बीसवीं सदी का सफरनामा

February 1998

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हम सब युगपरिवर्तन के अन्तिम पड़ाव पर हैं। यह बीसवीं सदी की सांध्यवेला एवं इक्कीसवीं सदी के स्वर्णिम प्रभात का शुभागमन समय है। सदी के इस सफरनामे में बीसवीं सदी अनेकानेक घटनाचक्रों से होकर गुजरी। इस सदी को ‘स्वाधीनचेतना की सदी’ के नाम से जाना जाता है। विश्व के साथ-साथ अपने राष्ट्र के लिए भी यह सदी मूल्यवान एवं महत्वपूर्ण रही। इसी सदी में राष्ट्र ने सैकड़ों साल की पराधीनता के कालपाश को उतार फेंका। साहित्य, धर्म, राजनीति, विज्ञान, उद्योग एवं व्यापार के क्षेत्र में इसने क्रान्तियों के बीज बोए। बौद्ध-धर्मचक्र-प्रवर्तन का उत्तरार्द्ध विचार-क्रान्ति का शंखनाद इसी सदी में हुआ।

अमेरिका का गहरा होता प्रभाव, कार्लमार्क्स व लेनिन का उदय, साम्यवाद का उदय एवं अवसान, दो विश्वयुद्ध, नागाशाकी और हिरोशिमा पर गिराए गए अणुबम, हिटलर, मुसोलिनी जैसे डिक्टेटरों का अभ्युदय,आइंस्टीन जैसे वैज्ञानिक एवं परमपूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जैसे ब्रह्मर्षि का जन्म इस शताब्दी पर गहन प्रभाव छोड़ने वाली घटनाएँ हैं। भारतीय साहित्य, कला, विज्ञान, संस्कृति, सभ्यता आदि सभी क्षेत्रों पर विश्वजनीन घटनाओं का प्रभाव पड़ा। देश ने विज्ञान, अन्तरिक्ष विज्ञान, कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी, विश्व-व्यापार, शिक्षा आदि क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की, किन्तु भारत के पास जो ऋषिपरम्परा थी विश्वप्रेम और विश्वमानवतािको बोध था, अध्यात्मवाद और सन्तों की तपस्या थी, उसने अपने राष्ट्र की चिन्तनधारा को प्रतिकूल एवं विषमकाल में भी अक्षुण्ण बनाए रखा। इस देश की संस्कृति समूची वसुधा को कुटुम्ब मानने की रही है। इसी कारण इस उर्वर धरा पर समस्त मानवता के कल्याण में तत्पर ऋषि-तपस्वी, अवतार, मानवहितों के लिए समर्पित विचारक एवं लोकसेवी पैदा हुए।

उन्नीसवीं सदी में भारत की जनता जमींदारी, कठोर राजतंत्र और क्रूर विदेशी शासन के तिहरे शिकंजों में कसकर मरणासन्न-सी हो गया था,परन्तु भारतमाता की कोख से उत्पन्न सन्त, शहीद एवं वीर सुपुत्रों -सुपुत्रियों ने राष्ट्र की दासतामुक्ति का बीड़ा उठाया, कुर्बानी दी और पूर्व पुरुषों की भविष्यवाणी को सत्य सिद्ध किया। भारत के पास युगों-युगों की चेतना की सभ्यता का लम्बा इतिहास था। धार्मिक भूमिका और आध्यात्मिक मानस था। अतः वह शीघ्र ही सक्षमता से उठ खड़ा हुआ और चलता हुआ और चलता हुआ था

पहला दशक

स्वामी रामतीर्थ के मुख से जैसे राष्ट्र स्वयं बोल उठा मैं भारत है। विश्व के आलिंगन के लिए मेरे हाथ फैले हैं मैं प्रेम ही प्रेम हूँ। भारत का राष्ट्रवाद सर्वोत्कृष्ट हैं आजादी की लड़ाई में तेजी इसी के आधार पर आयी हृदय में प्रेम के उमड़ते सागर को सँजोयें सत्य और अहिंसा बल बल लिए सन् 1901 में गाँधी का अफ्रीका से भारत आगमन हुआ और वे कलकत्ता काँग्रेस में शामिल हुए। इसी वर्ष प्रथम राष्ट्रीय स्तर की समिति का गठन किया गया तथा एक औद्योगिक कमेटी व शिक्षा-समिति बनायी गयी। 1902 में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी की अध्यक्षता में कांग्रेस का 18वाँ अधिवेशन अहमदाबाद में हुआ। 1903 में नए सम्राट एडवर्ड सप्तम का दिल्ली दरबार लगा। तत्कालीन वाइसराय लार्डकर्जन की दमनकारी प्रवृत्तियों के कारण सन् 1904 में काँग्रेस ने भी अपना रुख बदल लिया। बंगाल बँटवारे ने इस आन्दोलन में चेतना की लहर फूँकी। 15 अगस्त, 1905 में लोकमान्य तिलक के केसरी में लिखे लेख एवं गोखले के नारों ने स्वदेशी आन्दोलन को उग्रराष्ट्रवाद में बदल दिया। काँग्रेस गरम एवं नरम दल में विभाजित हो गयी तिलक पाल एवं लाला लाजपतराय एवं श्री अरविन्द ने गरम दल का नेतृत्व सँभाला।

