अविज्ञात को जानने के लिए, चलें एक दूसरे आयाम में

January 1994

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काल-खण्ड तीन हैं-भूत, वर्तमान और भविष्यत्। इनका अस्तित्व सिर्फ इस कारण है कि सृष्टि और समय की गति में जीवन-आसमान जितना अंतर है, यदि इस मध्याँतर को मिटा दिया जाय, तो काल के विभाग भी स्वतः समाप्त हो जायेंगे। फिर जो शेष बचेगा, वह वर्तमान के अतिरिक्त कुछ नहीं होगा।

यह वर्तमान और सद्यः समय दोनों एक ही हैं। जगत की हर क्रिया वर्तमान से आरंभ होती है, पीछे वह अतीत बन जाती है। जीवन का प्रादुर्भाव वर्तमान है। तत्पश्चात् उसकी गति काफी मंद पड़ जाती है और समय बहुत आगे निकल जाता है, फलतः वह आगत-अनागत के दो अतिरिक्त खंडों में बँट जाता है। संसार की समस्त घटनाएँ सारी गतिविधियाँ ऐसी ही हैं, वह समय के सापेक्ष होती हैं, निरपेक्ष यहाँ कुछ भी नहीं। जो निरपेक्ष है, वह मात्र ईश्वर है और ईश्वर समय से बँधा नहीं। जो काल से मुक्त है, उसके लिए काल-खंडों का कोई अस्तित्व नहीं। जहाँ इनकी सत्ताएँ हैं, वहाँ काल और घटनाक्रमों की गति-भिन्नता भी स्पष्ट है। कई बार इस भिन्नता को मिटाते हुए मनुष्य जब समय की गति के साथ चल पड़ता है, तो वह अनागत में पहुँच जाता है और कितनी ही बार उक्त भिन्नता को बढ़ाते हुए गति धीमी करता है, तो वही भूतकाल का प्रवेश द्वार बन जाता है। प्रायः ऐसे कौशल सूक्ष्म-जगत में गति रखने वाले आध्यात्मिक पुरुष ही कर पाते हैं, पर अनेक अवसरों पर यह सब आम आदमियों में भी अनायास संपन्न होता देखा जाता है।

ऐसी ही एक घटना का उल्लेख मार्टिन एबोन ने अपनी पुस्तक “प्रोफेसी इन आवर टाइम” (पृ. 142) में किया है। प्रसंग 4 सितम्बर 1956 का है । इंगलबुड, कैलीफोर्निया निवासी श्री एवं श्रीमती पाल मैककैहन उक्त दिन जल्दी ही “ग्रैंड केन्याँन” (अमेरिका का एक दर्शनीय स्थल) पहुँच गये। जब शाम घिरने को आयी, तो उन्होंने एक महिला को उसके पति और बच्चे के साथ देखा, जो अपना सामान लिए पास से गुजर रहे थे। श्रीमती मैककैहन ने उस स्त्री को पहचान लिया। वह उनकी एक परिचिता श्रीमती नैश थी, जिसके साथ पिछले ही साल उनने यात्रा की थी। मैककैहन की पत्नी ने सोचा कि श्रीमती नैश अभी बहुत थकी होंगी, इसलिए उनने उस परिवार से तत्काल मिलने का विचार त्याग दिया।

इस संबंध में “अमेरिकन सोसायटी फॉर साइकिकल रिसर्च” की अपनी रिपोर्ट में वे लिखती हैं कि दूसरे दिन प्रातः उनने उसे बरामदे में बैठी देखा। मैककैहन दंपत्ति वहाँ गये और बातें करने लगे। प्रसंगवश जब उन्होंने नैश परिवार से यह बात कही कि कल ही उन्होंने उन सब को आते हुए देख लिया था, पर यात्रा की थकान के कारण कष्ट देना उचित नहीं समझा, तो श्री और श्रीमती नैश आश्चर्यचकित रह गये। उन्होंने विस्मय प्रदर्शित करते हुए बताया कि वे तो अभी-अभी यहाँ बस से आये हैं। कल तो वे अन्यत्र थे। इस पर बीच में ही हस्तक्षेप करते हुए श्री मैककैहन ने कहा कि उनने भी उन सब को देखा था और जब दृष्टि पड़ी, तब दोनों के बीच की दूरी मुश्किल से दस फुट रही होगी, पर नैश परिवार उनकी बात को आश्चर्य के साथ इंकार करते रहे और यही कहते रहे कि वे अभी-अभी यहाँ आये हैं। संभव है मैककैहन दंपत्ति ने भविष्य दर्शन किया हो। किंतु जो वे कह रहे थे वह सत्य था क्योंकि प्रत्येक दृश्य जो बताया गया, वैसा ही था।

