परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- - गायत्री महाविद्या एवं उसकी साधना

February 1998

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(उत्तरार्द्ध)

पूर्व अंक में गायत्री महाविद्या के तत्वदर्शन एवं साधना के मर्म के विषय में पूज्यवर की अमृतवाणी पाठकगण पढ़ चुके है। उसी का उत्तरार्द्ध यहाँ प्रस्तुत है। जहाँ तक पिछला क्रम छोड़ा था, वहाँ चर्चा मनःसंयम, मनोनिग्रह, आत्मबल-संवर्द्धन की चल रही थी।

मित्रों! मनोनिग्रह हेतु और भी आगे बढ़े इसके लिए क्या करें? “मातृवत परदारेषु, लोष्ठवत् परद्रव्येषु, आत्मवत् सर्वभूतेषु” ये तीन आधार है, ये तीन कसौटियाँ हैं, जिनके ऊपर कसा जा सकता है कि आप फल प्राप्त करने के अधिकारी भी हैं कि नहीं और आत्मबल आपको मिल भी सकता है कि नहीं। आत्मबल आप संभाल भी सकते हैं कि नहीं और आत्मबल की जिम्मेदारी वहन करने में लायक आपके भीतर कलेजा और हिम्मत है भी कि नहीं। ये बेटे तीन परीक्षाएं है। ये तीन पेपर हैं पी.एम.टी. के। मेडिकल कॉलेज में भर्ती होने के लिए तीन पेपर दीजिए। नहीं साहब, हम पेपर नहीं देना चाहते। हम तो धक्का मारकर मेडिकल कॉलेज में घुसना चाहते है। नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। इम्तिहान दीजिए, पास होइये। पी.एम.टी. में डिवीजन लाइये और हम आपका दाखिला कर लेंगे। नहीं साहब, धक्का मुक्की चलेगी। हम तो धक्के मारेंगे और धक्के मारकर सबसे आगे निकल जायेंगे। बेटे, पहले रेलवे स्टेशनों पर ऐसा होता था हमारे जमाने में। जो धक्के मारता था वे सबसे आगे चला जाता था। टिकट वहीं ले आता था। बाकी रह जाते थे। अब तो क्यू सिस्टम हो गया है ना। आप कमजोर है न। सबसे पीछे खड़े हो जाइये। नहीं साहब, वह पीछे वाला वह पहलवान खड़ा हुआ है। हटाइये उनको, नंबर से खड़ा होना पड़ेगा। जो धक्के मारेगा वह आगे चला जायेगा। साहब हम तो धक्के मारेंगे, किस में मारेंगे, भगवान जी को धक्के मारेंगे और सबसे पहले वरदान ले आएँगे। धक्केशाही नहीं चलेगी अब, लाइन में खड़ा हो, क्यू में खड़ा हो और अपनी जगह साबित कर और हैसियत साबित कर और वह वरदान ले आ, ताकत ले आ।

गायत्री का अनुभव हर सुपात्र के लिए

गायत्री मंत्र क्या हो सकता है, यह मैं आपको समझा रहा था। यह समझा रहा था कि गायत्री की कृपा और गायत्री का अनुग्रह हर आदमी को नहीं मिल सकता, माला घुमाने से मिला होता तो आप में से हर एक को मिल गया होता। आप गायत्री मंत्र की माला कब तक घुमा रहे हैं? अरे साहब बहुत दिन हो गये। आपको छह वर्ष, आपको ग्यारह वर्ष, आपको तीस वर्ष हो गये, पर आपको क्या मिला? महाराज जी, बस यही मिला है कि नाक कट गयी तो कह दिया कि नाक की ओट में भगवान छिपा हुआ है, अब कट गयी है तो भगवान दीखने लगा है। बस इसी तरह ग्यारह माला जप करते हुए हमें 22 वर्ष हो गये और हम यूँ कहे कि हमें कुछ फायदा नहीं होता तो सब लोग यही कहेंगे कि अरे तू तो बड़ा पागल है, तूने काहे को नाक कटा ली, इसीलिए हम तो यही कहते रहते हैं हर एक से कि गायत्री माता अभी हैं, हमको प्रत्यक्ष तो नहीं दिखायी पड़ती, पर रात को सपने में दिखायी पड़ती है। सपने में दिखायी पड़ती है तो क्या लेकर आती है तेरे लिए? नहीं महाराज जी, लेकर तो कुछ नहीं आती मेरे लिए, वैसे ही खाली हाथ आ जाती है। धत् तेरे की। अब मुझे मिलेगा।तो मैं गाली सुनाऊंगा हनुमान जी को। कहूँगा तू मेरे बेटे के यहाँ गया था और सपने में दिखायी पड़ा, पर तुझसे यह भी नहीं बन पड़ा की पाँच रुपयों के नोटों की गड्डी तो दे जाता। नहीं महाराज जी, वह तो कभी नहीं दे गये। धन्य हैं तेरे सपने के हनुमान जी। बेटे! सपने का हनुमान कोई चीज नहीं दे सकता।