साम्राज्यवादी लार्डकर्जन की बंग-भंग नीति ने समस्त राष्ट्र को आन्दोलन के लिए प्रेरित किया। 16 अक्टूबर, 1905 का दिन बंगाल में राष्ट्रीय शोक दिवस के रूप में मनाया गया। इसमें 50 हजार लोगों ने भाग लिया। गुरुदास बनर्जी, सुरेन्द्रनाथ टैगोर आदि सभी बंगाल के रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि सभी बंगाल के प्रमुख नेता इस अवसर पर उपस्थित हुए। इन आन्दोलन ने जुझारू राष्ट्रवाद ओर राष्ट्रवाद ओर राष्ट्रीय देक्याभव को जन्म दिया।

शताब्दी के प्रथम दशक में ही अंग्रेजों की षह पर 30 दिसंबर 1906 को ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की स्थापना हुई 1908 में युगान्तर दल ने कलकत्ता के अत्याचार चीफ प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड की हत्या की योजना बनायी। इस प्रयास में खुदीराम बोस को फाँसी की सजा हुई। इसी दौरान क्रान्तिकारी साहित्य लिखा गया। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपने गीतों में स्वदेशी टैगोर ने अपने गीतों में स्वदेशी का मूलमंत्र फूँका। उनके गीतों व्याख्यानों एवं लेखों ने जनमानस में नई जान डाली। इसी वर्ष लोकमान्य तिलक को छह वर्षों के लिए माण्डलों जेल भेज दिया सरकार उग्रराष्ट्रवादियों को बुरी तरह अपने दमन-चक्र में पीसने लगी। ‘सन्ध्या’ और ‘बन्देमातर् 8 जैसे राष्ट्रीय पत्रों पर मुकदमा चलाया गया। 1901 में श्री अरविन्द संनरुस ले ला। 1990 में वे एकांत साधना के लिए पाण्डिचेरी चले गए ताकि अपनी आध्यात्मिक शक्ति अपनी आध्यात्मिक शक्ति से भारत की राष्ट्रीय चेतना को और अधिक सक्रिय व जाग्रत सके इस प्रथम दशक में देश को कुछ स्थायी लाभ भी हुए। देश भर में 6 हजार मील लम्बी रेल लाइनें बिछायी गयी। कृषिसुधार के लिए सिंचाई आयोग का गठन हुआ और कृषि अनुसंधान के लिए पूसा इन्स्टीट्यूट बना।

दूसरा दशक

दूसरे दशक की सक्रिय शुरुआत 20 सितम्बर, 1999 को परमपूज्य गुरुदेव के जन्म के साथ हुई उनके रूप में जैसे भारत के उज्ज्वल भविष्यत् ने जन्म लिया। इसी के कुछ दिनों के बाद 12 दिसम्बर, 1911 को सम्राट जॉर्ज पंचम ने दिल्ली दरबार का आयोजन करके बंगाल विभाजन को निरस्त कर दिया। 1912 में गाँधीजी ने गोखले को राजनैतिक गुरु के रूप में स्वीकार किया। सन् 1994 में विश्वयुद्ध आरंभ हो गया इस प्रथम महायुद्ध के साथ ही क्रान्तिकारियों सरगर्मियों बढ़ गयी। खिलाफत आन्दोलन के प्रश्न पर मुसलमान भी उग्रवादी क्रांतिकारियों के निकट जाने लगे बहुत सारे क्रान्तिकारी भारतीय क्रांतिकारियों को सहायता भेजने के लिए बर्लिन में इकट्ठे हुए यह महायुद्ध भारत के राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक परिदृश्य में भारी परिवर्तन लाने वाला साबित हुआ। इसी बीच 1993 में विश्व कवि टैगोर नोबुल पुरस्कार से सम्मानित किए गए। 1995 में उन्हें कैसे हिन्द की पदवी से विभूषित किया गया।

1915 में ही सिंगापुर में नियुक्त पाँचवीं लाइट इंफेंट्री बटालियन के भारतीय सिपाहियों में विद्रोह फूटा। इसी वर्ष वीरेन्द्रनराथ्, भूपेनद्रदत्त, हरदयाल आदि क्रान्तिकारियों ने ‘इण्डिरुन इंडिपेण्डैंस कमेटभ् की स्थापना की। दिसंबर माह में राजा महेन्द्र प्रताप, बरकतुल्ला और ओबेदुल्ला सिन्धी ने काबूल में स्वतन्ख् भारत सरकार बनायी। अँग्रेजों ने 1857 के गदर के बाद पहली बार अत्यन्त दमनकारी कदम उठाया। ईरान में सूफी अम्बाप्रसाद व पाण्डुरंग। खनखेजे ने भारतीय सैनिकों को बगावत को उकसाया, परंतु बगावत सफल न हो सकी, उल्टे गदर पाटी बिखराव की स्थिति में पहुँच गयी यह दशक जवाहरलाल नेहरू का उदयकाल था इसी दौरान आयरलैण्ड में चल रहे होतरुल आन्दोलन की शैली पर 1915 में पूना जोसेफ बपतिस्पा ने होमस्ल लीग की स्थापना की सुझाव दिया। 28 अप्रैल, 1916 को बेलगाँव में इसकी स्थापना भी हुई। बीच तिलक स्वदेश वापस आ गए थे। उनकी साम्राज्यवाद पर जरा भी सहानुभूति नहीं थी। उन्होंने उद्घोष किया, “स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार हैं और हम इसे लेकर रहेंगे। इसी समय आयरिश महिला एनीबेसेण्ट भी भारत आयी और उन्होंने स्वतन्त्रता आन्दोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिया। पं. मदनमोहन मालवीय ने काशी में हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की।