एक ऐसी ही घटना की चर्चा करते हुए मास्टर ब्रुस अपने ग्रंथ “साइलेंट सिटी ऑफ अलास्का” में लिखते हैं कि सन् 1897 की गर्मियों में ड्यूक ऑफ एब्रूजी के नेतृत्व में एक यात्री दल ने अलास्का की तटवर्ती पहाड़ियों सेंट एलियास की यात्रा की। पर्वतारोहण दल जब पहाड़ के मध्य के समतल मैदान में पहुँचा तो वहाँ उन्हें एक पुराने शहर का भव्य दृश्य दिखाई पड़ा। यात्री दल के एक सदस्य सी. डब्ल्यू. थार्नटन का कहना था कि शहर की इमारतें, गलियाँ, वृक्षावलियाँ सब कुछ इतना सुस्पष्ट थिकि उसे भ्रम या दिवास्वप्न कहना उचित न होगा। वे लिखते हैं कि अभियान दल जब उसका निकट से निरीक्षण करने पहुँचा, तो दृश्य अचानक विलुप्त हो गया। इस दिव्य दृश्य के बारे में दल के सदस्यों में परस्पर मतभेद था। कुछ का मानना था कि वह प्राचीन ब्रिस्टल शहर (इंग्लैण्ड) का दृश्य था, जबकि अन्य सदस्य इससे सहमत नहीं थे। उनके अनुसार यह प्राचीन अलास्का की एक झलकी थी। कुछ भी हो, इतना सुनिश्चित है कि उनने जो कुछ देखा, उसका वर्तमान में कोई अस्तित्व नहीं है। सेण्ट एलियास पहले भी निर्जन था और अब भी आबादी रहित जन हीन क्षेत्र है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार वहाँ हर वर्ष 21 जून से 10 जुलाई के बीच उस अज्ञात शहर का दिव्य दर्शन किया जा सकता है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि उक्त अवधि में लोग समयावरोध को लाँघ कर पीछे चलते हुए उसके गर्भ में उतरते और अतीत की झाँकी करते हैं।

क्या यह संभव है, हाँ, अब विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करता है कि ऐसा सर्वथा अशक्य भी नहीं। उसके अनुसार समय के अनेक आयाम हैं। जब किसी वस्तु, व्यक्ति अथवा स्थान से संबंधित समय के उच्च आयाम में व्यक्ति आयासपूर्वक अथवा अनायास पहुँच जाता है, तो वह उस वस्तु, व्यक्ति अथवा स्थान से संबंधित भूत और भविष्य की बातें जान लेता है। दूसरे शब्दों में कहें, तो व्यक्ति अतीत एवं भविष्य के गर्भ में प्रवेश कर जाता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि समय भूत, वर्तमान एवं भविष्य के एक रैखिक क्रम में स्थित है। विज्ञानवेत्ताओं का कहना है कि समय का यह एक आयाम हुआ। अपनी दूसरी भूमिका में अतीत, वर्तमान और भविष्य साथ-साथ रहते हैं। यदि सचमुच ऐसा है, तो फिर उन आयामों तक पहुँचा कैसे जाय, जहाँ एक समय में तीनों काल खण्ड एक साथ रहते हों? वैज्ञानिकों का इस संबंध में सुनिश्चित मत है कि इन अविज्ञात स्तरों तक उन आयामों द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है, जो हमें ज्ञात हैं, अर्थात् लंबाई, ऊंचाई और गहराई। इन तक एक प्रारंभिक बिंदु द्वारा पहुँचा जा सकता है-एक ऐसा बिंदु , जिसमें स्थान तो होता है, पर आयाम नहीं। इसे निम्न प्रकार से समझा जा सकता है।

यदि कोई कण आकाश (स्पेस) में गतिशील हो, तो उससे एक आयामीय रेखा का निर्माण होता है। यह आयाम लंबाई है। जब इस प्रकार की कोई रेखा आकाश से गुजारी जाय, तो उसे लंबाई और चौड़ाई का दो आयामीय तल विनिर्मित होगा। यदि ऐसे किसी तल को पुनः आकाश में परिभ्रमण कराया जाय, तो जिस आकृति की संरचना होती है, उसके लंबाई, चौड़ाई (या ऊंचाई) और गहराई तीन आयाम होंगे।

क्रिया इसके विपरीत भी संपन्न की जा सकती है। यदि गति उलटी कर दी जाय, तो त्रिआयामीय भूमिका से पुनः प्रारंभिक बिंदु पर पहुँचा जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि किसी ऐसी वस्तु की, जिसके तीन आयाम हों, अनुप्रस्थ काट (क्रास सेक्शन) काटी जायें, तो उसमें दो आयामों वाला तक प्राप्त होगा। फिर इस तल की अनुप्रस्थ काट से एक आयामयुक्त लाईन प्राप्त होगी। यदि आगे पुनः इसे अनुप्रस्थ रूप से काटा जाय, जो जिस बिंदु की उपलब्धि होगी, वह सर्वथा आयाम रहित कण मात्र होगा।

