युगपरिवर्तन की प्रस्तुत वेला में इस महान कार्य के लिए जो सुविधाएँ सामने आयेगी, उनका उद्भव अदृश्य जगत से होगा। अदृश्य से ही जो कुछ भी किया जाना है वह ब्राह्मीचेतना से जुड़ा कारणशरीर ही सम्पन्न करेगा। इक्कीसवीं सदी में ऐसे ही परिवर्तन होंगे, पर यह प्रतीत न होगा कि यह कैसे हो रहे है। और कौन कर रहा है? -परमपूज्य गुरुदेव ‘नवसृजन के निमित्त महाकाल की तैयारी से