1917 में विश्वयुद्ध तो अवश्य थमा, पर रूसी क्रान्ति की सफलता ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद की नींद हराम कर दी। उधर लिक की ओजस्वी वाणी नवयुवकों में नवप्राण फूँक रही थी। ब्रिटिश सरकार ने भारत को खुश करने के लिए ‘स्वशासित संस्थाओं के क्रजिक विकास योजना’ की घोषणा कीं यद्यपि इस घोषणा का स्वागत हुआ, परन्तु इससे असन्तुष्ट तिलक अपने आन्दोलन के माध्यम से राष्ट्रीय-चेतना को झकझोरते रहे। इस दौरान जवाहरलाल नेहरू ने लिखा-देश के वातावरण में बिजली-सी दौड़ गयी। युवाओं में आजादी का तूफान भारतीय हृदय में स्वतन्त्रता प्राप्ति की आकांक्षा बढ़ा दीं वैचारिक रूप से हर रूसी 1917-18 में क्रान्ति ने भारतीय मानस में पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्ति का उत्साह भर दिया। 1997 में भरत सचिक माँटेग्यू भारत आए तथा 8 जुलाई, 1998 को उत्तरदायी श्ज्ञास्न हेतु यह एक प्रस्ताव प्रकाशित किया।

1917-18 इसमें गाँधी ने चम्परन, खेड़ा और अहमदाबाद का सघन दौरा किया उनकी ख्याति चतुर्दिक् फैलने लगी। 13 अप्रैल, 1919 की जलियावाला बाग ने जनरल डायर ने एक सभी में उपस्थित हजारों निहत्थे पर 1700 चक्र से अधिक गोलियाँ चलायी। जिसमें हजारों लोग मारे गए देश भर में आक्रोश की आँधी उठने लगी। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसी काण्ड की वजह से ब्रिटिश सरकार नाइट हुडे की उपाधि लौटा दी। इसी वर्ष भारत को अंग्रेजी साम्राज्य का अभिन्न अंग बनाए रखने के लिए ‘इण्डिया कौंसिल’ के गठन में परिवर्तन किया गया। केन्द्रीय व्यवस्थापिका में कौंसिल ऑफ स्टेट्स व सेंट्रल लेजिस्लोब्वि कौंसिल ऑफ कौंसिल’ के गठन में परिवर्तन किया गया। केंद्रीय व्यवस्थापिका में कौंसिल ऑफ स्टेट्स व सेंट्रल लेलिस्लेटिव कौंसिल बनी। जातीय संख्या के आधार पर मुसलमानों, यूरोपियनों व सिखों को प्रतिनिधित्व सौंपा गया। परन्तु अंग्रेज कूटनीतिज्ञों ने भारतीय प्रजा को फँसाने, कुचलने के मकसद से ‘रोलेट एक्ट’ रूपी अन्धा कानून लागू किया। यह जोर-जुल्म के सिवा और कुछ नहीं था। इसके विरोध में मदन मोहन मालवीय, मोहम्मद अलीजिन्ना और मजहरुलहक तीनों ने कौंसिल से त्याग–पत्र दे दिया।

इस दूसरे दशक में स्वाधीनता की जड़ें और गहरी हुई हर क्षेत्र में क्रान्ति की लहर उठी। आदिवासियों किसानों, श्रमिकों तथा प्रजा में विद्रोह के स्वर उभरे आन्ध्र के आदिवासियों ने वन सत्याग्रह छेड़ा जगदलपुर और खोंड में भी आदिवासी विद्रोह उठा। बाद में बस्तर और उड़ीसा के कालाहांडी तक इसकी लपटें फैली ये आरने आन्दोलन और विद्रोह गाँधीजी का राष्ट्रवाद हिचकोले खात हुआ। अग्रसर हुआ। राष्ट्रीय क्षितिज में भारतीय महिलाओं का आगमन भी इसी दशक में हुआ। 1857 की वीरांगना झाँसी की रानी भारतीय नारियों का आदर्श बनी। देश की देवियाँ स्वतंत्र संघर्ष की पूरी अवधि कमे पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा लिकर सामलिक रूढ़ियों ओर देश की गुलामी के खिलाफ उठ खड़ी हुई रानी लक्ष्मीबाई की परम्परा में कस्तूरबा गाँधी, सरोजनी पनायडू, मणिबन, अमृतकौर, कमाल नेहरू, कमला च्ट्टोपाध्याय, विजमक्ष्मी पण्डित, दुर्गाबाई देशमुख, मैडम भीकाजीकामा, सिस्टर निवेदिता, अयणा ऑफ अली, कमांडर लक्ष्मी सहगल, इंदिरा और इनकी सहयोगधमा बहनों ने राष्ट्रहित के लिए अनुपम और अद्वितीय कार्य किए।