ऋतम्भरा-प्रज्ञा प्राप्त करनी हो तो हंस बनें

मैं यह चाहता था कि अब गायत्री की शिक्षा, गायत्री की वास्तविकता आपको बताऊं। कलेवर सिखाने के बाद में वह बात सिखाऊं, जहाँ से गायत्री के चमत्कार, गायत्री की सिद्धियाँ, गायत्री का गौरव छिपा हुआ है। जिसको हम ऋतम्भरा प्रज्ञा कहते हैं। वास्तव में गायत्री का अर्थ आज ऋतम्भरा प्रज्ञा करना पड़ेगा। ऋतम्भरा प्रज्ञा कैसी होती है? बेटे! ऐसी होती है ऋतम्भरा प्रज्ञा, जिसको जो कोई भी आदमी अपने काम में लायेगा उसको कई तरीके अख्तियार करने पड़ेंगे। गायत्री का वाहन हंस है। गायत्री किस पर सवार होंगी? हंस पर सवार होगी और किस पर सवार होगी? कौवे पर। नहीं महाराज जी, कौवे पर नहीं हो सकती गायत्री, हंस पर सवार होती है। हंस किसे कहते हैं। हंस एक प्रतीक है। तू समझता क्यों नहीं है। अरे ये प्रतीक हैं। हंस पर गायत्री नहीं बैठ सकती। हंस पर कैसे बैठ सकती है, हंस तो जरा-सा होता है और गायत्री कितनी बड़ी होती है बता और इतनी बड़ी गायत्री हंस पर बैठेगी तो क्या हो जायेगा बेचारे का? बेचारे का कचूमर निकल जायेगा। हंस पर क्या करेगी बैठकर? गायत्री को बैठना होगा तो हवाई जहाज दिला देंगे। हंस की आफत आयेगी। फिर क्या है हंस? हंस बेटे! वह व्यक्ति है जिसकी दृष्टि ऋतम्भरा प्रज्ञा के अनुकूल है। ऋतम्भरा प्रज्ञा कैसी होती है, जैसे हंस की होती है। हंस की कैसी होती है? हंस कीड़े नहीं खाता। वह मोती खाता है अर्थात् जो मुनासिब है, जो ठीक है, जो उचित है, उसको करेगा, पर जो गैर मुनासिब है, अनुचित है, उसके बगैर काम नहीं चलेगा तो मर जायेगा। भूखा रह लेगा, चाहे मरना ही क्यों न पड़े, पर न तो कुछ अनुचित करेगा और न अभक्ष्य खायेगा। वह सोच लेगा कि न खाने से क्या आफत आ जायेगी। हंस उस व्यक्ति का नाम है, जो नीर और क्षीर का भेद करना जानता है। पानी और दूध को मिलाकर दीजिए। नहीं साहब, पानी हमें नहीं लेना है। हमको दूध लेना है। दूध को फाड़कर अलग कर देगा। पानी को फेंक देगा और दूध को ले लेगा। यहाँ भी वहीं स्थिति है। हंस केवल उचित को ही ग्रहण करता है, अनुचित को नहीं ग्रहण करता। ऋतम्भरा-प्रज्ञा उसी चीज का नाम है। इसे ही जाग्रत करने के लिए हम आपको गायत्री की साधना कराते हैं।

साधना का प्राण समझें

मित्रों! साधना उपासना का प्राण है-समर्पण। बस समर्पण कर लीजिए, फिर देखिए ऐसे ही मारा-मारी की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। मैं पहले ही कहे देता हूँ कि माला मत फिरा, समर्पण करना सीख। बेटा ऐसा कर, इसमें बाँस के बाँसुरी की तरह अपने को खाली कर दें। फिर देख मजा आ जायेगा। नहीं गुरुजी, आप तो कर्मकाण्ड बता दीजिए। क्रिया-कृत्य बता दीजिए। बेटे अभी हम इसी कलेवर की बात कह रहे थे, लेकिन बेटे कलेवर ही सब कुछ नहीं है। प्राण को ही समझ। प्राण किसे कहते हैं? प्राण उसे कहते हैं जिसमें हमें अपनी चेतना का परिमार्जन करना पड़ता है और चेतना को साफ करना पड़ता है। अपनी अन्तर्चेतना पर भी जो मल, आवरण और दोष के तीनों आवरण चढ़े हुए हैं, इनको साफ करने के लिए जो हमको मेहनत करनी पड़ती है, मशक्कत करनी पड़ती है, लड़ाई लड़नी पड़ती है, सख्ती बरतनी पड़ती है, उसको साधना कहते है। मन साधे, सब साधे यही साधना का स्वरूप है।