इस तरह यह निष्कर्ष आसानी से निकाला जा सकता है कि तीन डायमेंन्सनों वाला पदार्थ किसी चार आयामों वाली वस्तु की अनुप्रस्थ काट है। जब ऐसी किसी त्रिआयामी वस्तु को एक विशिष्ट तरीके से, विशिष्ट दिशा में भ्रमणशील बनाया जाय, तो वह एक चार आयामों वाला पदार्थ का निर्माण करेगी। यहाँ यह प्रश्न उठ सकता है कि वह किस प्रकार की वस्तु होगी, जिसकी अनुप्रस्थ काट में तीनों डायमेन्सन्स उपस्थित हों एवं उसे किस विशिष्ट दिशा में बुलायी जाय कि उससे चार प्रकार की भूमिकाओं का निर्माण हो? क्योंकि आगे-पीछे, ऊपर-नीचे, दांये-बांये इस प्रकार की गतियाँ केवल बृहद् आकृतियों का सृजन करती हैं, किसी नये आयाम का नहीं। इसके उत्तर में वैज्ञानिक कहते हैं कि चूँकि समयावधि एक नवीन भूमिका है, अतः हर आयामों वाले पदार्थ का चौथा आयाम इसे माना जा सकता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक त्रिआयामी पदार्थ चार आयामों वाला होता है और ऐसी सभी वस्तुओं की विवेक संगत परिभाषा यही हो सकती है कि उनके दृश्य तीन ही आयाम हैं-लंबाई, चौड़ाई और गहराई, जब कि समयावधि का चतुर्थ डायमेन्सन अदृश्य स्तर का बना रहता है। तो क्या इस तरह की अवस्था और वस्तु संभव है? विशेषज्ञ इसका उत्तर ‘हाँ’ में देते हुए कहते हैं कि यह शक्य तो है, पर केवल परिकल्पना स्तर पर ही, क्योंकि वास्तव में बिंदु, रेखा और तल का यथार्थ अस्तित्व सदा उसी रूप में बना नहीं रहता। किसी लाईन के, जब वह गत्यात्मक अवस्था में आ जाय, तो लंबाई के साथ-साथ उसमें चौड़ाई (और समयावधि भी) हो सकती है, जैसा कि किसी तल के गतिमान बनने पर लंबाई, चौड़ाई के साथ-साथ उसमें मोटाई भी आ उपस्थित होती है। सवाल यह शेष रह जाता है कि ऐसे किसी द्रव्य (त्रिआयामी) की गति क्या हो कि वह चतुर्थ आयाम वाले पदार्थ को जन्म दे?

विज्ञान विशारदों का इस संदर्भ में विचार है कि जब किसी वर्गाकार तल को ऊंचाई के आयाम में (ऊपर-नीचे) चलाया जाता है, तो इससे घन की उत्पत्ति होती है। ऐसे ही यदि उक्त (परिकाल्पनिक) घन को समय के आयाम में गति दी जाय, तो जिस आकृति का जन्म होगा, वह एक चार डायमेन्सन वाली संरचना होगी।

यहाँ “समय के आयाम में गति “ का तात्पर्य भलीभाँति समझ लेना आवश्यक है। जैसा कि पहले कहा जा चुका है इसका अर्थ एक अभिनव दिशा में गति से है, न कि पार्श्व, ऊर्ध्व और अधोगतियों से। शंकालु हृदय में यहाँ यह संदेह पैदा हो सकता है कि ऐसी दूसरी गतियाँ हैं क्या? उत्तर में यही कहा जा सकता है कि ऐसी कई ज्ञात गतियाँ हैं और अनेक अविज्ञात गतियों की संभावना विज्ञान जगत में प्रकट की जाती है । उदाहरण के लिए एक तो वह वेग हो सकता है, जो हर प्राणी और पदार्थ को पृथ्वी से मिलता है। इस प्रकार प्रत्यक्ष रूप से वेग रहित होने के बावजूद उन्हें वेगवान कहा जा सकता है। यह प्रच्छन्न गति है। इस तरह यह मानने में हर्ज नहीं कि त्रिआयामी दृश्य एक यथार्थ वस्तु की परिकाल्पनिक रूप से गति रहित अनुप्रस्थ काट है, जिसका चौथा आयाम-अवधि, पृथ्वी की उस दैनिक गति से अविच्छिन्न रूप से संलग्न है, जो हर पृथ्वीवासी पदार्थ और प्राणी को उक्त ग्रह से मिलती रहती है। इसके अतिरिक्त अन्य गतियाँ हैं-पृथ्वी की सूर्य के चारों ओर परिभ्रमण गति, सूर्य द्वारा किसी महासूर्य की परिक्रमा गति एवं अपनी आकाश गंगा द्वारा किसी अन्य अविज्ञात केन्द्र की प्रदक्षिणा गति। चूँकि प्रत्येक दृष्ट पदार्थ पर यह गतियाँ साथ-साथ क्रियाशील हैं, अतः यह कहा जा सकता है कि उन सभी को उक्त सारे आयाम उपलब्ध हैं। यह बात और है कि सामान्य स्थिति में उनकी अनुभूति नहीं हो पाती, पर इतने से ही सत्य और तथ्य से इंकार तो नहीं किया जा सकता। इतना स्वीकार लेने के उपराँत इस यथार्थ को मान लेने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि उपरोक्त गतियों और आयामों को समय के परिप्रेक्ष्य में ही जाना, समझा और अनुभव किया जा सकता है। चूँकि समय-संदर्भ के अतिरिक्त इनकी अनुभूति और कोई उपाय नहीं, अस्तु इन सबको सरलता के लिए “समय का आयाम” कहा जाता है।