रोलेट एक्ट, जलियावाला बाग हत्याकाण्ड, खिलाफत आन्दोलन, प्रथम विश्वयुद्ध से उत्पन्न आर्थिक असन्तुलन, अकाल, महामारी, सरकारी दमनचक्र आदि की अंतिम परिणति गाँधीजी ने अगस्त, 1920 के असहयोग आन्दोलन की घोषणा में हुई। 1 अगस्त, 1920 को लोकमान्य तिलक सारे दशा को गिलखत छोड़कर चल गए उनक कार्यों की महत्ता को सारे राष्ट्र ने स्वीकार यिकाँ उन्होंने माण्डले जेल में श्रीमद्गीता की बृहत् टीका गीता रहस्य के नाम से लिखी जो दार्शनिक जगत की उनकी अनुपम देन बनी। उनकी चेष्टा से पूना में न्यू इंग्लिश स्कूल, डेक्कन, एजूकेशन सोसाइटी, फर्ग्यूसन कॉलेज, महाराष्ट्र में शिवाजी उत्सव, गणपति उत्सव आदि शुरू हुए। तिलक के पालेकरगमन के साथ ही गाँधी भारत के राष्ट्रीय जीवन के एक नए आयाम के रूप में उभरे।

1920 के ही समिम्बर महीने में काँग्रेस का शेष अधिवेशन कलकत्ता में हुआ इसमें गाँधी ने स्सवराज्यप्रपप्ळित क लिए सरकार से असहयोग करने का प्रस्ताव रखा, जिसे काँग्रेस ने स्वीकार कर लिया दिसंबर, 1920 में नागपुर कांग्रेस अधिवेशन में इसे पूर्ण समिति लिमी इसी के साथ गाँधी युग प्रारंभ हुआ। गाँधी जीन ने अपने काम को दो भागों में बाँटा-एक रचनात्मक, दूसरा संघर्ष में रचनात्मक कार्यक्रम स्वदेशी का प्रोत्साहन दिया गया। पंचायती स्थापना, अस्पृश्यता रिवरीण व नशाबन्दी व बुनियादी शिक्षा के कार्यक्रम बनें संघर्षात्मक कार्यक्रम की शुरुआत उन्होंने अपनी कैसर हिन्द पदवी सरकार को लौटाने के साथ की। उनके आह्वान पर हजारों विद्यार्थी स्कूल कॉलेज छोड़कर राष्ट्रीय स्वाधीनता के कॉलेज छोड़कर राष्ट्रीय स्वाधीनता के कॉलेज छोड़कर राष्ट्र स्वाधीनता के लिए कूद पड़े। हजारों-लाखों ने सरकारी नौकरियाँ छोड़ी। विदेशी सामानों की होली जने लगी। किसानों ने लगान देना बन्द किया केरल में ‘मोपाल’ विद्रोह भड़का। इस राष्ट्रीय आंदोलन की एक महान उपलब्धि यह हुई कि देश को अनेक उच्चस्तरीय नेता प्राप्त हुए। मोतीलाल नेहरू, तेजबहादुर, डॉ. राधाकृष्णन, जवाहरलाल, नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल, सुभाष चन्द्र बोस जैसे राष्ट्रीय स्तर के व्यक्तित्व तथा हजारों क्षेत्रीय नेताओं ने दलदल में फँसे राष्ट्रीय रथ को स्वाधीनता के राजमार्ग पर ला खड़ा कर दिया।

इसी काल में साहित्य, शिक्षा एवं विज्ञान के क्षेत्र में क्रान्ति आयी। देश में सर्वत्र में क्रान्ति आयी। देश में सर्वत्र महाविद्यालय और विश्वविद्यालय स्थापित होने लगें रवीन्द्रनाथ टैगोर के समकालीन बंकिमचन्द्र एवं डी. एल. राय आदि की कृतियों ने लोकजागरण का सर्वोत्कृष्ट कार्य किया सी.वी. रमण ने विज्ञान का नोबुल पुरस्कार पाकर विज्ञान की विश्वप्रतिभाओं में राष्ट्र चंद्र बसु प्रफुल्लचन्द्रराय आदि की भी वैज्ञानिक प्रतिभा सराहनीय मानी गयी। इस युग में बंकिम की गीत ‘वन्दे मातरम् ‘ आजादी के दीवानों का कंठहार था। मैथलीशरण गुप्त की भारत भारती भी राष्ट्रभक्तों के लिए प्रेरणा बनी। अँग्रेजों के रोमांटिक काव्य के रूप में प्रवेश किया महावीर प्रसाद के द्विवेदी युग के बाद यह एक नयी धारा थी। इसकी ल प्रकृति रचनात्मक थी तथा राष्ट्रीय बोध के साथ जागरण का दिव्य संदेश लेकर छायावादी विद्रोह सामंतवाद और विदेशी साम्राज्यवाद के खिलाफ एक अतिमानसिक ज्वार के सदृश था। निष्कर्ष रूप से कहना चाहिए कि गाँधीवाद ने ीरत को झकझोरा ओर छायावाद ने उसे आत्मविश्वास दिया। महाकवि प्रसाद, नाला, महादेवी वर्मा, परंतु और बाद दिनकर आदि की कृतियाँ इस युग की प्रतिनिधि हैं।

