पतंजलि (Kahani)

February 1998

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एक दिन जब महर्षि चित्तवृत्ति निरोध में सहायक है? “द्रष्टा पतंजलि अभिप्राय मुस्कराए और बोले वत्स क्या नृत्य-संगीत और रास-रंग भी चित्तवृत्ति निरोध में सहायक हैं? “ द्रष्टा पतंजलि सभिप्राय मुस्कराए और बोले वत्स वास्तव में तुम्हारा प्रश्न तो यह है कि क्या उस रात को मेरा सम्राट के नृत्योत्सव में सम्मिलित होना संयमव्रत के विरुद्ध नहीं था, किन्तु ऐसा लगता है कि संयमव्रत के सही अर्थों को तुम नहीं समझे। सुनो सौम्य, आत्मा का स्वरूप है ‘रसौ वै सः किन्तु ऐसा लगता है कि संयमव्रत के सही अर्थों को तुम नहीं समझे। सुनो सौम्य, आत्म का स्वरूप है ‘रसौ वै सः उस रस का परिशुद्ध और अविकृत रखना ही संयम है। विकृति की आशंका से रसविमुख होना ऐसा ही है। जैसे कोई गृहिणी भिखारियों के भय से भोजन ही पकाना बन्द कर दे अथवा कोई कृषक भेड़-बकरियों के भय से खेती करना ही छोड़ दे। यह संयम नहीं पलायन है। आत्मघात का दूसरा रूप है। आत्मा को रसवर्जित बनाने का प्रयत्न ऐसा ही भ्रमपूर्ण है जैसे जल को तरलता से अथवा अग्नि को ऊष्मा से वियुक्त करना। इस भ्रम में मत फंसो वत्स। “जीवन व्यवहार में अध्यात्म का यह दृष्टिकोण समाहित कर लो तो तुम कुण्ठरहित जीवन जी सकोगे।”


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