मैं अब आपको समझाने की कोशिश करूंगा कि साधना का स्वरूप क्या हो सकता है? असली साधना क्या है? नकली की तो मैं क्या कहूँगा आपसे। असली साधना कैसे की जाती है? यह बताता हूँ आपको। असली साधना करता है किसान। किसके साथ-जमीन के साथ। जमीन के साथ में क्या काम करता है? बेटे! धूप में खड़ा रहता है। साल भर तक अपना शरीर और अपना पसीना इस मिट्टी में मिला देता है। ठीक साल भर बाद इस मिट्टी में पसीना मिलाने के बाद में क्या करता है? फसल पैदा होती है। अनाज पैदा होता है और मालदार हो जाता है। अपने आप के साथ में करेगा रगड़, तो गेहूँ का खेत जिस तरीके से फसल देने लगता है उसी तरीके से हमारी परिष्कृत चेतना फसल दे सकती हैं। कमजोर आदमी जब शरीर के साथ मशक्कत करना शुरू कर देता है और उस पर चढ़े मुल्लमों को दूर करना शुरू कर देता है और अपने आहार विहार को नियमित करना शुरू कर देता है तो बेटे व चंदगीराम पहलवान हो जाता है। टी.बी. की शिकायत उसकी दूर हो जाती है और वह मजबूत हो जाता है, साधना करने से। शरीर की साधना यदि आप करें तो बीमार होते हुए भी चंदगीराम पहलवान के तरीके से 22 वर्ष की उम्र में टी.बी. के मरीज होते हुए भी आप अपनी जिंदगी में पहलवान बन सकते है। अगर आप शरीर की साधना करना चाहे तब। साधना किसे कहते है। जैसे किसान अपने शरीर की और मिट्टी की मलाई करता है और रगड़ाई करता है। शरीर के साथ में मलाई कीजिये और आप पहलवान बन जाइये। ये तो हुई साधना शरीर की। आप अपनी अक्ल और दिमाग के साथ में मलाई कीजिए, घिसाई कीजिए और देखिए की आपका दिमाग बेअक्ल होते हुए भी आप कालीदास के तरीके से विद्वान बनते है या नहीं। आप विद्वान बन सकते है कालीदास के तरीके से। रस्सी को हम पत्थर पर बार-बार घिसते है तो निशान बन जाता है। राजा के तरीके से और कालीदास के तरीके से बेटे अगर हम रगड़ करना शुरू कर दें तो प्रगति के किसी भी क्षेत्र में हमारे पास सिद्धियाँ आ सकती है और चमत्कार आ सकता है।

पैसा भी आयेगा तो मनोयोग से ही

अक्ल की बाबत हमने कहा और शरीर के बाबत हमने कहा। लीजिए पैसे के बाबत बताते है। बाँटा नाम का एक मोची था। 12 वर्ष की उम्र में उसके माता-पिता का देहाँत हो गया था। जूते सीना उसने सड़क पर शुरू किया। लेकिन इस विश्वास के साथ कि जूते की मरम्मत के साथ सिद्धाँत जुड़े हुए है। प्रेस्टीज प्वाइंट जुड़ा हुआ है कि जूता ऐसा न बन जाये कि कही कोई आदमी हमसे ये कहे कि जूता घटिया बनाकर दे दिया। जो भी काम हाथ में लिया उसे प्रेस्टीज प्वाइंट मानकर लिया। कई आदमियों ने उसकी प्रशंसा की और कहा-कि मरम्मत करने वाला सबसे अच्छा लड़का वो है। जो नीम के दरक के नीचे बैठा रहता है। उसने पुराने जूते को नया बना दिया। लड़का बड़ा हो गया। लोगों ने कहा-बाँटा क्या तू ये कर सकता है कि हमारे लिए अच्छे नये जूते बना दे। नये जूते मैं कहा से बना सकता हूँ। मेरे पास चमड़ा भी नहीं है सामान भी नहीं है। दरांती भी नहीं है। चीजें भी नहीं है। अगर ये मुझे मिल जाता तो मैं बना देता। लोगों ने कहा दरांती हम दे देंगे तू बना दिया कर। लोगों ने सामान लाकर दिया बाँटा ने जूता बनाकर दिया। जो जूते छह महीने चलते थे वे साल भर चलने लगे। लोगों ने अपने परिचितों से कहना शुरू कर दिया कि अच्छे जूते पहनने है तो बाँटा की दुकान पर चले जाइये। इस तरह बाटा की दुकान एक शानदार जगह पर जा पहुँची। जहाँ आज सारे हिंदुस्तान में ही नहीं विश्व भर में बाटा का जूता प्रसिद्ध हो गया। कही भी चले जाइये देहात में चले जाइये। मैं भी तो एक बार अमेरिका गया हर जगह बाटा का जूता देखने को मिला।

हिंदुस्तान में भी वहीं, यहाँ भी वही, अफ्रीका के गाँव में भी बाँटा की दुकान मिली। मैं देखकर आया हूँ बाटा एक करोड़पति उद्योगपति का नाम है।

मित्रों कहाँ से आता है पैसा। कहीं से नहीं आता पैसा। पैसा मेहनत और रगड़ से आता है। शरीर का बचाये-बचाये फिरता है, काम से बचता फिरता है, दूर-दूर रहता है हरामखोर और कामचोर। कहता है कि हमको पैसा नहीं मिलता, हमारी आर्थिक उन्नति नहीं होता, न तो योग्यता बढ़ाता है न ही श्रम में विश्वास करता है। बाँटा के जमाने में योग्यता थी। नवें दर्जे तक पढ़ा हुआ है। अभी भी विदेशों में चमार और धोबी, मोची और भटियारे रात को दो घंटे नाइट स्कूलों में पढ़ने जाते हैं। भीतर वाले को योग्यता के रूप में विकसित करना होगा। मन से काम करना सीखना होगा। और बेटे! किसके संबंध में बताऊं। धन के सम्बंध से लेकर तू प्रतिभा-प्रतिष्ठा तक कही भी चला जा परिश्रम करने वाले को ही सफलता मिलती है।