इस दशक में साँस्कृतिक, आध्यात्मिक जाग्रति सूब रही श्री राम कृष्णा मिशन, श्री अरविंद आश्रम ब्रह्मसमाज, आर्यसमाज, र्प्रथनासमज, थियोसोफिकल सोसाइटी आदि सभी ने धार्मिक, सांस्कृतिक चेतना का प्रसार किया सामूहिक, साँस्कृतिक चैतन्यता से अशिक्षा रूढ़िवाद तथा कुसंस्कारों को दूर करने का प्रबल प्रयास किया। गया। इसी सांस्कृतिक चेतना का तकाजा था कि पूरे राष्ट्र ने यह महसूस कर लिया कि अपनी जननी जन्मभूमि के लिए काम करना पड़ेगा, तभी दासता की बेड़ियोँ बटेंगी। इस काल में कृखिदासता की न्यूनता, आधुनिक उद्योग -धन्धों का विकास, न्याय के लिए जाग्रति, आधुनिक सर्वहारा वर्ग का उदय, समाचार एजेन्सी का विकास, भारतीय प्रेस की भूमिका, अस्पृश्यता निवारण, नारीमुक्ति आन्दोलन आदि प्रमुख धाराएँ प्रवाहित हुई।

तीसरा दशक

तीसरे दशक की शुरुआत विप्लवी हलचल से हुई। देश के सभी वर्गों में पराधीनता से मुक्ति की तीव्र छटपटाहट जगी। इसी के साथ सरकार का दमनचक्र अत्यन्त कठोर हो गया। इण्डिपेण्डेन्ट और ‘द डेमोक्रेसी’ सरीखे राष्ट्रवादी पत्रों को बन्द कर दिया गया। वन्देमातरम् प्रताप, केसरी, बाम्बे क्राँनिकाओं को कोपभाजन बनना पड़ा। इसी के साथ लाला लाजपतराय, मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू सी.आर. दास, राजेंद्रप्रसाद आदि प्रमुख नेताओं को जेल में डाल दिया गया 29 जनवरी 1922 को चार हजार पुरुषों एवं पाँच सौ संकल्प लिया 17 सितम्बर, 1924 का ब्रिटेन के युवराज का भारत आगमन हुआ। परन्तु उन्हें राष्ट्रवादियों के घोर विरोध को सहने के लिए बाध्य होना पड़ा। सन् 1924 तक आंदोलन की तीव्रता के साथ ही सरकार की दमन नीति चलती रही। 1926 तक भारत के राजनीतिक वातावरण में निराशा के राजनीतिक वातावरण में निराशा के बादल घिरने लगे थे। हिन्दू-मुस्लिम एकता का स्थान भेद और दंगों ने ले लिया गाँधीजी ने दंगे रोकने लिए उपवास भी किए, परन्तु उनका कोई असर नहीं आया। 1926 में कलकत्ते में भयंकर दंगे हुए धूमि पड़ रही राष्ट्रीयचेतना को सतेज एवं प्रखर बनाने के लिए इसी वर्ष पूर्ण एकांतवास की घोषणा की। वह अपेक्षाकृत अधिक उग्रसाधनाओं में संलग्न हो गये परमपूज्य गुरुदेव भी इसी वर्ष वसन्त पंचमी का अपनी मार्गदर्शक सत्ता के निर्देशानुसार अखण्ड दीप प्रज्वलित कर 24 लाख के 24 गायत्री महापुरश्चरणों की साधना हेतु संकल्पित हुए। इसी वर्ष का श्री अरविन्द ने भागवत चेतना के अवतरण का वर्ष कहा।

1927 में साइमन कमीशन की नियुक्ति की घोषणा हुई इसका उद्देश्य उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए समीक्षा करना था। इसमें सत सदस्य केवल ब्रिटेन के ही कंजवेटिव, लिबरल और लेबर दलों से थे आयोग जब तन फरवरी 1928 को मुम्बई पहुँचा, तो इसका स्वागत काले झण्डे किया गया ‘साइमन वापस जाओ’ के गगनभेदी नारे लगाए गये लाहौर में इसके विरोध में प्रदर्शन करते समय लाला लाजपतराय को सार्ण्डस की प्राणहन्ता लाठी का सामना करना पड़ा जिसमें उनकी मृत्यु हो गयी। वीर क्रांतिकारियों चंद्रशेखर, भगतसिंह आदि ने इसका करारा जवाब दिया 18 दिसम्बर, 1928 को गोली मारक सामर्ण्डस की हत्या कर दी गयी तत्कालीन भरत सचिक बेर्केन हेड ने हुए चुनौती प्रस्तुत की। चुनौती यह थी कि भारतीय नेता एक ऐसा संविधान करके दिखाएं, जिसे जनसमर्थन प्राप्त हो। चुनौती को स्वीकार करते हुए मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में आठ सदस्यीय समिति ने 1927 में भारतीय संविधान की रूपरेखा तैयार की। 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली की सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में भगत सिंह ने बम फेंका। और स्वयं को जानबूझकर गिरफ्तार कराया। 31 दिसम्बर 1931 को जवाहर लाल नेहरू ने रावी तट पर स्वतंत्रता ध्वज फहराया और सबने मिलकर पूर्ण स्वाधीनता की शपथ ली। उन्होंने 26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस मनाने की घोषणा भी की। उसी वर्ष गाँधी जी ने नमक कानून तोड़ा। वे साबरमती आश्रम से 241 मील पैदल चलकर समुद्र तट के गाँव डांडी पहुँचे और समुद्र के पानी से नमक बनाकर नमक कानून भंग कर दिया। नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने इसकी तुलना नेपोलियन के पेरिस मार्च और मुसोलिनी के रोम मार्च से की। इस अवज्ञा आँदोलन में देश के सभी स्त्री-पुरुष बाल-वृद्ध सभी टूट पड़े। सरकार ने काँग्रेस को गैर कानूनी संस्था घोषित कर दिया। सरकारी दमन के विरुद्ध में क्राँति की गतिविधियाँ बढ़ गयी।

