युगपरिवर्तन का वासन्ती प्रवाह

February 1998

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वसन्त में परिवर्तन के प्रवाह की मर्मर ध्वनि सुनायी देती है। एक गहन-गम्भीर अन्तर्नाद गूँजता है। इसकी छुअन भर से समूची प्रकृति अपने सड़े-गले, जीर्ण-शीर्ण वस्त्रों को उतारकर, वासन्ती परिधान पहनकर सजने–सँवरने लगती है। परिवर्तन का यह वासन्ती प्रवाह पतझड़ को रंग−बिरंगी कोयलों एवं सुरभित-सुगन्धित फूलों में बदल देता है। कँपकपा के महापर्व का गौरव दिया है

युगपरिवर्तन के वासंती प्रवाह का रहस्यमय उद्गम तक हुआ, जब परमपूज्य गुरुदेव को उनके गुरु ने भागीरथी तपश्चर्या का उद्बोधन, आह्वान प्रस्तुत किया ओर उस निर्देश को शिरोधार्य करने के लिए गुरुदेव तत्क्षण उद्यत हो गए। वे एकनिष्ठ भाव से समग्र श्रद्धा नियोजित करके युगपरिवर्तन के प्रवाह को जगती पर लाने के लिए उसी प्रकार तत्पर रहे, जिस प्रकार गंगाप्रवाह के अवतरण का लक्ष्य बनाने जैसा था। जिसके आधार पर उन्हें महत्वपूर्ण क्षमताएँ, प्रतिभाएँ, बल्कि मानवीय जीवन के हर पहलू को आमूल-चूल बदल डालने के लिए उतारू है। यही कारण है कि इनसानी जिन्दगी के हर छोर पर दरकन और दरारें पड़ चुकी है। सब तरफ पुरानेपन के ध्वंस और महानाश की चीत्कारों ओर हाहाकार की आर्ज गूँज हैं। पर इसी के साथ नवसृजन की कोमल किलकारियाँ है एवं नवचेतना के अंकुरण का मधुर संगीत भी है, ये स्वर अभी कितने ही मन्द क्यों न हों, किन्तु जिनके पास तनिक-सा भी अन्तर्ज्ञान है, वे इन्हें समझ सकते हैं।

राजनैतिक एवं आर्थिक क्षेत्रों की संकटग्रस्त स्थिति की चर्चा सर्वत्र है, पर प्राकृतिक, सामाजिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विपदाएँ ही कहाँ कम हैं? सच तो यह है कि हर तरफ पुरानापन टूटकर नवसृजन हो रहा है। अकेला व्यक्ति या कोई एक परिवार अथवा फिर कोई एक देश या समाज नहीं, बल्कि पूरा का पूरा युग परिवर्तित हो रहा है। अकेला व्यक्ति या कोई एक परिवार अथवा फिर कोई एक देश या समाज नहीं, बल्कि पूरे याग परिवर्तित हो रहा है। इस युगपरिवर्तन के अनेक पहलू हैं, अगणित, अत्याम है और साथ ही हैं, इसके विविध मोर्चों पर जुझारू संघर्ष के लिए समर्थ युगसैनिकों के लिए वीरोचित आह्वान।

आह्वान के ये स्वर ही इस युगपरिवर्तन अंक में शब्दों में पिरोए गए हैं। युगपरिवर्तन के विविध पहलुओं, विभिन्न आयामों को उजागर करता हुआ यह अंक युगसैनिकों के लिए आमंत्रण पत्रिका है। उनके लिए आने वाले तीन वर्षों के लिए जीवन-नीति का स्पष्टीकरण है। यह संदेश। आमंत्रण!! आह्वान!!! शब्दों की सतह पर नहीं, भावों की गहराइयोँ में ही सुना और समझा जा सकता है।

इसे धारण करने के लिए हम सावधान हो जाएँ युगपरिवर्तन का वासन्ती प्रवाह हम तक पहुँचे यह कामना करते हुए बैठे न रहें वह तो सदा से समर्थ है और अपना काम करेगा ही। हम तो कामना करें इस प्रवाह हम तक पहुँचे यह कामना करते हुए बैठे न रहे। वह तो सदा से समर्थ है और अपना काम करेगा ही। हम तो कामना करें इस प्रवाह की वासंती ज्वाला की, वासंती शौर्य के शोलों की जिसके तेज से अनीति एवं अवांछनीयताएं जलकर भस्म हो जाएँ। युगपरिवर्तन की प्रक्रिया पूरी हो और नवयुग मुसकरा उठे।


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