सारी शक्तियाँ बीज रूप में हमारे अंदर है

साधना के साथ में भी परिश्रम जुड़ा हुआ है। सच्ची साधना करता है वैज्ञानिक। वैज्ञानिक बड़ी मेहनत करता है तो ताकतवर बम बना देता है। यदि वह फंस जाये तो सैकड़ों मील तक ये ताकत कहाँ से आती है। एटम में से नहीं आती है बेटे। साधना से आती है। साधना किस चीज का नाम है। साधना बेटे, इस चीज का नाम है, जिसमें हम अपने भीतर वाली क्षमता का, चेतना का विकास करते है। और विकसित करते हुए चले जाते है। चेतना का आप तो मूल्य भी नहीं समझते? मैं क्या करूं? चेतना का आप मूल्य भी नहीं पहचानते, आप तो बाहर ही बाहर तलाशते है। देवी-देवताओं के सामने नाक रगड़ते है। इस मंत्र के सामने नाक रगड़ते है उस गुरु के सामने नाक रगड़ते है। आपको तो नाक रगड़ने की विद्या आ गयी है। किसी की खुशामदें कीजिए, किसी की चापलूसी कीजिए। किसी के हाथ जोड़िये और बेटे वहाँ से काम बनाकर लाइये। बेटे किसी के सामने चापलूसी करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि हमारे भीतर सामर्थ्य का स्रोत भरा पड़ा है सामर्थ्य की शक्ति भरी पड़ी है। उसको उभारने में हम समर्थ हो सके, उसे काम में लाने में समर्थ हो सके। तो मजा आ जाए हमारी जिन्दगी में। हमारी जिन्दगी में क्या-क्या होता है? हमारी भीतर वाली शक्ति कितनी है? बेटे यह समझो कि सारे सौरमण्डल में जितनी ताकत और जो ढर्रा है, वह सब ढंग और ढर्रा छोटे-से एटम के भीतर भरा पड़ा है। वृक्ष जो है उसका पूरा रूप टोटे-से बीज के भीतर में पत्तियां और टहनी फल और फूल सबका नक्शा, सबका खाका, सबका आधार इस बीज के अन्दर भरा पड़ा है। इसी तरह ब्रह्मांड में जो कुछ भी है हमारे पिण्ड में दबा पड़ा है। ओर भगवान में जो कुछ भी है हमारी जीवात्मा में दबा पड़ा है। भगवान के सारे के सारे ब्रह्माण्ड में जो शक्तियां और ताकते है वे सब बीज रूप में हमारे भीतर विद्यमान है। बीज को हम बोए उगाए, बढ़ाए, खिलाए, -पिलाए तो उससे पूरा का पूरा बरगद पेड़ ही सकता है साधना इसी का नाम है बीज को विकसित करके बरगद कैसे बनाया जा सकता है? साधना उसी प्रक्रिया का नाम है साधना और कुछ नहीं है? अपनी जीवात्मा को, अपनी अन्तर्चेतना को विकसित करते-करते हम महात्मा एक, देवात्मा दो और परमात्मा तीन, यहां तक जा पहुंचते है इसे प्राइमरी स्कूल, हाईस्कूल, इन्टरमीडिएट और कॉलेज की पढ़ाई समझ हैं यही है आत्मा से परमात्मा तक विकसित होने की प्रक्रिया।

चेतना का महत्व समझे

महात्मा, देवात्मा और परमात्मा और कुछ नहीं अपने आपे का विकास विस्तार है। अपने आपका विकास ही साधना है और कुछ नहीं है। साधना और कोई करके देता है क्या? नहीं कोई नहीं देता हम अपने आपका विकास स्वयं करते है अपने आपका निखार स्वयं करते है। आत्मशक्ति को आपने देखा नहीं। इंजन कितना बड़ा होता है। इंजन साहब छह लाख रुपये का आता है। लेकिन ड्राइवर 250 रुपये का आता है ड्राइवर घसीटता है इंजन को। उसने कहा खड़ा हो जा इंजन खड़ा हो जाता है। और हवाईजहाज? हवाईजहाज को चलाता कौन है? हवाईजहाज कितने का आता है? पाँच करोड़ रुपये का। कौन चलाता है? बैठे पायलट चलाता है। पायलट नहीं होगा तो हवाईजहाज रखा रहेगा। मशीनें कितनी बड़ी क्यों न हो, आटोमेटिक क्यों न हो, कम्प्यूटराइज्ड क्यों ना हों, लेकिन आदमी के बिना नहीं चल सकती। चेतना का मूल्य चेतना की शक्ति इतनी बड़ी है, जिसको उभरने को प्रक्रिया हम आपको सिखाते है। गायत्री मंत्र के माध्यम से। चेतना, जो आपकी सो गई है जो खो गई है चेतना जो आपकी मर गयी। है। जिसको आपने गंवा दिया है। जिस चेतना का आपने महत्व नहीं समझा, उस चेतना को हम आपको उभारना सिखाते है। गायत्री साधना उसी का नाम है। चेतना हमारी कितनी ताकतवर है। यह हमारी भौतिक ओर चेतना दोनों क्षेत्रों का मुकाबला करने में सक्षम है। इसका मैं। उदाहरण देना चाहूंगा। ये पृथ्वी कितनी बड़ी है। साहब बहुत बड़ी है पृथ्वी का वजन कितना है? बहुत है। पृथ्वी की चाल? पृथ्वी की चाल साहब एक घण्टे में छह हजार मील है बहुत बड़ी है ना। हां बहुत बड़ी पृथ्वी। जहां इसका उत्तरी ध्रुव है वहां अगर एक इनसान का बच्चा चला जाए जहां पृथ्वी का ‘बैलेंसिंग प्वाइंट’ है और उस जगह पर एक बच्चा घूसा मार दे खींचकर, तो पृथ्वी अपनी नींव पर से डगमगा जाएगा वह जिस कक्षा में घूमती है उस कक्षा में न घूम करके अगर घूमना बन्द कर दे अथवा कोई और कक्ष बना ले या हो सकता है कि वह बड़ी बना ले हो सकता है कि बहुत छोटी हो जाए। बच्चे का घूसा लगे तो सम्भव है यह पृथ्वी भागती हुई चली जाए और किसी ग्रह में टक्कर मार दे और मंगल ग्रह का चुरा हो जाय ओर हमारी पृथ्वी का भी चूरा हो जाए या यह हो सकता है कि बड़े दिन होने लगे। 365 दिन की अपेक्षा सम्भव है 20-20 दिनों का वर्ष हो जाए। सम्भव है 24 घण्टों की अपेक्षा 6 घण्टों का दिन हो जाय अथवा छह हजार घण्टों का दिन हो जाए। कुछ पता नहीं कुछ भी हो सकता है। एक बच्चे की चंपत खाकर, घूसा खाकर। चेतना के सामने जड़ तो कुछ भी नहीं है। चेतना, जिसको आप भूल गए। चेतना जिसको आपने समझा ही नहीं? चेतना जिसका आप मूल्य ही नहीं समझते? चेतना जिसका विकास ही नहीं करना चाहते? यही है गायत्री साधना का उद्देश्य कि आप अपनी चेतना को परिष्कृत करें, समर्थ बनाए।

