शुभ-चिंतक किंतु अदृश्य-हमारे ये सहायक

January 1994

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प्रायः ऐसा समझा जाता है कि मरणोत्तर जीवन में सभी प्राणी भूत-प्रेत बनते हैं और जिनके संपर्क में आते हैं उन्हें डराने या दुःख देने भर का कुकृत्य करते रहते हैं। ऐसी आत्माएँ भी होती हैं, पर उनमें से अधिकतर निकृष्ट स्तर की होती और विक्षोभ ग्रस्त होकर मरी होती हैं। इसके विपरीत ऐसी दिवंगत पुण्यात्मायें भी होती हैं, जो जिस प्रकार जीवन काल में सद्भाव प्रदर्शित करने में-उदार सेवा साधना में निरत नहीं, वैसा ही प्रयास वे मरने के उपराँत भी करती रहती हैं।

अमेरिका के प्रख्यात पत्रकार एवं लेखक बर्नार्ड हटन ने स्वयं पर घटित इस प्रकार की एक घटना का उल्लेख अपनी कृति “हीलिंग हैन्ड्स” में किया है। घटना सन् 1958 की है। हटन महोदय पोलियो माइलिटिस नामक बीमारी से पीड़ित थे। नेत्र ज्योति अत्यंत क्षीण हो चुकी थी। उनकी चिकित्सा कर रहे नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ हडसन ने उनकी बीमारी को असाध्य करार दिया और कहा-कि आपरेशन करने पर आँखों की शेष क्षीण ज्योति के भी चले जाने का खतरा है। श्रीमती पर्ल हटन को यह ज्ञात था कि बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध के सुविख्यात नेत्र चिकित्सा विज्ञानी स्वर्गीय डॉ लैंग की अशरीरी आत्मा एलिसबरी के मिस्टर चैपमैन के माध्यम से अब तक सैकड़ों असाध्य नेत्र रोगियों की चिकित्सा कर चुकी हैं। अतः उनने अपने पति को एलिसबरी जाने का अनुरोध किया। बर्नार्ड हटन अपनी पत्रकारिता वाली बुद्धि को लेकर एलिसबरी पहुँच गये।

मि. चैपमैन के यहाँ उन्हीं की प्रतीक्षा की जा रही थी। गाड़ी से उतरते ही हटन महोदय को एक कक्ष में बुलाया गया, वे यह देखकर आश्चर्यचकित थे कि युवक चैपमैन के व्यक्तित्व में आकस्मिक परिवर्तन कैसे हो गया। वह उनके कंधे पर हाथ रखे कह रहे थे “आइये मि. हटन ! आप नेत्ररोग से पीड़ित हैं। मैं डॉ लैंग हूँ, आपकी हर संभव सहायता करूंगा।” चैपमैन यह सब कुछ आँख बंद किये तंद्रा जैसी अवस्था में कह रहे थे। हटन को तर्क बुद्धि इसे कभी सम्मोहन सोचती, कभी टेलीपैथी, तो कभी थाँट ट्राँसफरेन्स, तो कभी दिव्य दृष्टि आदि। विचारों का ऊहापोह उनके मन में चल ही रहा था कि डॉ लैंग ने कहा कि-”तुम्हें माइनस 18 नंबर का चश्मा लगता है।” उस समय वास्तव में उन्हें इसी नंबर का चश्मा लगता था। हटन की आँखों को दो-तीन बार उंगलियों से स्पर्श करके डॉ लैंग ने बताया-कि “तुम्हारी आँखों का बचपन में जो आपरेशन हुआ था-बिलकुल ठीक था।” तब हटन की उम्र 6 वर्ष की थी और उस घटना को वे भूल चुके थे। आपरेशन करने वाले डाक्टर की भी मृत्यु हो चुकी थी।