चौथा दशक

इस चौथे दशक की शुरुआत भी परिवर्तन के उफनते ज्वार से हुई। सरकार को काँग्रेस का महत्व स्वीकार करना पड़ा। सन 1931 को गाँधी-इर्विन समझौते के साथ ही दूसरा गोलमेज सम्मेलन हुआ। इसी वर्ष भारत में जनगणना हुई। क्राँतिकारियों के लिए ये वर्ष बड़ा ही कष्टदायी रहा। 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के एल्फ्रेड पार्क में पुलिस से मुठभेड़ में चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु हो गयी। इसके लगभग एक माह बाद 23 मार्च को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को एक साथ लाहौर के केन्द्रीय जेल में शाम 5 बजकर 15 मिनट पर फाँसी दे दी गयी। 1 जनवरी 1932 को गाँधी जी ने पुनः सविनय अवज्ञा आँदोलन छेड़ दिया। गाँधी जी पटेल नेहरू के साथ एक लाख से अधिक गिरफ्तारी हुई। डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने मुसलमानों की तरह अछूतों के प्रतिनिधित्व का प्रश्न खड़ा किया। अन्ततः समझौता हुआ। इसके पश्चात गाँधी जी ने अछूतोधार आँदोलन छेड़ दिया। देशभर में इसका व्यापक प्रभाव हुआ। 1935 में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट लागू हुआ। 1937 में प्राँतीय स्वायत्वा का उद्घाटन हुआ और बहुत सारे प्राँतों में काँग्रेस सरकारें बनी। 1938-1939 में दो बार सुभाषचंद्र बोस काँग्रेस के अध्यक्ष चुने गये। परंतु दोनों बार उन्होंने इस्तीफा दे दिया।इसी दशक में अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ की स्थापना हुई। श्रमिक आँदोलन तीव्रता से फैलने लगा। औद्योगिकी करण के फलस्वरूप पूँजीपति और श्रमिक वर्ग के रूप में समाज दो भागों में बंट गया। इसी असभ्यता के कारण रूसी साम्राज्यवाद ने भारत में प्रवेश किया।

पांचवां दशक

पांचवां दशक स्वतंत्रता संग्राम के अंतिम चरण के रूप में भारत में आया। 1939 में ही दूसरा महायुद्ध छिड़ चुका था। ब्रिटेन भारत को भी इस महासमर में घसीटने को प्रयासरत हुआ। 1940 में परमपूज्य गुरुदेव ने आध्यात्मिक पत्रिका अखण्ड ज्योति की शुरुआत करके एक नये साँस्कृतिक आँदोलन को जन्म दिया। 1941 में ब्रिटेन की हालत काफी नाजुक हो चुकी थी। जापान मित्र राष्ट्रों के लिए परेशानी का कारण बना रहा। सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज की स्थापना की। मार्च 1942 में सर स्टेनफोर्ड क्रिप्स का क्रिप्य मिशन भारत आया। इसी वर्ष गाँधी जी साम्राज्यवाद से अंतिम संघर्ष के लिए तैयार हुए। 9 अगस्त 1942 को मुम्बई अधिवेशन में भारत छोड़ो प्रस्ताव पास किया गया। करो या मरो के नारे ने पूरे देश में स्वतंत्रता की अग्नि प्रज्वलित कर दी। 8 अगस्त को रखे गये जवाहर लाल नेहरू के भारत छोड़ो प्रस्ताव के विरोध में ब्रिटिश सरकार अतिक्रूर हो गयी। पटना, भागलपुर, मुँगेर नदियाँ तलवार में वायुयानों से जनता पर गोलियाँ बरसायी गयी। अगणित लोग मारे गये। 60 हजार बंदी बनाये गये और 26 हजार दंडित किये गये। 1942 की जनक्राँति ही भारतीय स्वाधीनता का मुख्य आधार बनी। 6 अगस्त व 9 अगस्त 1945 को जापान के हिरोशिमा व नागाशाकी में परमाणु बम गिराये गये। इसी के साथ विश्व युद्ध की समाप्ति हो गयी। अंग्रेज विश्व युद्ध में जीत तो गये परंतु उन्होंने समझ लिया कि भारत में अब उनकी खैर नहीं। 20 फरवरी 1946 कसे ब्रिटेन ने घोषणा कर दी कि अप्रैल 1946 तक भारत छोड़ देगा। लार्ड माउण्टबेंटन नये वायसराय बनकर भारत आये। भारत विभाजन के साथ ही महायोगी श्री अरविंद के जन्म दिवस 15 अगस्त 1947 को भारत स्वाधीन हो गया।