चेतना कितनी सामर्थ्यवान है? बेटे, चेतना की सामर्थ्य दिखाने के लिए मैं आपको बीस लाख वर्ष पहले ले जाना चाहूंगा जबकि पृथ्वी छोटे-छोटे जंगली जीवों और जानवरों से भरी पड़ी थी ओर इस पृथ्वी पर ऊबड़-खाबड़ गड्ढे जैसे चन्द्रमा पर सब जगह गड्ढे -टीले दीखते है उसी तरह पृथ्वी पर हर जगह गड्ढे -टीले थे। ऊबड़-खाबड़ बड़ी कुरूप पृथ्वी थी ओर उसमें बहुत भयंकर जानवर घूमा करते थे। इसमें बाद में क्या कुछ परिवर्तन हुए। यही आदमी की अक्ल और आदमी की चेतना है जिसने सारी की सारी पृथ्वी को कैसा बना दिया है। फूल जैसे कहीं ताजमहल बने हुए हैं। कहीं पार्क बने हुए हैं हजारों एकड़ जमीन समतल बनी हुई है किसी जमाने में जहां झाड़-झंखाड़ थे अब पता नहीं क्या से क्या हो गया। चंबल जहां डाकुओं के रहने की जगह थी, देखना थोड़े दिनों बाद क्या हो जाता है। बेटे, वहां बगीचे लहलहाते हुए दिखाई पड़ेंगे, कितनी फसलें उगती हुई दिखाई पड़ेगा ओर वहां गांव और शहर बसे हुए दिखाई पड़ेंगे। आदमी की अक्ल आदमी की चेतना की सामर्थ्य का क्या कहना?

प्राणी जब पैदा हुआ था तब आदिमानव के रूप में था बन्दर के रूप में था चेतना ने आवश्यकता समझी कि तुम्हें काम करना चाहिए और हमारे हाथों की अंगुलियां बन्दर की अपेक्षा ये दसों अंगुलियां ऐसी बेहतरीन अंगुलियां बन गयी कि दुनिया में किसी के पास नहीं है जैसी हमारे पास है। ऐसा बेहतरीन हाथ दुनिया में और किसी से पास नहीं है जो यह से भी मुड़ता हो वहां से भी मुड़ता हों। जो हर जगह से मुड़ जाता हो ऐसा किसी जानवर का हाथ नहीं है कही नहीं है। यह सब कैसे हो गया? हमारी इच्छानुसार ने पैदा किया। सारी चीजें पैदा कर दी। सारे के सारे चमत्कार ये चेतना के है, जमीन की सफाई से लेकर सभ्यता, संस्कृति ओर वाहन और वान सब किसका है। ये आदमी की चेतना का चमत्कारी है न तू समझता क्यों नहीं है। चेतना को अगर संवारा जा सकें। चेतना को अगर संजोया जा सकें, तो आदमी क्या हो सकता है? हम नहीं कह सकते कि आदमी ओर भगवान। चेतना का परिष्कार-चेतना का सुधार-इसी का नाम साधना हैं जो चीजें ऊबड़-खाबड़ है, बेतुकी है, उन्हें ठीक तरीके से ठीक बना देने का नाम साधना है।