बर्नार्ड हटन की आँखों को दुबारा उँगलियों से स्पर्श करके डॉ. लैंग ने कहा-’तुम्हारी आँखों का वीट्रियस ड्रेनेज सिस्टम ठीक से काम नहीं कर रहा है- डिप्लोपिया हो गया है। जिस बीमारी के वायरस तुम्हें कष्ट दे रहे थे वे तो तुम्हारे चिकित्सक के उपचार से नष्ट हो गये हैं, परंतु उसके स्थान पर प्रतिक्रिया स्वरूप नयी भयंकर बीमारी हो गयी है। हिपेटाइटिस वायरस के आक्रमण के कारण यकृत को क्षति पहुँच रही है और कष्ट बढ़ रहा है-शक्ति क्षीण हुई जा रही है।’ हटन को डॉ. लैंग की यह सब बातें, रोग की व्याख्या आदि एक पहेली सी लग रही थी। उनकी तार्किक बुद्धि हतप्रभ थी। तभी डॉ लैंग ने कहा- ‘मैं तुम्हारी आँखों का आपरेशन करूंगा जिसमें तुम्हें कोई कष्ट नहीं होगा, क्योंकि यह आपरेशन सूक्ष्मशरीर का होगा-स्थूल का नहीं। तुम हमारी बातें और उपकरणों का प्रयोग अनुभव करोगे, पर देख नहीं सकोगे। मेरे अन्य सहायक सूक्ष्मशरीर धारी आत्मायें भी है।

इतना कहकर डॉ. लैंग ने अपना काम प्रारंभ कर दिया। हटन उँगलियों को चलते हुए , आपरेशन के उपकरणों को इधर-उधर प्रयोग करते हुए अनुभव कर रहे थे। डॉ लैंग बीच में बोलते जा रहे थे-”मैं तुम्हारे सूक्ष्मशरीर को स्थूल शरीर से थोड़ा अलग करके फ्लुइड की जाँच कर रहा हूँ, क्रिस्टल लैंस, रेटिना आदि का परीक्षण कर रहा हूँ। कुछ मिनट बाद उन्होंने कहा-अब आपरेशन पूरा हो गया है। तुम्हारे सिलियरी मसल्स अत्यंत कड़े हो गये थे। इसके पश्चात् उनने अपने सहायकों से कहा-’यदि हिपेटाइटिस वायरस का आपरेशन न किया गया तो यह आपरेशन अधिक लाभदायक न होगा।’ डॉ. लैंग ने एक बार फिर से आंखें बंद की मुद्रा में ही हटन के शरीर पर हाथ फेरा। बर्नार्ड हटन को लगातार महसूस हो रहा था कि जैसे उनके मूर्छित शरीर पर आपरेशन किया जा रहा हो।

आपरेशन पूरा करने के बाद डॉ लैंग ने हाथ के सहारे से बर्नार्ड हटन को उठाकर बैठा दिया। उस समय उन्हें काफी कमजोरी अनुभव हो रही थी, तभी मार्गेट नामक एक नर्स आयी और उसने उन्हें खड़ा होने में मदद की। चलते समय डॉ. लैंग ने कहा-”मि. हटन मैं आपकी बराबर सहायता करता रहूँगा और अपने सूक्ष्मशरीर से आपके सूक्ष्मशरीर में आपरेशन भी करता रहूँगा। आपकी नेत्र ज्योति पुनः वापस आ जायगी और आपका जीवन सुखमय बीतेगा, ऐसी मुझे पूरी आशा है।” बर्नार्ड हटन अपनी उक्त कृति में लिखते हैं कि वापसी में जिस समय उन्हें कार में बिठाया गया था, उस समय आँखों से कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा था, परंतु थोड़ी ही देर में धीरे-धीरे सब कुछ स्पष्ट नजर आने लगा। वह प्रसन्नतापूर्वक अपने घर आ गये। बार-बार उनका हृदय अदृश्य पितरसत्ता द्वारा की गयी अप्रत्याशित सहायता से भर आता था। इसके पश्चात् उनका सारा जीवनक्रम ही बदल गया।