स्वाधीन भारत के 50 वर्ष उत्तरशती

स्वतंत्रता के बाद से भारत के राजनैतिक व सामाजिक फलक पर निरंतर नाना रंग उभरे है। सब मिलाकर है एक विकास यात्रा ही। किंतु इस पर कभी-कभी बदरंग भी उभर जाता है। एक ओर आर्थिक विकास, शिक्षा, विज्ञान की उन्नति, नवीन तकनीकों का विकास, कृषि व उद्योग का उत्पादन क्षमता जनजातियों और कमजोर वर्ग की चेतना स्त्री शिक्षा, विशाल निर्माण कार्य बाँध, नहरें, सड़कें, रेलों का विस्तार, अर्थ विस्तार, बैंकिंग सुविधा आदि काफी बढ़ी है पर समानाँतर रूप से बढ़ी हुई जातीय संकीर्णता, सांप्रदायिक द्वेष, आतंकवाद, भ्रष्टाचार और जघन्य अपराधीकरण भी कम चिंता का विषय नहीं है।

नये भारत के इतिहास की शुरुआत ही सांप्रदायिक दंगों से हुई। 30 जनवरी 1947 को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को नाथूराम गोडसे ने गोली मार दी। 26 जनवरी 1950 को भारत सर्व प्रभुत्व सम्पन्न लोकताँत्रिक गणराज्य बन गया। 5 दिसम्बर 1950 को स्थूल एवं सूक्ष्मस्तर पर स्वाधीनता महायज्ञ में अग्रणी की भूमिका निभाने वाले महर्षि अरविंद ने महाप्रयाण किया। सरदार पटेल ने छोटे-छोटे अनेक देशी राज्यों को राष्ट्र में विलीन कर दिया। उनके इस महापुरुषार्थ के कारण राष्ट्र में विलीन कर दिया। उनके इस महापुरुषार्थ के कारण राष्ट्र की जनता ने उन्हें लौहपुरुष की संज्ञा दी। 1950 में सरदार पटेल भी चल बसे। जून, 1953 में परमपूज्य गुरुदेव ने आध्यात्मिक प्रयोगों की प्रथम प्रयोगशाला के रूप में गायत्री तपोभूमि का निमार्ण किया। वर्ष 1956 में भारत के राज्यों का पुनर्गठन किया गया।

आजाद भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने प्लानिंग कमीशन की स्थापना की और पंचवर्षीय योजनाओं से इसका भविष्य जोड़ दिया। नेहरू युग में भारत को अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में व्यापक सम्मान मिला। वर्ष 1957 में परमपूज्य गुरुदेव ने सहस्रकुण्डीय महायज्ञ के साथ अपनी 24 वर्षीय साधना की महापूर्णाहुति की। इसी के साथ युग-निर्माण आँदोलन सम्पूर्ण भारत के क्षितिज पर सबसे महान साँस्कृतिक, आध्यात्मिक आँदोलन के रूप में उभरा। नेहरू युग पर सबसे गहरा आघात लगा। 1962 के भारत-चीन युद्ध से। 1964 में नेहरू जी की मृत्यु हुई। इसी के साथ लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री हुए। जिनके समय 1965 में भारत-पाक युद्ध लड़े गये। शास्त्री जी एक मजबूत सेनानी की तरह उभरे, किंतु उनका देहावसान 19 जनवरी 1966 को हो गया। उनका नारा जय जवान’-जय किसान बच्चे-बच्चे की जबान पर चढ़ गया। शास्त्रीजी के बाद महिला नेता के रूप में इंदिरागाँधी को बड़ी चमक मिली। 1967 में देश का प्रथम राकेट रोहिणी-75 विकसित हुआ तथा 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया।

वर्ष 1971 में पाकिस्तान ने फिर भारत पर एक नया युद्ध थोप दिया। जिसका अपना देश ने मुँहतोड़ जवाब दिया। पाकिस्तान हारा ही नहीं टूटा भी। बंगला देश के रूप में भारत एक नये आयाम के रूप में हरिद्वार में शाँतिकुँज की स्थापना की। 1974 में फिर देश में आम चुनाव हुए। इसके बाद सबसे बड़ी राष्ट्रीय घटना के रूप में इमरजेंसी आयी। इसके विरोध में व्यापक जनआक्रोश उभरा और 1977 के चुनाव में वर्षों से शासन करती चली आ रही पार्टी को पराजय का मुँह देखना पड़ा। लोकनायक जय प्रकाश नारायण के आह्वान के रूप में बनी जनता पार्टी शासन में आयी। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। 1979 में स्काईलैब का आतंक उभरा और समाप्त हुआ।