हमारी अन्तर्चेतना ही वास्तविक देवी है।

साथियों! मैं आपको एक बात बताना चाहूंगा कि मनुष्य - जीवन कैसा ऊबड़-खाबड़, बेधड़, कुसंस्कारी है। हमारी जीवन कैसा संस्कारविहीन, दिशाविहीन, लक्ष्यविहीन, क्रियाविहीन, अनुशासनविहीन ओर अस्त-व्यस्त है। इन चीजों को अगर ठीक तरीं से बना लिया जाए विचारणाओं को अगर ठीक तरीके से बना लिया जाए, भावनाओं को ठीक तरीके से बना लिया जाए, क्रियाशक्ति को ठीक तरीके से बना लिया जाए तो मित्रो! हम कैसे सुंदर हो सकते है? हम कैसे बुघड़ हो सकते है? मैं आपको क्या बताऊंगा, मैं तो एक ही शब्द में कह सकता हूं कि अगर आपने चमत्कार वाली बात सुनी हो लाभ वाली बात सुनी हो वरदान वाली बात सुनी हो आशीर्वाद वाली बात सुनी हो वैभव वाली बात सुनी हो अध्यात्म की महत्ता वाली बात सुनी हों अक्ल की बात सुनी हो, अध्यात्म की कभी कोई गरिमा आपने भी सुनी हो वरदान और आशीर्वाद वाली बात आपने सुनी हो तो समझना कि ये सारी की सारी विशेषताएं जो बताइर्ह जा रही है ये आदमी की अन्तर्चेतना के विकसित स्वरूप की बताई जा रही है। ओर किसी की नहीं बताई जा रही है। देवली की बताई जा रही है तो चलिए देवी क्या हो सकती है यह बताता है कोई देवी नहीं है हमारी अंतःचेतना जब विकसित होती है तो कैसी हो जाती है। ऐसी हो जाती हैं जिसको सिद्धि कहते है जिसको हमको संभालना ओर संजोना आता है इसे जीवन में हम संस्कृति कहते हैं सभ्यता कहते हैं। जीवन में साधना इसी को कहते है नाई क्या करता है? नाई हमारी हजामत बना देता है और हमें ऐसा बना देता है जैसे मूंछें अभी निकली ही नहीं। यह मिरेकिल - जादू है हजामत बनाने वाले का। हमको खूबसूरत करने वाले का दर्जी जो हमारे फटे-पुराने से कपड़े थे उनका कुर्ता बना देता है जाकेट बना देता है अरे बेटे, यह कपड़ा तो वही है ढाई गज जो सबेरे पड़ा हुआ था। अब कैसा सुन्दर बना हुआ है कमाल है यहां भी बटन यहां भी कच्ख यही भी गोट यहां भी बाजू। देख ले ये किसका कमाल है दर्जी का कमाल है अभी कैसा था कपड़ा? मैला-कुचैला उल्टी-सीधी सीमा बंटी हुई थी। नील लग करके आ गई टिनोपाल लग करके आ गया। ये क्या चीज है ये चमत्कार है ये साधना है कपड़े की साधना किसकी है ये धोबी की साधना है मूर्तिकारी की साधना है पत्थर का एक टुकड़ा नाचीज से छैनी और हथोड़े को लेकर में मूर्तिकार जा बैठा और घिसने लगा, ठोकने लगा, घिसने और रगड़ने लक्ष्मी की मूर्ति बन गई कि मालूम नहीं पड़ा कि यह वही पत्थर का टुकड़ा है कि लक्ष्मी जी है बेटे ये क्या है? ये साधना है और क्या है।

साधना अर्थात् अनगढ़ से सुगढ़

अभी आपको में साधना का महत्व बना रहा था ये घटिया वाली जिन्दगी बेकार जिन्दगी पत्थर जैसी जिन्दगी को आप बढ़िया और शानदार बना सकते हैं सोने का एक टुकड़ा ले जाइए साहब। अरे हम क्या करेंगे? कहीं गिर पड़ेगा। अच्छा तो अभी हम आते हैं उसका क्या बना दिया। ये कान का बुन्दा बना दिया। ये अंगूठी बना दी मीना लगी हुई। अरे साहब बहुत सुन्दर बन गया है यह। क्या यह वही टुकड़ा है? हां यह सुनार का कमाल है सुनार की साधना है उसने खाबड़-खूबड़ धातु के टुकड़े को कैसी सुन्दर अंगूठी बना दिया कैसा जेवर बना दिया। कैसा नाक का जेवर बना दिया। कैसा-कैसा जेवर बना दिया ये हमारी जिन्दगी, बेतुकी जिन्दगी -बेसिलसिले की जिन्दगी? बेतुकी जिन्दगी। बेहूदी जिन्दगी को हम जिस तरह से संभाल पाते हैं साधना इसका नाम है असल में साधना इसी का नाम है वह जो हमने अभ्यास कराया था शुरू में कि आपको तमीज सिखाए और तहजीब सिखाए कौन-सी? कल में इसको बताऊंगा कि पालथी मारकर बैठ। अरे तमीज से सीख। कभी ठीक काम करता है कभी अक्ल से काम करता है कभी नहीं करता है कमर ऐसी करके बैठना। हां साहब ऐसे ही करके बैठूंगा। मटक नहीं सीधे बैठ। मचक-मचक करता है जित्रों ये सारे के सारे अनुशासन, सारी डिसीप्लीन यह आज का विषय नहीं है कभी समय मिला तो आपको बताऊंगा कि आपको जो भी साधना के बहिरंग क्रिया-कलाप सिखाते हैं आखिर क्या उद्देश्य है इनका क्रिया का कोई उद्देश्य होना चाहिए। क्यों साहब पालथी मारकर क्यों बैठते हैं पद्मासन में क्यों बैठते हैं हम तो ऐसे ही बैठेंगे, टांग पसार कर नहीं बेटे, टांग पसार कर मत बैठिये। नहीं साहब हम तो टांग लम्बी करेंगे। इसको छोटी करेंगे नहीं बेटे ये भी गलत हैं। नहीं हम तो यूं माला जप करेंगे सिर के नीचे तकिए लगाकर। नहीं बेटे ऐसे मत करना। ये ठीक नहीं है यह क्या है डिसीप्लीन है साधना के माध्यम से हम अपने व्यावहारिक जीवन को किस तरीके से अनुशासित रूप दे सकते हैं कि तरीके से उस ढाल सकते हैं किस तरीके से अपने कर्मों को अपने विचारों को अपनी इच्छाओं को आस्थाओं को परिष्कृत एवं अनुशासनबद्ध कर सकते हैं। क्रमबद्ध कर सकते हैं असल में साधना इसी का नाम है।