‘मिस्ट्रीज ऑफ अनेकस्प्लेंड’ एवं ‘इन् विजबँल हेर्ल्पस’ नामक आदि पुस्तकों में इस तरह की अनेकों घटनाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन है जिसमें मनुष्य के कार्यों में अशरीरी दिव्य पितर आत्माओं द्वारा अप्रत्याशित रूप से सहायता प्रदान की गयी। इसी शृंखला में एक घटना सन् 1967 की हैं हडसन नदी के किनारे बने हुए विक्टोरिया कालीन एक भव्य मकान को लोगों ने भुतहा कह कर छोड़ दिया था, जिसे श्रीमती एकले नामक एक महिला ने खरीद लिया और उसमें सपरिवार रहने लगी। एक रात्रि उन्हें एक प्रेतात्मा दिखाई दी जिसे देखकर वे भयभीत हो गयीं और जैसे ही वहाँ से भागने के लिए पीछे मुड़ी उन्होंने देखा कि वही छाया उनके मार्ग में खड़ी है। इस पितर छाया ने धीमे स्वर में कहा-”तुम डरकर भागो नहीं। अभी तक जितने भी व्यक्ति इस मकान में आये हैं-वे भयभीत होते रहे हैं, जब कि हमारा उद्देश्य मनुष्यों को डराना और नुकसान पहुँचाना नहीं, वरन् उनकी सहायता करना और सहानुभूति अर्जित करना है।” वे आश्वस्त हुई और बोली- “आप लोग कौन हैं- कितने व्यक्ति हैं व इस रूप में आपको क्यों भटकना पड़ रहा है ?” प्रेतात्मा ने जवाब दिया-”हम लोग तीन व्यक्ति हैं जो तुम्हारे वंश के ही हैं तुम्हारा यहाँ आना एक संयोग मात्र नहीं हैं। हमारे द्वारा एकले को दी गयी विचार रूप में प्रेरणा ही तुम्हें यहाँ लायी है। मरणोत्तर जीवन में एक योनि ऐसी होती है जिसमें उच्च-अशरीर आत्मायें सहायक आत्माओं के रूप में सूक्ष्म-जगत में भ्रमण करती रहती हैं और जरूरतमंदों की सहायता करती रहती हैं। जब इस मकान को भुतहा ठहरा दिया गया तो हमने उचित समझा कि तुम्हें यहाँ बुलाया जाय। श्रीमती एकले काफी देर तक अपने पितर से बात करती रहीं। बाद में अनेकों प्रसंगों पर भी पितर आत्मायें उन्हें सहयोग देती रहीं।

अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को तो प्रेतात्माओं पर इतना विश्वास था कि अक्सर एक प्रेत विद्या विशारद कुमारी नैटिकोलन वर्ग को व्हाइट हाउस में बुलाया करते थे और उसके माध्यम से पितर आत्माओं से संपर्क कर महत्वपूर्ण निर्णय लेते थे। ग्रहयुद्ध के दिनों में तो प्रेतात्मायें उनकी विश्वस्त मित्र हो गयी थीं, जिनकी मदद से लिंकन को उपद्रवियों के ऐसे-ऐसे रहस्यों का पता चल जाता था जिन्हें खुफिया विभाग द्वारा प्राप्त करना संभव न था। अपने जीवन के दुखद अंत को भी उन्होंने प्रेतात्माओं के माध्यम से जान लिया था। व्हाइट हाउस ऐसी संदेश देने वाली पितर आत्माओं की कथाओं से अभी जुड़ा हुआ है।

कैलीफोर्निया की महिला लेखिका रोज मेरी ब्राउन ने अपनी पुस्तक “डू वी डाई” में अपनी आत्मकथा में लिखा है कि जब वह 27 वर्ष की थी, तब एक दिन विश्व प्रसिद्ध विगतात्मा संगीतकार जिसमें बिथोवेन मोजार्ट आदि शामिल थे, को देखकर वह डर गयी। उसके विचार पढ़कर आश्वासन देते हुए उन्होंने कहा-’हम तुम्हारे माध्यम से संगीत के विकास की अपनी इच्छा पूरी करना चाहते हैं। इस दिशा में तुम अपनी योग्यता बढ़ाती जाओ, उसमें हम सभी तुम्हारी मदद करेंगे।’ इस तरह वे आत्मायें 15 वर्षों तक संगीत साधना में उसका सतत् मार्ग दर्शन करती रहीं। परिणाम यह हुआ कि सन् 1967 में बी. बी. सी. ने ब्राउन के संगीत पर आधारित एक वृत्त चित्र प्रसारित किया। विश्व के तत्कालीन संगीत विशारदों ने उसे देखने सुनने के बाद एक ही निष्कर्ष निकाला कि यद्यपि यह सब ब्राउन की ही रचनायें हैं, तथापि यह निस्संदेह एक अविश्वनीय घटना है कि विश्व के विगत प्रसिद्ध संगीतकारों द्वारा मार्गदर्शन प्राप्त कृतियाँ हैं।