वर्ष 1980 में परमपूज्य गुरुदेव ने घोषणा की कि अब से 20 वर्षों तक यानि की 2000 तक महापरिवर्तन का समय है। राजनैतिक, सामाजिक, अन्तर्राष्ट्रीय घटनाक्रमों में व्यापक पैमाने पर एवं तीव्र गति से फेर-बदल होगी। इसी वर्ष में उग्रवाद ने जोर पकड़ा। 1980 में ही सातवीं लोकसभा का चुनाव जीतकर आयीं श्रीमती इंदिरागाँधी ने यद्यपि उसकी सख्ती से मुकाबला किया, किंतु इसी क्रम में 1975 में उनकी नृशंस हत्या हो गयी। इसी वर्ष भोपाल गैस काण्ड की त्रासदी झेलनी पड़ी। इस बीच परमपूज्य गुरुदेव राष्ट्रीय स्तर पर महापरिवर्तन की पृष्ठभूमि के रूप में शक्तिपीठों की स्थापना कर चुके थे। इसके बाद वर्ष 84 में ही उन्होंने सूक्ष्मीकरण साधना का शुभारंभ किया। राजीव गाँधी इसी साल देश की जनता का सर्वाधिक बहुमत पाने वाले प्रधानमंत्री बने। उनके दौर में सामयिक विकास एवं राष्ट्रनिर्माण के अनेक प्रयासों के बावजूद देश सांप्रदायिकता, आतंकवाद और बाहरी षड्यंत्रों में फंसता गया। 1987 में परमपूज्य गुरुदेव ने सूक्ष्मीकरण साधना कह पूर्णाहुति राष्ट्रीय एकता सम्मेलन के रूप में की। इसी के बाद नौवीं लोकसभा चुनाव हुए। दिसम्बर 1989 में वी.पी. सिंह जनता दल नेता के रूप में देश के सातवें प्रधानमंत्री बन गये। वर्ष 1990 की जून में परमपूज्य गुरुदेव का महाप्रयाण हुआ। चंद्रशेखर देश के अगले प्रधानमंत्री बने।

सदी के अंतिम दशक की दुखद शुरुआत वर्ष 1991 में पेरुम्बदूर में राजीव गाँधी की मृत्यु से हुई। हालाँकि काँग्रेस ने फिर से एक पी.वी. नरसिम्हाराव जी के नेतृत्व में सरकार बनायी। नयी औद्योगिक नीति की घोषणा हुई, साथ ही अरबों का बैंक घोटाला भी चर्चा में रहा। 1992 में वंदनीय माता जी ने देव संस्कृति दिग्विजय अभियान के अंतर्गत शाँतिकुँज से अश्वमेध महायज्ञों की व्यापक श्रृंखला की घोषणा की। वे स्वयं देश-विदेश इन महायज्ञों के संचालन के लिए गयीं। 1993 में 25 महिला इंजीनियर वायुसेना में शामिल हुई। 1994 की महत्वपूर्ण घटनाएं रही डंकल प्रस्ताव, चीनी घोटाला, प्रतिभूति घोटाला, सूरत में प्लेग, इसी वर्ष 19 सितम्बर को वंदनीय माताजी भगवती देवी शर्मा का महाप्रयाण हुआ। 1995 में सार्क सम्मेलन, देश में ही हृदय का सफल प्रत्यारोपण एवं डबवाली अग्निकाँड-राष्ट्रीय परिदृश्य पर छाये रहे। इसी वर्ष आँवलखेड़ा में युगनिर्माण आँदोलन की प्रथम महापूर्णाहुति का भव्य आयोजन सम्पन्न हुआ।

इसी बीच 11वीं लोकसभा के चुनाव हुए। अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने, परंतु राष्ट्रीय परिदृश्य पर अस्थिरता का माहौल हावी रहा। उनके संक्षिप्त कार्यकाल के बाद एच.डी. देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने। सारा वर्ष घोटालों की चर्चा में घिरा रहा। अस्थिरता के बावजूद राष्ट्र ने सी.टी. बी.टी. में हस्ताक्षर न करके अपनी दृढ़ता का परिचय दिया। वर्ष 1997 के साथ स्वाधीन भारत ने अपनी स्वतंत्रता के पचासवें वर्ष में प्रवेश किया। राजनैतिक पटल पर छायी अस्थिरता के कारण श्री इंद्रकुमार गुजराल प्रधानमंत्री बने। इसी वर्ष शाँतिकुँज ने अपनी स्थापना की रजतजयंती पूर्ण की। गायत्री तपोभूमि के सात क्राँतियों की घोषणा की गयी। छह समारोह प्रत्येक पूर्णिमा को इसी वर्ष शाँतिकुँज में भी सम्पन्न हुए, राष्ट्र के राजनैतिक पटल पर अस्थिरता लगातार हावी रही, जिसके चलते श्री गुजराल को लोकसभा भंग करने की संस्तुति करनी पड़ी।

वर्ष 1997 में राष्ट्र के सामने फिर से अपने भविष्यनिर्माताओं को चुनने की चुनौती आ खड़ी हुई। सदी के इस आखिरी दशक के इन अंतिम वर्षों में देश के सामने बढ़ती हुई जनसंख्या, युद्धों की आशंका, चरित्रवान लोक-नायकों की वजह से डगमगाता लोकतंत्र, गाँवों के विकास का काम, उदारीकरण के क्रूर प्रश्न का हल ढूँढ़ निकालने की जिम्मेदारी है। इसे पूरा करके भी हम और हमारा देश बीसवीं सदी का सफर पूरा करके इक्कीसवीं सदी में प्रवेश करेगा। जो परमपूज्य गुरुदेव के शब्दों में उज्ज्वल एवं उल्लासमयी होगी।


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