स्वर्णकार के तरीके से, कलाकार के तरीके से, गायक के तरीके से और वादक के तरीके से जो अपने को साध लेता है उसको ही सच्चा साधक कहा जाता है उसकी ही सही रागिनी निकलती है सुर निकलता है कैसे निकलता है? बा ऽऽऽ। अरे बेटे ये क्या बोलता है। यूं मत बोल तो फिर कैसे बोलूं तू ऐसे बोल। जैसे कि भैरवी रागिनी गायी जाती है गुरुजी सिखाइए। बेटा तू आ जाता हमारे पास हम तुझे सिखायेंगे सरगम सा रे गा म पा सिखा देंगे। तब तू ऐसे बोलना जैसे कोयल बोलने लगती है अभी तू जैसे च्चा रहा था इसे सुर नहीं कहते बेटे ऐसे फिर मत बोलना सुर को गले को इस तरीके से साथ कि ऐसी मीठी-मीठी आवाज आए कि बस मजा आ जाए और ये धागे और तार जो सितार में बंधे हुए हैं उन्हें हिला। इसे भन-भन-भन है मक्खी के तरीके से बजा इस तार के बाद उसे बजा इसके बाद इसे बजा, फिर देख किस तरीके से इसमें से कैसी-कैसी सुरलहरी निकलती है तरंगें निकल सकती हैं कैसी-कैसी ध्वनि निकल सकती है जिन पर तू थिरकने लगेगा और नाचने लगेगा, तो महाराज यह कैसे बजेगा? बेटे यह एक साधना है किसकी? धागों की तारें की यह किसकी है साधना? गले की। यह है साधना पत्थर की। ये किसकी है साधना? हर चीज की है सोने की साधना मुचा की साधना और जीवन की साधना कि जीवन कैसे जिया जा सकता है जीवन कैसे उद्यमशील बनाया जा सकता है जीवन कैसे देवोपम बनाया जा सकता है, जीवन की अस्त-व्यस्तता का उदारीकरण कैसे किया जा सकता है। जीवन ठीक तरीके से कैसे जिया जा सकता है अगर ठीक तरीके से आप यह जान पाए तो बेटे आप धन्य हो सकते हैं सब कुछ बन सकते हैं। आप बाहर का ख्याल निकाल दीजिए।

सब कुछ अन्दर ही मौजूद है।

अब तक आप सोचते थे कि यह सच आप बाहर से पाएंगे। आपका ख्याल था कि बाहर बहुत सारी चीजें होती है मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि आप ये सोच अपने मन से निकाल दीजिए। जो चीज बाहर दिखाई पड़ती है वास्तव में वह भीतर से ही आती है बाहर तो इसकी खुशबू बिखरती हुई चली जाती है जैसे -कस्तूरी हिरण की नाभि से होती है परन्तु उसे यह मालूम पड़ता है। कि हवा में से पूरब से वह आती है पश्चिम से आ रही है बेटे, सुगन्ध कही बाहर से नहीं आती, भीतर से निकलती है। भीतर से क्या आती है महक, अच्छा साहब यह बताइए कि शहद, अच्छा साहब यह बताइए कि शहद की मक्खियां जो शहद इकट्ठा करती है वह शहद कहा से आता है, फूल के भीतर से आता है। चलिए हम आपको फूल देते हैं और इसमें से शहद निकाल दीजिए, आप नहीं निकाल सकते, तो इसे अपने केमिस्ट के पास ले जाइए, किसी लैबोरेट्री में ले जाइए और उनसे कहिए कि गुरुजी ने भेजे हैं ये फूल और इसमें से आप शहद निकाल दीजिए। कोई नहीं निकाल सकता है मधुमक्खी में मुंह में जो केमिकल्स होते हैं वे फूल के रस को अपने ढंग से इस तरीके से डाइल्यूट करते है इस तरह से कन्वर्ट करते हैं कि वे सारे के सारे रस शहद बन जाते हैं। इस तरह शहद कहा से आता है? मक्खी के भीतर से आता है नहीं साहब बाहर से आता है फूलों में से। नहीं फूलों में से नहीं आता है मात्र सहायता मिलती है फूलों से। दूध कहा से आता है साहब? गाय का दूध कहा से आता है? घास में से आता है अच्छा आप ले जाइए घास, मैं आपको बीस किलों घास देता है इसमें से निकाल लाइए दूध। अरे। महाराज जी इसमें तो नहीं है इसमें नहीं है तो कहा से आ गया दूध। कही से नहीं आ गया। गाय के भीतर जो केमिकल्स है गाय के भीतर जो पदार्थ वे घास को इस तरीके से कन्वर्ट करते हैं कि वह दूध के रूप में परिणत हो जाते हैं गाय के पेट की जो मशीन है वास्तव में वह गाय के दूध की मशीन है वास्तव में वह गाय के दूध की मशीन है नहीं साहब घास में दूध होता है बिनौले पे दूध होता है खली में दूध होता है नहीं बेटे, न बिनौले में दूध होता है न खली में और नहीं खेली की वजह से गाय ज्यादा दूध पैदा कर लेती है लेकिन असल में जो दूध पैदा करता है वो इसका सिस्टम पैदा करता है बाहर से कुछ नहीं आता नहीं साहब दूध बाहर से आता है नहीं बाहर से नहीं आता। चर्बी कहा से आती है सूअर में? साहब उसको मक्खन खाने को दिया जाता है। सूअर को कौन मक्खन खाने को देगा? सूअर को मक्खन खाते देखा है कोई खिलाता है कोई नहीं खिलाता, कहां से आ जाता है? गंदा मैला होता है उसमें इतनी सारी चर्बी इकट्ठी होती है। चर्बी कहा से आती है अरे बेटा भीतर से पैदा होती है, नहीं साहब कोई बाहद चला जाता है चुपचाप। जब सोए रहते है कोई आता है और छटांक भर घी खिला जाता है सांप में जहर कहा से आता है बता दो जरा। कहा से आता है साहब। सांप मिट्टी खाता है। कीड़े खाता है। मिट्टी में कहा से जहर? नहीं और कीड़े में कहा से जहर? इसमें भी नहीं है जहर। चूहे में भी नहीं है। सांप लाइए कहा से आ गया जहर? उसके भीतर से पैदा होता है।