यहाँ यह जिज्ञासा हो सकती है कि अवधि यदि समय का एक पक्ष है, तो इसके दूसरे अन्य पहलू क्या होंगे? इस संबंध में इस विषय के निष्णात् विभिन्न प्रकार की संभावनाओं में से जिन संभाव्यताओं के बारे में अपना मत प्रकट करते हैं, वे हैं-दृश्य-अदृश्य एवं परिवर्तन व पुनरावृत्ति की घटनाएँ। वैज्ञानिकों का कहना है कि समय के अगणित पहलुओं में से मात्र “अवधि” ही एक ऐसी है, जो मानवी इंद्रियों के लिए ग्राह्य है। जब किसी वस्तु के संबंध में यह कहा जाता है कि उसका आविर्भाव हुआ, तो इसका आशय मात्र इतना होता है कि हमें अकस्मात् उसके अस्तित्व का पता चला। ऐसे ही किसी के तिरोभाव से उसकी अस्तित्वहीनता का बोध होता है, किंतु जन्म-मरण की मध्यावस्था इंद्रियगम्य नहीं है। उसे इंद्रियों द्वारा जाना नहीं जा सकता। यदि अनुभूति की जा सकती है, तो मात्र समयावधि के परिप्रेक्ष्य में ही वह संभव है। इसी प्रकार परिवर्तन को भी देखा नहीं जा सकता। जो दिखाई पड़ता है, वह परिवर्तनों का समुच्चय होता है। सूर्योदय-सूर्यास्त, ऋतुओं का गुजरना, पौधों एवं बच्चों का बढ़ना आदि ऐसी घटनाएँ हैं, जिन्हें हम देख नहीं पाते, किंतु फिर भी यह घटित तो होती ही है। इसीलिए इन्हें परिकाल्पनिक माना जाता है और ऐसा स्वीकार किया जाता है कि समय के किसी अन्य आयाम में इनका वास्तविक अस्तित्व है, वैसे ही जैसे किसी परिकाल्पनिक त्रिआयामी वस्तु की यथार्थ सत्ता अवधि के आयाम में होती है, अर्थात् उसी डायमेंन्सन में वह इंद्रिय-ग्राह्य बन पाती है।

इस दृष्टि से समय और उसके आयामों की महत्ता काफी बढ़ जाती है। यदि किसी व्यक्ति की इन आयामों में गति हो, तो उसके लिए वह सब संभव हो जाता है, जो सामान्य स्थिति और परिस्थिति में सर्वसाधारण के लिए असंभव स्तर का बना रहता है। फिर उसके लिए काल की विभाजन-भित्ति समाप्त हो जाती है और सब कुछ वर्तमान हो जाता है, अर्थात् वह किसी भी वस्तु, व्यक्ति अथवा स्थान से संबंधित चाहे किसी काल-खण्ड में अप्रतिहत प्रवेश कर उससे संबंधित जानकारी उसी प्रकार उतनी ही आसानी से अर्जित कर सेता है, जैसे कोई व्यक्ति अपने सम्मुख की चीज के बारे में सरलतापूर्वक ज्ञानार्जन कर लेता है, किंतु यह सब शक्य उसी अवस्था में है, जब चेतना अत्यंत परिष्कृत स्तर की हो। अपरिष्कृत चेतना तो मनुष्य को पशु तुल्य बनाये रखती है, जब कि अपनी परिशोधित स्थिति में वह मानव को देवताओं की श्रेणी में ला खड़ा करती है। हम परिष्कृत चेतना संपन्न बनें, काल-खण्डों के अवरोध को तभी मिटाया जा सकता है और अविज्ञात को ज्ञात तभी बनाया जा सकता है।


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