ब्राजील के बेलो होरीजोटे जनपद के जोंस पेड्रो डी फ्रीरास नामक एक कृषक के पुत्र ‘एरिगो’ ने आँकल्ट के इतिहास में अभूतपूर्व नाम कमाया है जब वह स्कूल में पढ़ता था तभी से उसे सिरदर्द की शिकायत रहती थी। वयस्क होने पर दर्द भी बढ़ता गया, साथ ही स्वप्न में उसे कुछ चिकित्सक प्रेतात्मायें भी दिखने लगीं जो उसे बराबर निर्देश दिया करती थीं। उसे आदेश दे रही एक अशरीरी आत्मा ने अपना परिचय देते हुए बताया कि वह डॉक्टर एडोल्फो फिट्ट नामक जर्मन शल्य चिकित्सक है जिसकी मृत्यु प्रथम विश्वयुद्ध में हुई थी। वह परोपकारी चिकित्सक था, जो जरूरतमंद गरीब रोगियों की शल्य चिकित्सा मुफ्त में कर दिया करता था। उसने आगे बताया कि वह मैक्सिको के पिछड़े प्रदेशों में अपना परोपकारी कार्य आरंभ करना चाहता है और इसके लिए उसे एरिगो जैसे दयालु-हृदय माध्यम की आवश्यकता है। उसका सिरदर्द भी जरूरत मंद रोगियों की सेवा सहायता से ही ठीक होगा। इस प्रकार स्वप्न और सिरदर्द से पाँच वर्ष तक कसमकस करने के पश्चात् एरिगो को अंततः डॉ फिट्ज का निर्देश मानना ही पड़ा और पहली शल्य क्रिया अपने एक पड़ोसी से आरंभ की जिसे फेफड़े का कैंसर था। एरिगो के लिए यह एक विस्मयकारी घटना थी कि एक अशरीरी आत्मा उसके माध्यम से इतने जटिल आपरेशन को कुछ ही सेकेंडों में कैसे सफलतापूर्वक कर सकी।

अब तो एरिगो के लिए शल्य चिकित्सा दैनिक जीवन का क्रम बन चुका था जो सन् 1956 से जीवन पर्यन्त तक निर्वाध रूप से चलता रहा। आपरेशन के अतिरिक्त वह लोगों की निस्वार्थ सेवा में लगा रहता। ख्याति फैलती चली गयी। सन् 1963 में उसके चमत्कारिक कार्यों की जाँच करने के लिए विश्वविख्यात चिकित्सक डॉ अंद्रीजा पुहरिश की अध्यक्षता में ख्याति प्राप्त दस चिकित्सकों की एक टीम नियुक्ति हुई। देखा गया कि एरिगो के अस्पताल में सुबह से ही सैकड़ों मरीज जमा हो जाते थे जिन्हें वह जाँच पड़ताल करने के पश्चात् एक सामान्य से छुरे से शल्य क्रिया करके छुट्टी दे देता था। रोगियों के घाव कुछ ही मिनटों में अच्छे हो जाते थे। एक परीक्षण में उसके पास एक हजार रोगियों को बुलाया गया जिनमें से 545 के पास अपने-अपने चिकित्सकों के निदान कार्ड भी थे जिन्हें जाँचकर्ता दल ने अपने पास रख लिया। पाया गया कि एरिगो ने तद्नुरूप ही रोगों की पहचानकर उनका उपचार सफलतापूर्वक कर दिखाया। इस पूरी प्रक्रिया का फिल्माँकन भी किया गया था ताकि किसी प्रकार के संदेह की गुंजाइश न रहे। सन् 1971 में एरिगो की मृत्यु हुई, इससे पूर्व तक डॉ एडोल्फो फिट्ज की आत्मा उसके माध्यम से शल्य चिकित्सा का अपना परोपकारी काम बराबर करती रही।

सूक्ष्म-जगत का अस्तित्व है, इसके प्रमाण हमें ढेरों मिलते हैं, फिर भी हम प्रत्यक्षवादी उसे नकारते रहते हैं। यदि इस अपरिमित संभावनाओं से भरे परोक्ष-जगत को जाना-समझा जा सके तो इसकी मदद से अनेकों प्रकार से लाभान्वित हुआ जा सकता है। अध्यात्म परोक्ष जगत की खिड़की खोलकर उसका दिग्दर्शन कराने वाली विधा का ही नाम है।


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