एवं अनाचार अश्लीलता से मुक्त साँस्कृतिक तंत्र दे सकती है।
परमपूज्य गुरुदेव कहते थे कि इक्कीसवीं सदी नारी सदी हैं नारी ही अपनी संतुलित मनःस्थिति, साधक अंतःकरण के बलबूते युगपरिवर्तन में अपनी सशक्त भूमिका निबाहेगी, इसमें किसी को कोई संदेह होना चाहिए। बीसवीं सदी का अंत नारी के रमणी स्वरूप सदी का अंत लेकर आ रहा है, जो भी प्रस्तुतीकरण आज भोग्या -कामिनी किसी के रूप में नारी का हो रहा है, महाकाल के डण्डे उसे ठीक करके रहेंगे एवं पुनः दुर्गावतरण हो नारीशक्ति की चहुंओर जय-जयकार होगी, यह विश्वास सबको रखना चाहिए। विश्वभर सबको रखना चाहिए। विश्वभर सबको रखना चाहिए। विश्वभर से यह स्वर उभर रहा हैं एवं परिवर्तन की बेला में एक विराट आँदोलन का रूप लेकर आएगा, ऐसा भविष्यविदों का मत है। अच्छा हो समय रहते नारीशक्ति भी अपनी गरिमा को अनुभव करते हुए अपने मानसिक परावलंबन के जुए को निकाल फेंके व स्रष्टा के इस अभियान को साकार करने का श्रेय स्वयं ले।