पेड़ में जो होता है वे धरती और वायुमण्डल में से जल खींच लाता है जहां कही भी पेड़ घने होते हैं वहां वर्षा होती है।पीबिया वालों ने गलती की वहां पेड़ बहुत सारे थे। पेड़ों के ठेकेदार आप और उन्होंने पेड़ों को काटना शुरू कर दिया पेड़ खत्म हो गए। बस बारिश खत्म हो गयी। राष्ट्रसंघ ने अपना पैसा देकर यह कहा कि इतने समृद्ध मुल्क में फिर में पानी बरसना चाहिए और पानी बरसाने के लिए आवश्यक है कि इसने पेड़ लगा लिए जाए। ऐसे पेड़ लगाए जाए पानी का ऐसा इन्तजाम किया जाए कि फिर से उस जमीन पर पेड़ उग आए। वह क्षेत्र हरा भरा बन जाए। रेगिस्तान इसीलिए रेगिस्तान है कि वहां पर पेड़ नहीं है। अगर वहां पेड़ होने लगे पेड़ लगाए जाने लगे तो थोड़े समय बाद सारा रेगिस्तान फिर सवे हरा-भरा हो सकता है पेड़ों में वर्षा को खींचने की ताकत है। वह लोहे को खींचने की ताकत है मैगनेट है। मैग्नेट में खींचने की ताकत है वह लोहे को खींच लेता है धातुएं बनती है तो उसका तरीका यह है कि अपने चुम्बक के जोर से मैगनेट के कोर से जहां-कही सजातीय करा होते हैं जर्रे जर्रे से खींच लेते हैं सोने का जर्रे जहां पड़ा है उसको खींचते चले जायेंगे। इस तरह सोने का जर्रा-जर्रा धीरे-धीरे खिंचता चला जाएगा और उस खदान में शामिल हो जाएगा। धातु की खदान बढ़ती चली जाएगी, बड़ी होती चली जाएगी क्योंकि उसका चुंबकीय मैगनेट अपने सजातियों को खींचता चला जाता है। बेटे लाभ, उन्नति, प्रगति, वैभव, सिद्धियों और चमत्कार ये कुछ भी नहीं है। ये आदमी की विकसित चेतना के आकर्षण हैं मैगनेट हैं अपनी चेतना का विकास कीजिए और पाइये हर चीज को।

अध्यात्म का मर्म है आत्मपरिष्कार

प्रायः यह कहा जाता है कि जब गुरुमिलेगा तो ही सब मिलेगा। नहीं बेटे ऐसे गुरु नहीं मिलेगा। तेरे भीतर की चेतना जाग्रत होगी, तो गुरु आवेगा ओर तेरे पैर चूमेगा, तेरे भीतर की चेतना विकसित नहीं हैं तूने अपने आपको घिनौना बनाकर रखा है। कमीना बनाकर रखा है तो गुरु आएगा भी तो उसकी नाक कट जाएगी और सड़ जाएगी और सड़ी हुई नाक को लेकर के भाग जाएगा, कहेगा कि अरे। बाबा ये कहा से आ गया मैं। किसके पास आ गया। नहीं गुरु के हाथ जोड़ेगा, पैर छुऊंगा। नहीं बेटे। नहीं हो सकता। देवता की शक्ति प्राप्त करने के लिए आपके अन्दर देवत्व विकसित होना चाहिए। भगवान की शक्ति का विकास करने के लिए आपके अन्दर भक्ति का विकास होना चाहिए। मन्त्र की शक्ति का विकास करने के लिए आपके भीतर संयमशीलता का विकास होना चाहिए। अपन


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