गीत जो तुमने सिखाए (Kavita)

January 1994

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हे प्रभो! चेतना से तुम्हारी, विश्व अब चहचहाने लगा है।

हर तरफ व्याप्त सत्ता तुम्हारी, आज हर व्यक्ति पाने लगा है।

श्रेय सबको स्वयं बाँटने को, एक आवाज तुमने लगाई।

और दृढ़ आत्म-विश्वास की, फिर भावना थी सभी में जगाई।

हर पथिक, पत्थरों को हटाकर, शक्ति अब आजमाने लगा है।

कल तलक मौन थीं जो जुबानें, अब कथाएँ तुम्हारी सुनाती।

याद कर दिव्यताएँ तुम्हारी, उलझनें फिर समाधान पातीं।

संस्मरण, पूज्य गुरुवर! तुम्हारे, विश्व सारा सुनाने लगा है।

जबकि अस्सी बरस तक स्वयं को, साधना में निरंतर तपाया।

विश्व कल्याण को तब तुम्हीं ने, दिव्य ब्राह्मणी कमल था खिलाया।

अब उसी की मधुर खुशबुओं से, हर हृदय महमहाने लगा है।

जब मनुजता घिरी आँधियों में, तब तुम्हीं ने सहारा दिया है।

रेत के द्वीप पर जो खड़ी थी, ठोस उसको किनारा दिया है।

गीत तुमने हमें जो सिखाए, कंठ हर एक गाने लगा है।

-शचीन्द्र भटनागर


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